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देश का अहम इस्लामी शिक्षण संस्थान दारुल उलूम फिलहाल 'फॉर्म' में दिख रहा है. दारुल उलूम ने एक के बाद एक कई फतवे जारी कर कई तरह की पाबंदिया लगा दी हैं. अपने अलग-अलग फतवों में संस्थान ने एक फतवे में ये कहा कि औरतों को शरीर के अंगों को जाहिर करने वाले तंग बुर्के नहीं पहनने चाहिए.
वैसे इसमें कुछ नया नहीं है. इससे पहले भी कई तरह के फतवे जारी किए जा चुके हैं. लेकिन इन फतवों के जरिए पाबंदियां उनपर ही लगाई जाती हैं जिन्हें समाज आसानी से टारगेट करता आया है हर बार. सदियों से करता आ रहा है और जो इस सदी में भी जारी है.
और ये आसान टारगेट होती हैं औरतें!
मामला धर्म का नहीं है. मामला उस मानसिकता का है जिसके हिसाब से पुरूषों के लिए एक स्टैंडर्ड और उसमें भी काफी लचीलापन है. लेकिन महिलाओं के लिए वही पुरातनपंथी बातें, पितृसत्ता वाली सोच और जोर जबरदस्ती लागू करने की जिद.
वैसे भी मुस्लिम मर्द हों या औरत उनके लिए क्या ‘सही’ है क्या ‘गलत’ ये तय करने का इनको एकाधिकार नहीं.
महिलाएं बुरी नजर की शिकार हो न हों लेकिन ऐसे फतवा जारी करने वालों को अपना नजरिया बदलने की सख्त जरूरत है. संविधान ने इन महिलाओं को भी वही अधिकार दिए हैं जो मर्दों को. फिर इनके पहनावे को लेकर ये किस सदी तक बवाल मचाते रहेंगे.
जब संसद मुस्लिम समाज में गहरे पैठ बना चुकी तीन तलाक जैसी कुरीति के खिलाफ कानून बनाने की पहल कर रही है. इस बीच बुर्का के रंग, साईज के बारे में जारी होने वाला फतवा ये दर्शाता है कि कुछ लोग नहीं चाहते की महिलाओं को सम्मान और समान अधिकार मिले.
ऐसे फतवों को जारी करने वालों को समझने की जरुरत है कि इस समय, इस सदी में अब डिजाइनर बुर्कों से नहीं बल्कि इन फतवों से तौबा करने की जरुरत है!
कैमरा- शिव कुमार मौर्य
एडिटर- पुरुनेंदू प्रीतम
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Published: 06 Jan 2018,08:16 PM IST