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इस बार ‘The Climate Change Dictionary’ में हम बात कर रहे हैं कार्बन उपनिवेशवाद की. 'द क्लाइमेट चेंज डिक्शनरी' के इस एपिसोड में हम समझेंगे कि कार्बन उपनिवेशवाद क्या है और यह जलवायु परिवर्तन की वैश्विक राजनीति को कैसे आकार दे रहा है?
अगस्त 1608 में ईस्ट इंडिया कंपनी व्यापार के बहाने भारत में घुसी थी. अंग्रेज आए तो व्यापार करने के लिए लेकिन जल्द ही वे लालची होते गए और हमारी जमीन, खेत, किसान, मजदूर, और संसाधन हथियाना शुरू कर दिया. हमारे पास वो चीजें थीं, जो उनके पास नहीं थीं, जैसे- मसाले, रेशम, कपास, नील और बहुत कुछ.
इससे पहले कि हमें एहसास भी होता हम ब्रिटेन की कॉलोनी बन चुके थे. कॉलोनी यानी संसाधनो की खदान. जहां से सिर्फ लिया जाता है. हमारे संसाधनों को हमारे ही लोगों से छीन कर ब्रिटन भेजा जाने लगा. औद्योगिक क्रांति, जिसे ब्रिटेन के औद्योगिक विकास की नींव कहा जाता है, भारत जैसी कॉलोनियों के संसाधनों पर ही खड़ी की गयी थी.
हमारे संसाधनों से उनके देश का विकास हुआ, जबकि हमारे देश को पिछड़ा रखा गया. उन्होंने अपना विकास, मशीनों का निर्माण, प्रौद्योगिकी की उन्नति, कोयला जलाने और पृथ्वी के प्रदूषण की शुरुआत की. ये देश आज हमसे कहीं ज्यादा विकसित, तकनीकी रूप से उन्नत और समृद्ध हैं.
लेकिन एक सवाल आता है कि जब हम सिर्फ एक कॉलोनी थे तो क्या उस वक्त क्या हमारा विकास जरूरी नहीं था? क्या भारत के पास अपने संसाधनों की कोई जरूरत नहीं थी? बिलकुल थी, और काफी ज्यादा थी.
लेकिन ब्रिटेन के विकास को हमारे विकास से ज्यादा जरूरी समझा गया और हमारे विकास की कीमत पर उन्हें विकसित किया गया.
विकसित देशों के दूसरे देशों को कॉलोनी बनाने की प्रक्रिया को कॉलोनाइजेशन कहा जाता है. पर आज ब्रिटेन जैसे विकसित देशों को हमारे नील या मसालों की जरूरत नहीं. आज उन्हें चाहिए हमारे भविष्य में सफल होने की सम्भावना.
लेकिन कैसे? हमारा निजी कार्बन स्पेस हमसे छीन कर.. ये कार्बन स्पेस एक सीमा है जो ये तय करता है कि आने वाले समय में हम कितना कार्बन उत्सर्जन या कार्बन एमिशन कर सकते हैं. अगर हमारा कार्बन स्पेस छीन लिया जाता है तो इसका मतलब है कि हम आने वाले समय में विकास की कई जरूरतें जैसे- बिजली पैदा करना गैरह के लिए, कार्बन उत्सर्जन नहीं कर पाएंगे.
आज विकास की हमारी संभावना तक को छीना जा रहा है ताकि ये पहले से विकसित राष्ट्र और भी अधिक विकसित हो सकें. कार्बन का commodification यानी कार्बन उत्सर्जन को एक वस्तु की तरह देखा जाना और इसलिए इसका Colonisation यानी उपनिवेशीकरण होना.
सुनने में काफी नाटकीय लगता है. पर मैं आपको समझाती हूं कि ये कैसे हुआ और दुनिया भर के देशों के लिए इसका क्या अर्थ होगा?
लेकिन सबसे पहले, कार्बन एमिशन, क्लाइमेट एक्शन और विकासशील और विकसित देशों के बीच की कहानी समझने के लिए आपको हमारे पिछले वीडियोज देखने होंगे.
तो अब मैं आपको एक और कहानी सुनाती हूं. जॉर्ज और गोवर्धन की कहानी. जॉर्ज अमेरिका में रहते हैं और गोवर्धन भारत में. जॉर्ज का प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन काफी ज्यादा है. उसकी जिंदगी आरामदायक है, लक्जरी में जीता है और साल में एक दो छुट्टियां भी मना लेता है. जबकि गोवर्धन का प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन बहुत ही कम है. उसके घर में ठीक से बिजली भी नहीं आती, कोई AC नहीं है, शॉवर में नहाने के लिए गर्म पानी नहीं है. वैसे अधिकांश दिन पानी आता ही नहीं है.
जॉर्ज एक दिन, गोवर्धन से मिलने आता है. उसके छोटे से गांव में खेतों के बीच एक छोटी सी झोपड़ी में और उसे एक डील समझता है. जॉर्ज कहता है, "दोस्त, सुनो, हम दोनों नए जमाने के पढ़े-लिखे लोग हैं, हम ग्लोबल वॉर्मिंग के बारे में सब जानते हैं, हमें पृथ्वी को क्लाइमेट चेंज से बचाने के लिए जितना हो सके अपने कार्बन उत्सर्जन में कटौती करनी चाहिए"
गोवर्धन बात समझ कर सिर हिलाता है
जॉर्ज कहता है कि चलो मानते है कि कार्बन सोने का सिक्का है. ये सिक्के सभी लोगों को दिए गए हैं. दुनिया भर में हर किसी के पास सोने के ऐसे दस सिक्के हैं. ये सिक्के खर्च करके लोग कार्बन उत्सर्जन कर सकते हैं. जैसे चार सिक्के दिए तो बिजली मिल गयी. दो और दिए तो AC आ गया.
तो इससे पहले कि ये 10 सिक्कों की सीमा तय की गयी. तब तक जॉर्ज पहले ही अपने जीवन में ऐसे दसियों सिक्के खर्च कर चुका है. जबकि गोवर्धन ने शायद ज्यादा से ज्यादा 6 खर्च किये हों.
तो जॉर्ज गोवर्धन को बताता है कि वो एक प्राइवट जेट खरीदना चाहता है और क्योंकि दोनों समझते हैं कि पृथ्वी पर कार्बन एमिशन कर रखना है तो जॉर्ज ने एक तरीका निकाला है. जिससे कार्बन एमिशन भी तय सीमा में ही होगा और उसका प्राइवट जेट भी आ जाएगा.
जॉर्ज गोवर्धन को बोलता है कि ऐसा तभी सम्भव है जब गोवर्धन अपने आठ सिक्के जॉर्ज को दे दे. क्योंकि आज तो उसे ही जरूरत है, और कल किसने देखा है?
अगर गोवर्धन ये सिक्के दे देता है, तो जॉर्ज अपना प्राइवट जेट खरीद पाएगा. लेकिन, गोवर्धन को भी जीवन भर के लिए अपने घर में AC और शॉवर में गर्म पानी को अलविदा कहना पड़ेगा.
गोवर्धन का कार्बन उत्सर्जन अभी कम है. तो भी आने वाले समय में एक बेहतर जीवन जीने के लिए ये सुनिश्चित करना जरूरी है कि उसका 'कार्बन स्पेस' मौजूद रहे.
बेहतर जीवन और गरम पानी के शॉवर में मजे से नहाना गोवर्धन का हक है. और क्यों ना हो? और सबसे बड़ी बात, आप और हम उस से ये हक छीनने वाले कौन होते हैं?
बहरहाल, अब तक आप मेरी बात समझ ही चुके होंगे. तो अब बिंदुओं को जोड़िए, जॉर्ज है लालची विकसित दुनिया और गोवर्धन विकासशील दुनिया.
ग्लासगो में हाल ही में COP 26 सम्मलेन आयोजित हुआ था. ये संयुक्त राष्ट्र का जलवायु परिवर्तन सम्मेलन है. यहां LMDC यानी 'लाइक माइंडेड डेवलपिंग कंट्रीज' के प्रवक्ता ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के प्रति CBDR यानी सामान्य लेकिन विभेदित जिम्मेदारी का सिद्धांत बदलकर सामान्य लेकिन साझा जिम्मेदारी में नहीं बदल सकता है. ये शब्द ‘विभेदित' बहुत जरूरी है.
गोवर्धन और जॉर्ज की क्षमताओं और जिम्मेदारियों के बीच अंतर करना जरूरी है. क्योंकि अगर ऐसा नहीं किया जाता है तो गोवर्धन पीछे छूट जाता है और हो सकता है कि जॉर्ज के इरादे नेक हों पर ऐसे ही देशों के स्वार्थी और लालची इरादों की वजह से गोवर्धन जैसे देशों का शोषण शुरू होता है.
इसी शोषण को कहते हैं कार्बन उपनिवेशवाद या कार्बन कॉलनिज्म.
विकसित और विकासशील देशों की क्लाइमट चेंज के प्रति जिम्मेदारियों को एक बराबर बताना या विकासशील देशों से उतने ही त्याग की उम्मीद रखना गलत है. ये क्लाइमट जस्टिस यानी जलवायु न्याय के खिलाफ है.
अब जब हमें ये समझ आ गया है कि कार्बन आज के समय में लगभग एक वस्तु ही है. तो बाकी सभी वस्तुओं की तरह इसका व्यापार भी बाजारों में किया जा रहा है और कई नियम भी हैं. जो इस व्यापार को नियंत्रित करते हैं और इसी बारे में हम बात करेंगे हमारे अगले वीडियो में– कार्बन मार्केट, कार्बन ट्रेडिंग और UFCCC का आर्टिकल 6. तो हमारा अगला वीडियो जरूर देखिएगा!
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