5 राज्यों में विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव काफी करीब हैं. ऐसे में चुनाव के आसपास सरकार क्या कर रही है? क्या करना चाहती है? क्या मुद्दे हैं, जिसमें सरकार उलझी है? इस पर क्विंट के एडिटोरियल डायरेक्टर संजय पुगलिया ने खास कार्यक्रम 'राजपथ' में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व वित्तमंत्री पी. चिदंबरम से बातचीत की.
इस दौरान चिदंबरम ने आर्थिक मोर्चे पर सरकार की उलझन और मुसीबतों से लेकर, विपक्षी एकता तक की बात की. साथ ही उन्होंने राफेल पर अपने तीन सवाल भी दागे.
सरकार ने अच्छा मौका गंवा दिया: चिदंबरम
पूर्व वित्तमंत्री ने कहा कि फिलहाल मैक्रो इकनॉमी की हालत बेहद खस्ता है. ऐसा इसलिए, क्योंकि सरकार ने एक बड़ा मौका गंवा दिया.
जब क्रूड ऑयल 40 डॉलर प्रति बैरल था, ढाई-तीन साल तक 50 डॉलर के भी पार नहीं पहुंचा, उस वक्त सरकार इकनॉमी के लिए बेहतरीन काम कर सकती थी. लेकिन अब जैसे क्रूड की कीमतें बढ़ती जा रही हैं, सरकार को पता ही नहीं कि इस मुसीबत से कैसे निपटा जाए.पी. चिदंबरम, पूर्व वित्त मंत्री
चिदंबरम ने कहा कि इसका नतीजा है कि करंट अकाउंट डेफिसिट बेकाबू है, रुपया लगातार गिरता जा रहा है. बैंकों में पैसे भरे हैं, कोई क्रेडिट लेने को तैयारी ही नहीं.
चुनाव में ये सारी बातें मुद्दे के तौर पर सामने आएंगी, क्योंकि युवाओं के पास जॉब नहीं है, नौकरी नहीं है, महिलाएं वर्कफोर्स में शामिल नहीं हो पा रही हैं. SME बेहद खराब स्थिति में है.
राफेल विवाद पर पी. चिदंबरम के 3 सवाल
इस खास बातचीत में चिदंबरम ने राफेल विवाद पर मोदी सरकार के सामने 3 सवाल भी रखे. उन्होंने कहा कि इस बात से दिक्कत नहीं है कि प्राइवेट कंपनियां बिजनेस कर रही हैं, लेकिन राफेल पर इन तीन सवालों के जवाब नहीं मिल रहे हैं.
- पुराना एमओयू क्यों कैंसिल हुआ, कोई तो कारण बताया होता.
- क्यों आप सिर्फ 36 एयरक्राफ्ट खरीद रहे हैं, जब दसॉ 126 एयरक्राफ्ट देने को तैयार था.
- HAL जैसी 70 साल की अनुभवी कंपनी से आपने दसॉ को डील करने के लिए क्यों नहीं कहा. HAL के पास वर्कशेयर एग्रीमेंट है, पुरानी सरकारी कंपनी है, तेजस, मिराज जैसे एयरक्राफ्ट बना चुकी है. लेकिन सरकार ने उसका नाम क्यों नहीं लिया?
महागठबंधन पर चिदंबरम ने क्या कहा?
चिदंबरम का कहना है कि ये हर किसी को महसूस हो रहा है कि 2019 में बीजेपी और नॉन बीजेपी पार्टियों की लड़ाई है. ऐसे में चुनाव से पहले ज्यादा से ज्यादा पार्टियां एकसाथ आएंगी. उन्होंने कहा कि हो सकता है कि विधानसभा चुनाव में ऐसे गठबंधन के भीतर पार्टियों की संख्या कम हो, लेकिन लोकसभा चुनाव में ज्यादातर पार्टियां साथ आएंगी.
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