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वीडियो एडिटर- मोहम्मद इरशाद आलम
श्रीनिवास.. प्लीज हेल्प.. इंजेक्शन चाहिए..
दिलीप पांडेय, मेरे भाई को बचा लीजिये, ऑक्सीजन सिलिंडर चाहिए
चैरिटी बेड्स प्लीज बताइए दिल्ली में किस अस्पताल में ICU बेड मिलेगा?
ऐसे मैसेज ट्विटर, फेसबुक, मोबाइल हर जगह हैं. लोग एक दूसरे से मदद मांग रहे हैं. रो रहे हैं, बिलख रहे हैं. शायद आत्मनिर्भर भारत का मतलब यही था. तुम सब अपना-अपना देख लो. जमीनी हालत तो छोड़ ही दीजिये, जिस इंटरनेट पर ट्रोल की फौज खड़ी की गई जब उस डिजिटल भारत के असल टेस्ट का टाइम आया तो सब फेल हो गए.
सरकार के सारे ई-गवर्नेंस फेल साबित हो रहे हैं. सवाल है कि कहां हैं आरोग्य सेतु ऐप, इसकी लॉन्चिंग से लेकर पब्लिसिटी में कोई कसर नहीं छोड़ी गई. जो काम सरकार को करना था वो काम श्रीनिवास, कुमार विश्वास, अनस तनवीर, शालीन और हजारों इन जैसे असली वॉरियर कर रहे हैं. इसलिए हम इस 'सिस्टम' नाम वाली सरकार से पूछ रहे हैं जनाब ऐसे कैसे?
भारत में कोरोना ब्लास्ट हो रहा है, अस्पतालों में बेड नहीं हैं, 2 हजार की दवा 40 हजार में मिल रही है, ऑक्सीजन सिलिंडर के लिए लोग गिड़गिड़ा रहे हैं. लेकिन सरकार बार-बार दावा कह रही है कि सब कंट्रोल में है. किसी को ऑक्सीजन की कमी नहीं है. जिस सोशल मीडिया पर नेता और मंत्री मामूली सरकारी ऐलान पर भी पीएम का आभार लिखते थकते नहीं हैं वो क्यों मदद की आवाज सुन नहीं पा रहे हैं? लेकिन जब सरकारी सिस्टम लाचार जनता की त्राहिमाम की पुकार नहीं सुन रहा तो लोग ही एक दूसरे के लिए खड़े हो गए हैं.
चलिए आपको बताते हैं कि कौन क्या कर रहा है-और कौन कहां फेल है.
जब कोरोना ने भारत में एंट्री की थी तब सरकार ने आरोग्य सेतु से लेकर जन औषधि सुगम मोबाइल ऐप और आयुष संजीवनी ऐप लॉन्च किया था.
"आयुष संजीवनी" ऐप कौन सा संजीवनी बूटी साबित हुई? इम्यून सिस्टम को मजबूत करने और COVID-19 की स्थिति में खुद को स्वस्थ रखने के लिए उपायों को समझने के लिए "आयुष संजीवनी" मोबाइल एप्लिकेशन बनाया गया. आयुष संजीवनी ऐप से तो इम्यून सिस्टम बढ़ाने का नुस्खा दिया गया था ना, फिर अचानक इस देश का इम्यून कमजोर कैसे हो गया?
इसी तरह लॉकडाउन के दौरान जन औषधि सुगम मोबाइल ऐप बनाया गया ताकि लोगों को अपने नजदीकी प्रधानमंत्री जनऔषधि केंद्र का पता लगाने और किफायती जेनेरिक दवा हासिल करने में मदद मिले. अब कोई ये पूछे कि क्या remdevisir जैसी दवाओं के लिए भटक रहे लोगों के लिए कोई डायरेक्ट रास्ता क्यों नहीं बनाया गया.
पटना, दिल्ली, दरभंगा, वाराणसी, फरीदाबाद से दवाओं के लिए लोग SOS कॉल कर रहे हैं, सरकार इसके लिए कोई रास्ता क्यों नहीं निकालती?
क्यों इंडियन यूथ कांग्रेस के श्रीनिवास से कहना पड़ रहा है कि भाई प्लीज इंतजाम कर दीजिए. क्यों बिहार के जौहर सिद्दीकी को मैसेज कर के लोग कह रहे हैं कि प्लीज मेरी माता जी अस्पताल में हैं Toclizumab injection मंगा दीजिए.
दवा तो छोड़िए जिस सरकार को डॉक्टर्स, नर्स, फ्रंटलाइन वर्कर के खाने की चिंता होनी चाहिए थी उसकी चिंता 22 साल तक स्कॉटलैंड में रहीं पुणे की आकांक्षा सादेकर कर रही हैं. आकांक्षा फ्रंटलाइन पर काम कर रहे डॉक्टर्स, नर्स और अन्य स्वास्थ्यकर्मियों तक अपने हाथ से बना खाना पहुंचाने का काम कर रही हैं.
यही नहीं लोगों तक अस्पताल में बेड से लेकर प्लाज्मा की सही जानकारी पहुंच सके इसकी जिम्मेदारी भी आत्मनिर्भर भारत के युवायों ने उठाई है.
अब सवाल ये है कि सोशल मीडिया पर नैरेटिव सेट करने वाली पार्टी, whatsapp के जरिये घर-घर अपना एजेंडा पहुंचाने वाली सरकार लोगों तक दवा, ऑक्सीजन, मदद क्यों नहीं पहुंचा पा रही है. क्यों नहीं कोई सरकारी यूनिवर्सल हेल्पलाइन नंबर है या फिर कोई ऐसा डिजिटल प्लेटफॉर्म जहां लोगों को बेड, ऑक्सीजन, दवा आदि की जानकारी एक जगह मिल सकती है. करोनिल वाले बाबा का प्रचार करने की जगह अगर ऐसे ही सेल्फ ग्रुप की सरकार मदद करती तो सच में ये देश आत्मनिर्भर बनकर कोरोना को हराता, लेकिन फिलहाल सांस अटकी पड़ी है और लोग पूछ रहे हैं जनाब ऐसे कैसे?
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