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हिरासत में हत्या पार्ट 3- पूरे जिस्म पर थे जख्म, फिर पुलिस कैसे हो गई बेगुनाह?

अंबेडकरनगर SP के मुताबिक मजिस्ट्रियल जांच में इस हत्या के लिए किसी को भी दोषी नहीं माना गया

उत्कर्ष सिंह
वीडियो
Updated:
<div class="paragraphs"><p>मृतक जियाउद्दीन के पिता अलाउद्दीन खान और बेटी अतूफा</p></div>
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मृतक जियाउद्दीन के पिता अलाउद्दीन खान और बेटी अतूफा

फोटो- उत्कर्ष सिंह/क्विंट हिंदी

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वीडियो एडिटर: पुनीत भाटिया

सीनियर एडिटर: संतोष कुमार

हिरासत में होने वाली मौतों में इंसाफ मिलना बहुत मुश्किल होता है, कस्टोडियल डेथ के मामले सालों तक चलते रहते हैं. NHRC के पास फिलहाल कस्टोडियल डेथ के 3,984 मामले लंबित हैं. इन्हीं में से एक है आजमगढ़ के 38 साल के जियाउद्दीन खान की अंबेडकरनगर में हिरासत के दौरान हुई मौत का मामला. जहां पिछले 10 महीनों में आरोपी पुलिस वालों की गिरफ्तारी तक नहीं हुई है. हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने इस मामले से जुड़ी रिट पिटीशन ये कहते हुए खारिज कर दी कि ये मामला NHRC में लंबित है, इसलिए हाईकोर्ट आना जल्दबाजी है. NHRC जिला प्रशासन की रिपोर्ट का इंतजार कर रहा है, जबकि जिला प्रशासन पर मामले को दबाने के लिए न्यायिक मजिस्ट्रेट की बजाए एसडीएम से जांच कराने और NHRC के दिशा-निर्देशों की अनदेखी का आरोप है.

पवई, आजमगढ़, उत्तर प्रदेश

फोटो- क्विंट हिंदी

दरअसल, आजमगढ़ के रहने वाले 38 साल के जियाउद्दीन को 25 मार्च, 2021 को अंबेडकरनगर की SWAT टीम ने एक मामले में पूछताछ के लिए उठाया. आरोप है कि पुलिस जियाउद्दीन को आजमगढ़ से गैर कानूनी तरीके से अकबरपुर ले गई और इतना पीटा कि उनकी हिरासत में ही मौत हो गई. SWAT इंचार्ज देवेंद्र पाल सिंह समेत 8 पुलिसवालों पर हत्या और अपहरण का मुकदमा दर्ज हुए करीब 10 महीने बीत चुके हैं लेकिन आज तक उनकी गिरफ्तारी भी नहीं हुई है. कार्रवाई के नाम पर सिर्फ इन पुलिसवालों को निलंबित भर किया गया है. लेकिन दावा है कि ये सभी पुलिसवाले एसपी ऑफिस तक में आए दिन बेफिक्र घूमते दिख जाते हैं.

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पुलिस ने गैर कानूनी तरीके से जियाउद्दीन को हिरासत में लिया

मृतक जियाउद्दीन के भाई शहाबुद्दीन खान के मुताबिक, "24 मार्च 2021 को जियाउद्दीन रिश्तेदारी में जाने की बात कहकर घर से निकले थे, लेकिन अगले दिन जब फोन मिलाया तो उनका कोई पता नहीं लगा. 25-26 मार्च की रात मेरी भाभी के मोबाइल पर फोन आया कि उनकी तबियत ठीक नहीं है. लेकिन ये नहीं बताया गया कि वह कहां हैं? हम लोग काफी परेशान हो गए. जब हमने वो नंबर ट्रूकॉलर से चेक किया तो वो देवेंद्र पाल सिंह के नाम पर था. फिर पवई थाने (आजमगढ़) से हमारे जानने वाले दो लोगों को फोन आया कि जियाउद्दीन की तबियत ठीक नहीं है. लेकिन थाने से भी ये क्लियर नहीं बताया गया कि वो कहां हैं? हम लोग उन्हें ढूंढने लगे तो कुछ पता नहीं चला, हम जैतपुर थाने (अंबेडकरनगर) भी गए लेकिन वहां से भी कुछ पता नहीं चला तो हमने विधायक सुभाष राय से उस नंबर पर फोन मिलवाया तो देवेंद्र पाल सिंह ने बताया कि उनकी मौत हो गई है और उनकी लाश अंबेडकरनगर सदर अस्पताल में रखी हुई है."

शहाबुद्दीन ने आगे बताया, "हमने तहरीर दी और मॉर्चरी में ले जाकर वीडियोग्राफी के साथ पोस्टमॉर्टम कराया. पुलिस-प्रशासन तो एफआईआर करने को भी तैयार नहीं था लेकिन वहां के लोकल लोगों के सहयोग से हमने दबाव बनाया तब जाकर उन्होंने हत्या और अपहरण की धाराओं में केस दर्ज किया. वो लोग पोस्टमार्टम के दौरान वीडियोग्राफी करने को तैयार नहीं थे, इसलिए हमने डीएम को लेटर लिखा कि हम वीडियोग्राफी के साथ पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट चाहते हैं. जब डीएम ने सीएमओ को आदेश दिया तब जाकर वीडियोग्राफी हुई. हमें डाउट था कि चूंकि प्रशासन इसमें मिला हुआ है तो वो हमें सहयोग नहीं करेंगे और अभी तक कोई सहयोग भी नहीं हुआ है. एफआईआर के बाद अभी तक कोई खास कार्रवाई नहीं हुई है. SWAT टीम प्रभारी और दूसरे आरोपी सुलह के लिए इधर-उधर भाग रहे हैं लेकिन हम लोगों ने कहा कि हमें इंसाफ चाहिए."

जियाउद्दीन खान की पत्नी और बच्चे

फोटो- उत्कर्ष सिंह/क्विंट हिंदी

दावा है कि इस मामले को दबाने के लिए जिला प्रशासन ने आज तक मृतक जियाउद्दीन की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट भी सार्वजनिक नहीं की. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी जियाउद्दीन की मौत के मामले में जिला प्रशासन से रिपोर्ट मांगी हुई है. लेकिन जिला प्रशासन ने उसे भी गंभीरता से नहीं लिया. पुलिस ने तो अब तक चार्जशीट भी फाइल नहीं की है.
मुझको तकलीफ ये है कि अगर एक बार को उसे गोली मार दिये होते तो बर्दाश्त कर लेता मैं, उसको इतना टॉर्चर देकर के मारा गया है कि पूरे बदन पर जख्म की कोई गिनती नहीं थी कि कितने जख्म हैं? वजह मालूम होनी चाहिए कि मेरे बच्चे का कसूर क्या है, गलती क्या है? हमारे पवई थाने में भी उसका रिकॉर्ड बिल्कुल ठीक है. इस बुढ़ापे में मेरी माली हालत ठीक नहीं है, मेरा जवान बच्चा गया जो लकड़ी का कारोबार करता था और अपने बच्चों के लिए 100-50 रुपए कमाता था लेकिन आज इन बच्चों को देखने वाला कोई नहीं. मुझे सरकार से उम्मीद है कि मुझे इंसाफ चाहिए और जल्द से जल्द इंसाफ. बड़े-बड़े कातिल मर्डर करके बाहर घूमते हैं, मेरा बच्चा बेकसूर था, मारा गया, क्यों मारा गया? किसी को आज तक वजह नहीं पता चली. मुझे पूरी उम्मीद है कि इंसाफ मिलेगा क्योंकि सबसे बड़ा इंसाफ करने वाला तो ऊपर है लेकिन यहां इंसानों को भी इंसाफ करना चाहिए, बूढ़े बाप और बच्चों के हालात को देखते हुए. छिपाने की और मुजरिमों को बचाने की कोशिश हो रही है.
अलाउद्दीन खान (मृतक जियाउद्दीन के पिता)

एसडीएम की जांच रिपोर्ट में पुलिसवाले दोषी नहीं पाए गए- एसपी

घटना के तुरंत बाद 26 मार्च, 2021 को अंबेडकरनगर के एसपी आलोक प्रियदर्शी ने ये दावा किया था कि पुलिस को लूट के मामले में एक बदमाश की तलाश थी. मुखबिर से सूचना मिली थी कि जियाउद्दीन उस बदमाश के बारे में जानता है और जानकारी दे सकता है. इसलिए अंबेडकरनगर की SWAT टीम ने उसको पूछताछ के लिए उठाया था. पूछताछ के दौरान जियाउद्दीन ने तबियत खराब होने की शिकायत की. उसे तत्काल चिकित्सा के लिए जिला अस्पताल ले जाया गया, उसे 1:12 बजे भर्ती कराया गया और 1:45 बजे उसकी मृत्यु हो गई. एसपी का कहना था कि डॉक्टरों ने उन्हें बताया था कि जियाउद्दीन को सांस फूलने की दिक्कत थी और उसके सीने में दर्द था.

आलोक प्रियदर्शी, एसपी, अंबेडकरनगर

फोटो- उत्कर्ष सिंह/क्विंट हिंदी

अंबेडकरनगर SP आलोक प्रियदर्शी के मुताबिक मजिस्ट्रियल जांच में इस हत्या के लिए किसी को भी दोषी नहीं माना गया है और न ही पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में मौत का कारण स्पष्ट है इसलिए मृतक का विसरा जांच के लिए भेजा गया है. एसपी ने पीड़ित परिवार के सभी आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया.

जियाउद्दीन मामले में हाईकोर्ट मे रिट दायर करने वाली वकील आशमा इज्जत ने रिट पिटीशन खारिज होने के बाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए कहा कि ऐसा कुछ भी नहीं है कि अगर NHRC में कोई केस चल रहा है तो हाईकोर्ट उस पर कोई फैसला नहीं दे सकता या मामले में तेजी लाने के लिए निर्देश नहीं दे सकता. लेकिन कस्टोडियल डेथ के मामले में हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच का रवैया ये है कि वो उस फीलिंग को नहीं समझ रहे कि हिरासत में मौत के बाद उसके आश्रित परिजन किस दौर से गुजर रहे होते हैं, इसीलिए उन्होंने रिट को डिसमिस कर दिया. वरना कम से कम निर्देश तो दिए जा सकते थे. हमारी ही सोसाइटी से जाकर लोग जज बनते हैं, ऐसा तो नहीं है कि ऊपर से आते हैं. चाहे पुलिस हो या न्यायपालिका, वो सेंसिटिव नहीं है क्योंकि वो ग्राउंड पर नहीं जाते. इसलिए उनको वो दर्द महसूस ही नहीं हो पाता.

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Published: 22 Jan 2022,07:01 PM IST

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