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फिल्मांकन और निर्माण : कारवां-ए-मोहब्बत
24 मार्च को देशभर में लॉकडाउन की घोषणा के बाद से दिहाड़ी और प्रवासी मजदूरों को काफी मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है. दिल्ली के चांदनी चौक में बेघर मजदूरों के बीच त्राहिमाम मचा हुआ है. इन लोगों को न ही कोई काम मिल रहा है और न ही दो वक्त का राशन.
वहां रहने वाले एक मजदूर ने कहा- इसी हाथ से रोटी बनाकर देने वाले शख्स ने कई दिनों से रोटी का शक्ल नहीं देखी. ऐसी ही स्थिति बाकी मजदूरों की भी है. कई लोग रोज कमाने जाते थे और मजदूरी के पैसे से ही रोजाना का खर्च चलता था. लेकिन काम नहीं होने की वजह से मजदूरी नहीं मिल पा रही है. कई लोगों ने चार-पांच दिनों से खाना नहीं खाया है.
लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर का कहना है कि आप उन देशों में लॉकडाउन कर सकते हैं जहां लोगों के पास घर, सामाजिक सुरक्षा और ऐसी नौकरी है जहां उन्हें वेतन मिलता रहेगा. लेकिन हमारे देश में जहां अधिकतर लोग असंगठित मजदूर हैं, वहां की स्थिति की कल्पना भी नहीं किया जा सकता है.
मजदूरों का कहना है कि नोटबंदी से ज्यादा परेशानी इस दौर में हो रही है. उनका कहना है कि लोगों को जहां भी लगता है कि खाना मिलेगा वहां हजारों की भीड़ इकट्ठी हो जाती है. ऐसे में सोशल डिस्टेंसिंग की बात बेमानी हो जाती है.
हर्ष मंदर कहते हैं कि ऐसी स्थिति नहीं आनी चाहिए जहां लोग ये कहने लगें कि कोरोनावायरस की वजह से तो बाद में मरेंगे पहले भूख हमें मार देगी.
(नोट: इस वीडियो को द क्विंट द्वारा प्रोड्यूस नहीं किया गया है. इसे हर्ष मंदर के नेतृत्व में लोगों की एकजुटता के लिए बनाए गए अभियान, कारवां-ए-मोहब्बत द्वारा फिल्माया और प्रोड्यूस किया गया है. द क्विंट ने वीडियो को उनकी अनुमति के साथ पब्लिश किया है.)
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