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जलवायु परिवर्तन या क्लाइमेट चेंज (Climate Change) को लेकर मिस्र में COP27 आयोजित हो रहा है. संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन हर साल होता है. इसमें दुनियाभर की सरकारें वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए उठाए जाने वाले कदमों पर चर्चा करती हैं. COP27 के मुद्दे क्या हैं और इस कॉन्फ्रेंस में भारत के मुद्दे क्या हैं? इस पर CAN (क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क) इंटरनेशनल में ग्लोबल पॉलिटिक्स स्ट्रेटेजी के हेड हरजीत सिंह से खास बातचीत कर क्विंट ने यह जानने की कोशिश की है.
COP27 क्या है, क्या है इसका एजेंडा?
हरजीत सिंह कहते हैं कि यह एक वार्षिक कॉन्फ्रेंस है जिसमें करीब 200 देश आते हैं और हम साथ में मिलकर क्लाइमेट पॉलिसी बनाते हैं. क्लाइमेट पॉलिसी का साथ मिलकर बनाना इसलिए जरूरी है क्योंकि जिन अमीर देशों ने इस पूरी समस्या को खड़ा किया उनकी वजह से जो परेशानियां खड़ी हो रही हैं उसकी जवाबदेही तय की जा सके.अमीर देशों की जिम्मेदारी है कैसे वो क्लाइमेट फाइनेंस में योगदान दें.
क्लाइमेट फाइनेंस क्या होता है?
क्योंकि अमीर देशों के औद्योगीकरण की वजह से समस्या है तो उनकी जिम्मेदारी बनती है कि वह विकासशील देशों को सपोर्ट करें ताकि हमलोग अपनी इकनॉमी को ग्रीन कर सकें और जो आपदाएं आ रही हैं उनसे निबटने के लिए तैयार हो सकें. हमें अपनी नीतियों को बदलने के लिए और आपदाओं से निपटने के लिए इस फाइनेंस की जरूरत है.
क्लाइमेट फाइनेंस के 3 मुख्य बिंदु?
एक तो टेक्नोलॉजी और फाइनेंस सपोर्ट देना है अमीर देशों को ताकि हम लोग ज्यादा से ज्यादा पवन ऊर्जा ,सौर ऊर्जा और जंगलों को बचाने में निवेश कर सकें.
दूसरा अडैप्शन जिसमें हम आपदाओं से लड़ने के लिए अपने इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत कर सकें.
तीसरा यह कि इन आपदाओं से जिस तरह से तबाही बढ़ रही है उससे निपटने के लिए पैसा नहीं है. उनको कैसे रिलीफ दें, इस बारे में भी क्लाइमेट फाइनेंस लाने पर विचार करने की जरुरत है.
भारत किन मुद्दों के साथ COP27 जाएगा?
भारत के लिए क्लाइमेट फाइनेंस अहम मुद्दा रहा है. भारत हमेशा अमीर देशों को यह याद दिलाता रहा है कि आपकी जिम्मेदारी सबसे ज्यादा है और आप वो नहीं निभा रहे हैं क्योंकि आप कार्बन एमिशन कम नहीं कर रहे हैं जो आपको करना चाहिए.
साथ ही आपने क्लाइमेट फाइनेंस नहीं दिया है. लॉस एंड डेमेज को लेकर भी भारत का बेहद मजबूत स्टैंड है. ग्रांट की जगह अमीर देश लोन नहीं दे सकते हैं.
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