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हेडलाइन हजम, वैक्सीन ‘खत्म’, ऐसे जीतेंगे कोरोना से जंग?

Centre का दावा है कि “नई” वैक्सीन पॉलिसी के पहले दिन वैक्सीनेशन का वर्ल्ड रिकॉर्ड बना है

शादाब मोइज़ी
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Centre का दावा है कि “नई” वैक्सीन पॉलिसी के पहले दिन वैक्सीनेशन का वर्ल्ड रिकॉर्ड बना है
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Centre का दावा है कि “नई” वैक्सीन पॉलिसी के पहले दिन वैक्सीनेशन का वर्ल्ड रिकॉर्ड बना है
(फोटो: altered by Quint Hindi)

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वीडियो एडिटर- आशुतोष भारद्वाज, विवेक गुप्ता

भारत सरकार का दावा है कि "नई" वैक्सीन पॉलिसी (Vaccination Policy) के पहले दिन यानी 21 जून को वैक्सीनेशन का वर्ल्ड रिकॉर्ड बना है. सही पकड़े हैं.. यानी उस दिन जिस दिन से केंद्र ने कमान अपने हाथ में वापस लिया. तो क्या अब वैक्सीन की किल्लत खत्म हो गई? क्या अब वैक्सीनेशन (Vaccine) की रफ्तार बढ़ गई है? इन सवालों का जवाब है नहीं. अगर हालत सुधारने नहीं हेडलाइन बनाने के लिए रिकॉर्ड बनाएंगे, अगर रिकॉर्ड बनाने के लिए लोगों की जिंदगी खतरे में डालेंगे तो हम तो पूछेंगे जरूर जनाब ऐसे कैसे?

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स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने दावा किया कि 21 जून को रिकॉर्ड 88.09 लाख वैक्सीन डोज लगाकर भारत ने एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है. चीन की बातों पर भरोसा नहीं करना चाहिए लेकिन चीन का दावा है कि उसने रोजाना करीब 2 करोड़ वैक्सीन के डोज दिए हैं. छोड़िए दावों को,

सवाल ये है कि भारत में एक दिन में वैक्सीनेशन ड्राइव में ये तीन गुणा उछाल कैसे हुआ? हर दिन औसत 25-30 लाख वैक्सीन डोज लग रहे थे वहां अचानक 88 लाख वैक्सीन की खुराक कैसे दी गई?

जरा इन आंकड़ो को देखिए. CoWIN पोर्टल के डेटा के मुताबिक, पिछले एक महीने का वैक्सीनेशन ट्रेंड देखें, तो पता चलता है कि 21 जून को वैक्सीनेशन नंबर अचानक से ऊपर गया. 20 जून को देश में केवल 29 लाख वैक्सीन लगी, ये आंकड़ा पहला और दूसरा डोज मिलाकर है. 20 मई से 20 जून के बीच आंकड़ों पर नजर डालें, तो सबसे ज्यादा वैक्सीन 14 जून को दी गई, जब कुल 38.20 लाख डोज दिए गए.

जिस मध्य प्रदेश में 21 जून को रिकॉर्ड 17 लाख डोज दिए गए, वहीं उससे एक दिन पहले 20 जून को राज्य में सिर्फ 692 डोज दिए गए. 19 जून को 22006, 18 को 14862. पिछले हफ्ते सबसे ज्यादा डोज 14 जून को 4 लाख 92 हजार दी गई थी. वहीं वैक्सीनेशन कैंपेन के अगले दिन 22 जून को 5 हजार से भी कम डोज.

ऐसे ही कर्नाटक में 20 जून को करीब 68 हजार, 21 जून को 11 लाख से ज्यादा और फिर 22 जून को करीब 4 लाख डोज दिए गए. हरियाणा में 20 जून को 37 हजार के लगभग वैक्सीनेशन हुआ, 21 जून को ये 4.96 लाख हो गया और 22 जून को धड़ाम 75 हजार पर आ गया.

वहीं, उत्तर प्रदेश में 21 जून को 7.25 लाख दिए गए, जो पिछले एक महीने में सबसे ज्यादा है. पिछले हफ्ते सबसे ज्यादा डोज 4 लाख 59 हजार पड़ा था.

सवाल सीधा और सरल है-ऐसा कैसे संभव है कि जो राज्य 21 जून तो 17 लाख का रिकॉर्ड बना रहा है वो 20 जून को सिर्फ 692 डोज लगा रहा है? चूंकि वैक्सीन की किल्लत है इसलिए क्या इन तमाम राज्यों में रिकॉर्ड बनाने के लिए वैक्सीनेशन प्रक्रिया को धीमा कर वैक्सीन डोज को रिकॉर्ड बनाने के लिए जमा किया जा रहा था?

अगर हां तो क्या सैकड़ों-हजारों लोगों को जानबूझकर कुछ दिनों के लिए टीके से वंचित किया गया और उन्हें खतरे में डाला गया. अभी मैंने आपको जिन 3 राज्यों का डेटा दिखाया वो सारे बीजेपी शासित राज्य हैं.

कीर्तिमान की कलई जिस तरह से 22 जून को खुली, जिस तरह से 21 जून को 88 लाख डोज और अगले ही दिन 22 जून को 54 लाख डोज लगे, उससे जाहिर है कि सरकार ने रिकॉर्ड बनाकर हेडलाइन तो हथिया ली लेकिन हालात पर काबू नहीं पा सकी.

170 करोड़ वैक्सीन के डोज की जरूरत

बड़ा सवाल ये है क्या हम 21 जून वाली रफ्तार जारी रख सकते हैं? सच्चाई ये है कि रोजाना 80 लाख डोज की दर को बनाए रखने के लिए, हमें जुलाई में 25 करोड़ वैक्सीन खुराक की जरूरत होगी. खुद सरकार के मुताबिक, केवल 13.5 करोड़ खुराक की आपूर्ति संभव है.

न्यू यॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक पूरी तरह वैक्सीनेट हुए लोगों के प्रतिशत के मामले में भारत अब 93वें स्थान पर है. जबकि 1 जून को हम 82वें स्थान पर थे.

सच्चाई ये है कि हमने करीब 30 करोड़ डोज लगाए हैं. हमें 200 करोड़ डोज देने हैं. यानि 170 करोड़ डोज चाहिए. अगर हम रोज 1 करोड़ डोज (21 जून के रिकॉर्ड से ज्यादा) लगाएं तो हमें 170 दिन लगेंगे यानी करीब 6 महीने यानी दिसंबर तक...ये वो समय जब सरकार सबको वैक्सीन देने का टारगेट रखती है.

तो सच्चाई ये है कि सरकार को अपना ही टारगेट पूरा करने के लिए रोज 1 करोड़ डोज लगाना होगा. जुगाड़ तकनीक से भी वो 88 लाख ही पहुंच पाई है. तो फील-गुड के दिखावे के पूरा होने के बाद, हर महीने 30 करोड़ खुराक के निर्माण या आयात के गंभीर कार्य को तेज करना जरूरी है, तभी सरकार टारगेट पूरा कर पाएगी. तीसरी लहर से भारत की जनता की जान बचा पाएगी. हेडलाइन मैनेजमेंट जानलेवा लापरवाही हो सकती है.

हेडलाइन मैनेजमेंट की लत से पहले ही कम आफत नहीं आई है. उत्तराखंड में हुए कुंभ को लेकर कहा गया कि सब चंगा सी. बाद में पता चला कि कोरोना के फर्जी टेस्ट हो रहे थे. अब आशंका है कि कुंभ दूसरी लहर का एक बड़ा कारण बना. इस साल कि शुरुआत में ही ऐलान कर देना कि सब काबू में है और दूसरी लहर की तैयारी न करना. नतीजा करोड़ों संक्रमित. मौतों का डरावना डेटा.

ऐसे वक्त में हेडलाइन मैनेजमेंट भूल लाइफ सेविंग मैनेजमेंट की चिंता होनी चाहिए, नहीं तो हम पूछेंगे जनाब ऐसे कैसे?

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Published: 24 Jun 2021,04:23 PM IST

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