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न राशन कार्ड, न जनधन खाता, लॉकडाउन में लाचार हैं ये मजदूर 

जिनके पास राशन कार्ड नहीं, वोटर कार्डड नहीं, उन तक कैसे पहुंचेगा रिलीफ पैकेज?

योगेंद्र यादव
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जिनके पास राशन कार्ड नहीं, वोटर कार्डड नहीं, उन तक कैसे पहुंचेगा रिलीफ पैकेज?
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जिनके पास राशन कार्ड नहीं, वोटर कार्डड नहीं, उन तक कैसे पहुंचेगा रिलीफ पैकेज?
(फोटो : क्विंट हिंदी) 

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सरकारी लॉकडाउन को हुए अभी 3 दिन भी नहीं हुए और भूख हमारे दरवाजे पर दस्तक दे रही है. मुझे उत्तर प्रदेश के अमेठी के जायस कस्बे से एक रिपोर्ट मिली. किसान साथी संजय जी ने स्टेशन के बाहर लोगों से पूछा कि उन्होंने 3 दिनों से क्या खाया है?

राजस्थान की एक महिला जो यहां फूल बेचने का काम करती हैं, उन्होंने कहा कि खाने-पीने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. सरकार की तरफ से उन्हें कुछ नहीं मिला. महिला ने बताया कि उनके पास न राशन कार्ड है और ना ही बैंक में खाता.

ऐसे ही कई कबाड़ का काम करने वाले मजदूरों से बात करने पर पता चला कि उनके घर में चूल्हा नहीं जल रहा. काम बंद है. पेट भरने के लिए पास के खेत से आलू चुन कर, पकाकर खा रहे.

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मैं चाहता हूं कि आप यह रिपोर्ट देखें क्योंकि अभी तक हमारे पास जितनी भी रिपोर्ट आ रही हैं, मीडिया में जो भी कवरेज हो रही है, वो बड़े-बड़े शहरों की हो रही है. जहां लोगों को राहत पहुंचाई जा रही है. बड़े-बड़े शहरों में जहां खाने की व्यवस्था की जा रही है, हजारों लोग वहां इकट्ठे हो जा रहे हैं. क्यों? क्योंकि भूख है? लेकिन ऐसे लाखों-करोड़ों परिवार है जिनके पास अभी तक कोई पहुंचा नहीं है और शायद पहुंचेगा भी नहीं.

मैं चाहता हूं कि इस रिपोर्ट को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण जी देखें उन्हें लगता है कि कोरोनावायरस को लेकर उन्होंने 26 मार्च को राहत पैकेज की घोषणा कर दी, जन-धन अकाउंट में कुछ पैसा भेज दिया, कुछ पैसा राशन के नाम दे दिया लेकिन क्या इन गरीबों के पास राशन कार्ड है? क्या इनके पास बैंक अकाउंट है? कोई भी मदद, कोई भी राहत इन लोगों तक कैसे पहुंचेगी? इनकी आजीविका जो हमने एक सरकारी आदेश से छीन ली, वो कैसे जाएगी इनके पास?

मैं चाहता हूं कि प्रधानमंत्री कार्यालय, प्रधानमंत्री स्वयं इस पर सोचें.

ये वीडियो सिर्फ एक जगह की रिपोर्ट है, एक झलक है. देश के लाखों गांव कस्बों में यही स्थिति होगी और करोड़ों परिवार जल्द ही इस स्थिति में पहुंच सकते हैं.

अर्थशास्त्री कह रहे हैं, ज्यां द्रेज इसके बारे में चेतावनी दे रहे हैं. सलाहकार समिति से प्रणव सेन चेतावनी दे रहे हैं कि अगर गरीबों के खाने के बारे में कुछ जल्द ही नहीं किया गया तो बहुत बड़ा अनिष्ट हो सकता है. हम लॉकडाउन के खिलाफ नहीं हैं, सरकार को महामारी का मुकाबला करना है और पूरा देश उनके साथ खड़ा है.

लेकिन खड़ा तभी होगा जब पेट में कुछ होगा. उसकी व्यवस्था कैसे हो, तत्काल कैसे हो? इसके बारे में सोचना होगा.

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