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VIDEO | दास्तान-ए-गांधी में देखिए गांधी के भारत लौटने की कहानी

ये है गांधी के महात्मा बनने की दास्तान जो हम आपके सामने 13वीं सदी की दास्तानगोई कला के जरिए पेश कर रहे हैं 

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पेश है दास्तान-ए-गांधी: एक डिजिटल दास्तानगोई
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पेश है दास्तान-ए-गांधी: एक डिजिटल दास्तानगोई
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उनका आना इस देश की मिट्टी के लिए सौभाग्य था. उन्होंने हमेशा अच्छे रास्ते की तरफ देश को चलने के लिए प्रेरित किया. वो एक सच्चे देशभक्त थे जो देश के लिए जीते रहे और देश के लिए ही मरे.

वो थे मोहनदास करमचंद गांधी, और ये है उनकी दास्तान. ये दास्तान हम आपके सामने 13वीं सदी के दास्तानगोई कला के जरिए पेश कर रहे हैं.

दास्तान-ए-गांधी: डिजिटल दास्तानगोई

बचपन से ही मोहनदास को अपने ऊपर बहुत विश्वास था. उनके अंदर जिद बहुत थी और एक अजब सा एतमाद था. और अगर एक बार इरादा कर लेते तो किसी को भी खातिर में न लाते थे. एक दिन मोहनदास ने सो-शा छोड़ा कि वो इंग्लिस्तान जाएंगे और वहां से बड़े बैरिस्टर बनकर वापस आएंगे. घर में ये बात सुनकर एक सन्नाटा सा छा गया. लेकिन बेटा जिद्दी था, ये बात सबको पता थी. वहीं पास में एक जैन साधु रहते थे. उनकी माता ने कहा साधु से कि वो मोहन को समझाएं. कुछ नसीहत भी करें, और करें कुछ उपाय. साधु ने कहा- ये बालक उड़ता पंछी है, इसकी परवाज न रोको. जो भी ये करना चाहता है इसे करने दो. माता ने कहा मजबूर होकर- इससे लीजिए ये कसम कि ये गोश्त कभी नहीं खाएगा और न ही किसी अंग्रेज मेम को मुंह लगाएगा. तो इस तरह मोहनदास साल 1888 में इंग्लिस्तान पहुंचे. वहां तीन साल तक वो रहे और खूब फले-फूले. कानून की तालीम पूरी करके ये नौजवान बैरिस्टर वतन वापस आया. बैरिस्टरी के काम में सालभर के अंदर काफी नाम कमाया. तभी मोहनदास को दादा अब्दुल्ला जैसे बड़े बिजनेसमैन का साउथ अफ्रीका से एक लंबा-चौड़ा खत आया. लिखा था- मोहनदास तुम अफ्रीका आ जाओ, मुझे जरूरत है तुम्हारी. मोहनदास ने सोचा न था कि वो साउथ अफ्रीका ऐसे जाएंगे कि अगले 20 साल तक बस वहीं के हो जाएंगे. जुल्म-ज्यादती और नाइंसाफी का हर तरफ दौर-दौरा था. वहशी गोरों ने इंसानियत को कहीं का न छोड़ा था

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मोहनदास को वहां जुल्मो-सितम का सामना करना पड़ा. पर मुकाबले के लिए सत्याग्रह का रास्ता मोहनदास ने चुना. तो नतीजा ये हुआ कि अपने गांधी, धीरे-धीरे महात्मा वहीं बनने लगे और धीरे-धीरे हजारों लोग उनके पीछे आ गए. और फिर साउथ अफ्रीका में हिंदुस्तानियों की जिंदगी संवारकर. साल 1914 में मोहनदास करमचंद गांधी वतन वापस आ गए. हिंद वापस आकर बापू ने पूरे मुल्क का दौरा किया. अमन का ये पयंबर संदेशा अपना लेकर घर-घर गया.

यही वो दौर था जब पहली आलमे जंग के शोले दुनिया भर में फैलने लगे थे. यही वो जमाना था जब अंग्रेज हिंदुस्तानियों को हिंदुस्तानियों से लड़ाना चाहते थे. ‘फूट डालो और राज करो’ की पाॅलिसी आजमाना और फैलाना चाहते थे.

तो किस्सा कुछ यूं है जनाब..

भारत आकर महात्मा गांधी ने साबरमती में अपना एक आश्रम खोला और चंपारण से लेकर अहमदाबाद तक हर जुल्म के खिलाफ हल्ला बोला. मुल्क ने उनकी दावत को ‘लव बैक’ कहा और हर शख्स उनके पीछे आ गया. महात्मा गांधी की शोहरत मुल्क के बाहर भी थी लगी फैलने और सारी दुनिया पुरउम्मीद होकर उनको लगी थी देखने. बापू देश के कोने-कोने में गए और भारत के लोगों को गांव-गांव जाकर ललकारा और पुकारा और जोर देकर कहा कि-

ऐ भारत जाग

ऐ हिंदुस्तान संभल, तोड़ दे गम की जंजीरें और बस भाग निकल

अब 2018 पर आते हैं. आजादी मिले 71 साल हो चुके हैं. कई दशकों का बदलाव देश ने देखा. लेकिन क्या वो सारे बदलाव अच्छे रहे?

वो देश जो बापू अपने पीछे छोड़ गए थे

हमारे देश में बापू की 150वीं जयंती मनाई जा रही है. लेकिन कुछ नई वास्तविकता हैं जिसका सामना अगर बापू करते तो वो जरूर उदास हो जाते.

जिस बापू ने अपने पूरे जीवन में अहिंसा अपनायी आज लिंचिंग की रिपोर्ट और भीड़ के न्याय वाली हेडलाइन को देख क्या कहते?

जिस बापू ने अपने पूरे जीवन में सत्य का पाठ दूसरों को पढ़ाया आज सोशल मीडिया, वॉट्सऐप पर फैलते घिनौने फेक न्यूज के बारे में क्या कहते?

जो शख्स अलग-अलग धर्मों के लोगों के बीच शांति और सहिष्णुता के लिए खड़े रहे वो टीवी शो पर फैलते नफरत के कारोबार, नेताओं के जहरीले भाषण को जरूर खारिज कर देते.

गांधी, देश की ये हालत देख बहुत दुखी होते लेकिन फिर भी गांधी जयंती की शुभकामनाएं!

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Published: 01 Oct 2018,09:03 PM IST

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