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दुनिया और देश का सबसे बड़ा वैक्सीन मेकर बेबस क्यों?

कोरोना के रिकॉर्ड बढ़ते केस के बीच वैक्सीन की कमी की खबरें आ रही हैं.

कौशिकी कश्यप
वीडियो
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भारत दुनियाभर में बनने वाली 60% वैक्सीन का उत्पादन करता है
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भारत दुनियाभर में बनने वाली 60% वैक्सीन का उत्पादन करता है
(फोटो: क्विंट हिंदी)

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वीडियो एडिटर: संदीप सुमन

दुनिया का सबसे बड़े कोरोना वैक्सीन उत्पादक देश भारत. दूसरे देशों को 5 करोड़ से ज्यादा वैक्सीन डोज भेजने वाला देश भारत. खुद को दुनिया का वैक्सीन सप्लायर बताने वाला देश भारत. इसी भारत में ‘नो वैक्सीन’(No Vaccine) का नोटिस लगा हुआ दिख रहा है. देश का सबसे बड़ा वैक्सीन मेकर बेबस नजर आ रहा है. खास और आम लोग कह रहे हैं कि हुजूर 'अभी उम्र नहीं है वैक्सीन की' ना कीजिए, हमको भी दे दीजिए. लेकिन स्वास्थ्य मंत्रालय कह रहा है कि जरूरतमंद को देंगे हसरतमंद को नहीं.

वैक्सीन की कमी के बीच कोढ़ में खाज करने कोरोना की दूसरी लहर आ गई...तो हम इस घनचक्कर में कैसे फंसे आइए समझाते हैं.

राज्यों में हो रही वैक्सीन की कमी

महाराष्ट्र

महाराष्ट्र में लोग वैक्सीन लेने सेंटर पर पहुंच तो रहे हैं लेकिन उन्हें निराश लौटना पड़ रहा है क्योंकि सेंटर्स के बाहर वैक्सीन उपलब्ध न होने का नोटिस दिख रहा है.

मुंबई में एक वैक्सीन सेंटर के बाहर वैक्सीन उपलब्ध न होने को लेकर लगी नोटिस(फोटो: क्विंट हिंदी)

महाराष्ट्र के स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे ने राज्य में COVID-19 वैक्सीन की कमी होने की बात कही है.

टोपे ने 7 अप्रैल को कहा, ‘’हमारे पास कई वैक्सीनेशन केंद्रों पर पर्याप्त वैक्सीन डोज नहीं हैं और डोज की कमी के कारण लोगों को वापस भेजना पड़ रहा है.’’

उन्होंने कहा, ''अभी हमारे पास वैक्सीन की 14 लाख डोज हैं, जो 3 दिन में खत्म हो जाएंगी. हमने हर हफ्ते वैक्सीन की 40 लाख और डोज के लिए कहा है. मैं ये नहीं कह रहा कि केंद्र हमें वैक्सीन नहीं दे रहा, लेकिन वैक्सीन की डिलीवरी की स्पीड धीमी है.''

ये दूसरी लहर के दौरान सबसे बुरी तरह से प्रभावित राज्य का हाल है.

महाराष्ट्र की शिकायत के बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने वैक्सीन शॉर्टेज के आरोप को आधारहीन बताया और कहा कि महाराष्ट्र की सरकार अपनी नाकामी छुपाने और लोगों के बीच डर का माहौल बनाने के लिए ऐसा कर रही है.

आंध्र प्रदेश

आंध्र प्रदेश ने भी केंद्र को एक एसओएस(SOS) भेजा है और 1 करोड़ वैक्सीन डोज तुरंत जारी करने की मांग कर रहा है. राज्य में सिर्फ 3.7 लाख डोज उपलब्ध हैं, जबकि इसकी हर दिन खपत 1.3 लाख डोज है. गुरुवार तक उपलब्ध वैक्सीन खत्म होने की आशंका है.

6 अप्रैल को नेल्लोर और पश्चिम गोदावरी जिले में वैक्सीन खत्म होने की खबर आ चुकी है.

झारखंड से भी ऐसी ही खबर है. स्वास्थ्य मंत्री बनना गुप्ता ने कहा है "राज्य के पास वैक्सीन फिलहाल पौने 2 लाख हैं. जबकि डॉक्टर हर्षवर्धन जी(केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री) से कल हमने झारखंड के लिए 10 लाख वैक्सीन मांगी है. इतनी संख्या में वैक्सीन आने के बाद राज्य में वैक्सीनेशन की स्थिति बदलेगी."

“वैक्सीन की कमी तो धनबाद में भी है. हमारे जिले में कुल 110 वैक्सीन सेंटर हैं. हमारा टारगेट 10 हजार वैक्सीन हर दिन देने का रहा है. लेकिन आपूर्ति प्रभावित होने के बाद भारी कमी आई है. इस कमी की भरपाई के लिए दूसरे जिलों जैसे पाकुड़, बोकारो, गिरिडीह, दुमका से झारखंड सरकार द्वारा मदद करवाई गई है. वैक्सीनेशन का प्राइवेट सेटअप फिलहाल बंद कर दिया गया है ताकि सरकारी सेंटर में आपूर्ति हो सके.”
डॉक्टर गोपाल दास, सिविल सर्जन, धनबाद
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वैक्सीन की किल्लत की क्या वजहें हैं?

भारत में केंद्र सरकार ने वैक्सीन की कीमतों पर कैप लगा रखा है. प्राइवेट अस्पतालों में मिलने वाली कोरोना वैक्सीन की कीमत अधिकतम 250 रुपये तय की गई है. मैन्यूफैक्चरर को इसकी वजह से मुनाफा नहीं हो रहा है और प्रोडक्शन नहीं बढ़ पा रहा.

सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया (SII), भारत का एक प्राइवेट फर्म, जो दुनिया की सबसे बड़ी वैक्सीन मैन्यूफैक्चरर है, उसके CEO अदार पूनावाला ने कहा है कि उन्हें ‘कोविशील्ड’ का उत्पादन बढ़ाने के लिए 3000 करोड़ रुपये की जरूरत है.

‘’हम भारत में करीब 150-160 रुपये में सप्लाई कर रहे हैं. जबकि औसत दाम करीब 20 डॉलर (1500 रुपये) है...(लेकिन) मोदी सरकार के अनुरोध के चलते, हम सब्सिडाइज्ड रेट पर (वैक्सीन) मुहैया करा रहे हैं.’’
अदार पूनावाला, एनडीटीवी के साथ इंटरव्यू में

सीरम इंस्टिट्यूट करार के तहत ऑक्सफॉर्ड-एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन ‘कोविशील्ड’(भारतीय नाम) का उत्पादन कर रही है.

भारत दुनियाभर में बनने वाली 60% वैक्सीन का उत्पादन करता है. चूंकि भारत वैक्सीन का सबसे बड़ा मैन्यूफैक्चरर है, ऐसे में खास और आम लोगों ने मांग की कि सबको वैक्सीन मुहैया कराई जाए.

दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर वैक्सीनेशन को लेकर तय की गई आयु सीमा खत्म करने की मांग की. राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे ने भी केंद्र से यही मांग की.

लेकिन स्वास्थ्य मंत्रालय ने इनकार करते हुए साफ किया कि उद्देश्य ये नहीं होना चाहिए कि सबको देना है, जिसको जरूरत है उसे पहले देना है.

इसकी बड़ी वजह है कि हमने पहले से तैयारी नहीं की. कोरोना वैक्सीन बनते ही, कई देश सबसे पहले और सबसे ज्यादा वैक्सीन पाने की होड़ में जुट गए थे.

अगस्त 2020 में ही, वैक्सीन आने से पहले, Sanofi और पार्टनर GlaxoSmithKline Plc से सप्लाई सुरक्षित करने के लिए अमेरिका और ब्रिटेन कदम उठा चुके थे, जापान और Pfizer के बीच समझौता हो चुका था. एडवांस में प्रोक्योरमेंट डील हो चुकी थी.

लेकिन हम सजग नहीं थे.

क्या है भारत की स्थिति?

भारत की आबादी कोविड-19 वैक्सीन के खिलाफ लड़ाई को लेकर 2 वैक्सीन पर ही निर्भर है. फिलहाल, भारत बायोटेक की स्वदेशी वैक्सीन- कोवैक्सीन और ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका की कोविशील्ड, जिसे सीरम बना रही है, उनको ही मंजूरी मिली है.

दारोमदार सिर्फ 2 कंपनियों पर है.

भारत बायोटेक का एक साल में कोवैक्सिन की 150 मिलियन डोज बनाने का अनुमान है लेकिन फिलहाल हर महीने सिर्फ 4-5 मिलियन डोज का उत्पादन हो रहा है. SII कोविशिल्ड की करीब 65-70 मिलियन डोज का उत्पादन हर महीने कर रहा है लेकिन कंपनी उत्पादन बढ़ाने को लेकर बेबस नजर आ रही है.

रूस की गामालेया रिसर्च इंस्टीट्यूट के साथ भी भारत की लाइसेंस डील है, जिसके तहत हैदराबाद की डॉ. रेड्‌डीज लेबोरेटरीज को स्पुतनिक वैक्सीन की 200 मिलियन डोज का उत्पादन करना है. लेकिन लंबे समय से इसका फायनल अप्रूवल प्रोसेस में है.

अन्य वैक्सीन भी कतार में हैं, लेकिन उन्हें लेकर खास जानकारी उपलब्ध नहीं है.

अन्य देशों को की गई आपूर्ति

भारत सरकार ने कोविड-19 वैक्सीन की 5 करोड़ से ज्यादा डोज की 70 से ज्यादा देशों को आपूर्ति की है. 17 मार्च को राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण राज्यमंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने कहा, "5.8 करोड़ वैक्सीन की डोज भारत से विदेशों में भेजी गई."

10 फरवरी को लोकसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कह चुके हैं कि- “आज फार्मेसी में हम आत्मनिर्भर हैं. हम दुनिया के कल्याण के काम आते हैं.”

वैक्सीन आपूर्ति को लेकर WHO से तारीफ मिल चुकी है. भारत से 90 लाख डोज प्राप्त करने वाला बांग्लादेश सबसे बड़ा लाभार्थी बना. लेकिन आज हमारे देश में ही लोगों को कमी का सामना करना पड़ रहा है.

भारत को कितनी जरूरत है?

भारत सरकार ने ऐलान किया था कि वो 30 करोड़ लोगों को जुलाई के अंत तक वैक्सीन लगा देगी.

वैक्सीनेशन प्रोग्राम 16 जनवरी से शुरू हुआ. हम लक्ष्य से काफी पीछे हैं. 3 महीने में हम 8 करोड़ डोज देने का सफर तय कर पाए हैं. 6 अप्रैल तक 8,70,77,474 कोरोना वैक्सीन डोज दिए गए हैं.

इकनॉमिक इंटेलिजेंस यूनिट की रिपोर्ट बताती है कि दुनिया में सबसे ज्यादा वैक्सीन बनाने वाले 2 देश चीन और भारत 2022 के अंत तक भी अपने यहां पर्याप्त वैक्सीनेशन नहीं कर पाएंगे. इसकी एक बड़ी वजह तो यह है कि दोनों के यहां बहुत बड़ी आबादी है और हेल्थ वर्करों की संख्या भी पर्याप्त नहीं है.

मुंबई में इंटरनल मेडिसिन स्पेशलिस्ट डॉ. स्वप्निल पारिख ने इससे पहले क्विंट से हुई बातचीत में देश में कोविड मामलों की आने वाली दूसरी लहर के मद्देनजर “पीक से कुछ हफ्ते पहले वैक्सीनेशन को बढ़ाने” के महत्व पर जोर दिया था.

“अगर हम आज (वैक्सीनेशन) बढ़ाते हैं, तो भी आज जिन लोगों को वैक्सीन लगाई जाती है, उन्हें अगले 3 हफ्तों तक सुरक्षा नहीं मिलेगी. और इन 3 हफ्तों में हमें तबाही का सामना करना पड़ सकता है.”
डॉ. स्वप्निल पारिख, इंटरनल मेडिसिन स्पेशलिस्ट

सवाल है कि दुनियाभर के कई देश कोरोना की दूसरी लहर से जूझ चुके हैं हालात का अंदाजा उससे लगाया जा सकता था. क्या हम पहले से तैयारी नहीं रख सकते थे?

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Published: 07 Apr 2021,09:49 PM IST

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