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पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने क्विंट के खास कार्यक्रम राजपथ में तेल की कीमतों को लेकर मोदी सरकार को आड़े हाथों लिया. उन्होंने इसके लिए NDA सरकार की अर्थशास्त्रियों या आर्थिक विशेषज्ञों को गंभीरता से न लेने की नीति को जिम्मेदार ठहराया.
पेट्रोल-डीजल के दाम 2.50 रुपये कम किए गए लेकिन इसमें 1 रुपये का बोझ तेल कंपनियों पर डाल दिया गया. ये सारा बोझ तो सरकार खुद भी उठा सकती थी?
अभी 1.50 रुपये वो खुद दे रहे हैं, बाकी 1 रुपये का बोझ ऑयल कंपनियां सह रही हैं. हमारा जो फॉर्मूला था उसके हिसाब से1/3 बोझ तेल कंपनियों को, 1/3 सरकार कोऔर 1/3 ग्राहक को उठाना होता था. बीजेपी ने इसकी आलोचना की. अगर वो गलत था तो आज आप क्या कर रहे हैं?आपके पास ऐसी पॉलिसी होनी चाहिए जिसमें थोड़ा लचीलापन संभव हो.
प्रशासन के आर्थिक मोर्चे पर इस सरकार में कौन सी बड़ी कमियां आपको दिखाई देती हैं?
अयोग्यता. आपके पास सरकार में उतने इकनॉमिस्ट या इकनॉमिक एक्सपर्ट मौजूद ही नहीं हैं. उनके पास CEA (चीफ इकनॉमिक एडवाइजर) नहीं है. सरकार में इकलौते अर्थशास्त्री रहे डॉ. अरविंद सुब्रह्मण्यम की छुट्टी कर दी गई. डॉ. रघुराम राजन की रुकने की इच्छा के बावजूद उन्हें भी शामिल नहीं किया गया. प्रधानमंत्री की कथित आर्थिक सलाहकार समिति में अंतरराष्ट्रीय ख्याति का एक भी अर्थशास्त्री नहीं है. प्लानिंग कमीशन में भी यही हाल है. इसे जरा UPA के वक्त से तुलना करके देखें. यूं तो डॉ. मनमोहन सिंह खुद अंतरराष्ट्रीय स्तर के अर्थशास्त्री थे, इसके अलावा भी किसी भी वक्त कम से कम 6 बड़े अर्थशास्त्री सिस्टम में मौजूद होते थे. डॉ. रघुराम राजन थे, डॉ. रंगराजन, डॉ. गोविंद राव, मोंटेक सिंह अहलूवालिया, बिमल जालान जैसे नाम शामिल हैं.
लेकिन वो कहते हैं कि ये हार्वर्ड से नहीं हार्ड वर्क से होता है?
उनके हार्ड वर्क का नतीजा ये है किअगले महीने से आपको ज्यादा EMI भरनी पड़ेगी. कहां गया आपका हार्ड वर्क?
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