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चुनाव ट्रैकर के तेरहवें एपिसोड में हम आपके सामने हैं, तो तैयार हो जाइए आज के चुनावी डोज के लिए. प्रचार के बढ़ते शोर में क्यों खामोश है वोटर! अब तक हुई वोटिंग परसेंटेज क्या मैसेज दे रहा है? क्या है इसका मतलब? छठे फेज की वोटिंग के बाद समझने की कोशिश करते हैं.
समझने वाली बात ये है कि अब तक जितने फेज की वोटिंग हुई, वोटिंग परसेंटेज गिरा है. पहले फेज में जहां करीब 70% वोटिंग हुई वहीं छठे फेज तक आते-आते 63% हो गई.
वोटिंग परसेंटेज दो वजहों से गिर सकते हैं. एक तो गर्मी बढ़ी है और दूसरी ये कि रमजान का महीना शुरू हो गया है.
लेकिन ऐसा नहीं है कि पूरे देश की कहानी यही है. मध्यप्रदेश, राजस्थान, झारखंड, आंध्र प्रदेश और बिहार में 2014 की तुलना में वोटिंग परसेंट बढ़ा है. यूपी में स्थिति पहले जैसी ही है. दिल्ली, हरियाणा, तेलंगाना और तमिलनाडु में थोड़ा टर्नआउट कम हुआ है. पूरे देश में एक-डेढ़ परसेंट वोटिंग बढ़ी है. कुल मिलाकर लहर जैसी कोई बात नहीं है.
कुल मिलाकर जहां वोटिंग बढ़ी है वहां उसे चिंतित होना चाहिए और जहां वोटिंग घटी है वहां उसके लिए कुछ राहत की बात हो सकती है.
इस चुनावी मौसम में नेताओं की बदजुबानी बढ़ गई है. अरुण जेटली ने कहा कि मायावती इस लायक नहीं हैं कि वो कोई सार्वजनिक पद पर रहे. जेटली को ऐसा क्यों कहना पड़ा. ये इसलिए हो सकता है कि किसी को बहुमत न मिलने की स्थिति में अपने सामने के प्रतिद्वंदी के बारे में खराब बोलकर उनको रेस से बाहर कर दो. जेटली आम तौर पर सभ्य भाषा का इस्तेमाल करने वाले नेता हैं. ऐसी भाषाओं का उनको नुकसान भी उठाना पड़ सकता है.
खुद पीएम मोदी अपने बयानों के लिए सवालों के घेरे में हैं. पहले उन्होंने कहा कि बालाकोट एयर स्ट्राइक के वक्त उन्होंने एक्सपर्ट्स को सलाह दी थी कि मौसम खराब है, बादल हैं फिर भी आगे बढ़िए क्योंकि इससे हो सकता है कि पाकिस्तान के रडार हमें न पकड़े. फिर उन्होंने कहा कि 1988 में ही उन्होंने डिजिटल कैमरे और ई-मेल का इस्तेमाल किया था. ये दोनों बातें तथ्यों से परे हैं लिहाजा सोशल मीडिया पर इन बयानों का मजाक उड़ रहा है. लेकिन सवाल ये है कि बहुत सोच समझ कर बोलने वाले तथ्यों से परे जाकर बयान क्यों दे रहे हैं?
दरअसल ये चुनाव लंबा है और नेताओं के पास बोलने के लिए कुछ है नहीं. विकास पर बात हो नहीं रही क्योंकि बताने के लिए कुछ है नहीं. कुल मिलाकर रैली से लेकर इंटरव्यू तक विरोधियों को नीचा दिखाने के सिवा कोई एजेंडा है नहीं. अब वो भी खत्म हो गया. तो शायद ऐसे ही बेसिरपैर के बयानों के जरिए सुर्खियों बटोरने की कोशिश हो रही है.
अब ये बात काफी हो रही है कि शायद इस बार किसी को बहुमत न मिले. ऐसे में सवाल है कि किंगमेकर कौन होगा और वो किसकी साइड लेगा. किंगमेकर के तौर पर चार नाम लिए जा रहे हैं. ममता बनर्जी, मायावती, जगन रेड्डी और केसीआर. ममता और माया का झुकाव गैर कांग्रेसी गुट की ओर रहने के आसान हैं. वहीं जगन और केसीआर अपने पत्ते नहीं खोल रहे हैं. जगन स्पेशल राज्य की मांग पूरी करने वाले के साथ जा सकते हैं , वहीं केसीआर थर्ड फ्रंट के लिए जोर लगा रहे हैं.
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