Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Videos Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019सांसें छीन लेने वाली इस हेल्थ इमरजेंसी में सरकार क्या कर रही है?

सांसें छीन लेने वाली इस हेल्थ इमरजेंसी में सरकार क्या कर रही है?

रिपोर्ट के मुताबिक 2017 में करीब 2 लाख बच्चों की मौत जहरीली हवा से हुई यानी लगभग साढ़े पांच सौ बच्चों की हर रोज मौत.

शादाब मोइज़ी
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हवा में जहर है या सरकार बेअसर है. 
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हवा में जहर है या सरकार बेअसर है. 
(फोटो: क्विंट हिंदी)

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कैमरा- शिव कुमार मौर्या

वीडियो एडिटर-अभिषेक शर्मा/आशुतोष भारद्वाज

“दिलों की ओर धुआं सा दिखाई देता है, ये शहर तो मुझे जलता दिखाई देता है...” शायर अहमद मुश्ताक ने ये क्यों लिखा पता नहीं, लेकिन ये सच है कि मेरा शहर धुंआ-धुआं सा दिखाई दे रहा है. दिल्ली-एनसीआर, लखनऊ, पटना, कानपुर, बागपत, और कितने शहरों के नाम लूं, यहां बिना आग के ही धुंआ नजर आता है.

गैस चेंबर, जहरीली हवा, दमघोटू शहर, एयर इमर्जेंसी, धुंध की चादर, मौत की हवा, ये सारी हेडलाइन आजकल के अखबारों और चैनलों की सुर्खियां बनती हैं, लेकिन सॉल्यूशन पूछ लो तो बस- बच्चों के स्कूल बंद कर दो, यज्ञ करा लो, पाकिस्तान की साजिश है कह दो.

हर साल की तरह एक बार फिर दिल्ली-एनसीआर की हवा साइलेंट किलर बन गई है. मानो अब बस गले के अंदर घुसकर सांसें रोक देंगी. राइट टू ब्रीथ अब लेट इट डाई बनता जा रहा है.

लेकिन सवाल ये है कि इस हेल्थ इमरजेंसी में सरकार क्या कर रही है? क्यों उसे लोगों की जिंदगी की फिक्र नहीं है? अब भी अगर मौसम की दुहाई और सब खुद ब खुद ठीक हो जाएगा वाला Attitude है तो इस जहरीली हवा में खड़े होकर हम तो पूछेंगे जनाब ऐसे कैसे.
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सरकार ने खरीदे 36 लाख रुपये के 140 एयर प्यूरीफायर

हर साल की तरह, इस बार भी दिवाली की रोशनी के बाद कई शहर दिन में ही अंधेरे में डूबे नजर आए. दिल्ली और देशभर में लोग धीरे-धीरे तिल-तिल कर हवा में घुले जहर को पीने को मजबूर हैं. मंगलयान, चंद्रयान पर पैसे खर्च कर सकते हैं, और करना भी चाहिए, लेकिन धुंध की इस कालिख को पोछने की कोई चिंता क्यों नहीं?

रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक सरकार ने 2014 से 2017 के बीच 36 लाख रुपये के 140 एयर प्यूरीफायर खरीदे.

अच्छी बात है. पीएम और देश चलाने वाले हमारे अधिकारियों की सेहत बहुत जरूरी है. लेकिन जनाब जनता की सेहत का क्या? मास्क लगाएं? घर में कैद हो जाएं? या आंखें मूंदकर भगवान का नाम लेते हुए इस महीने के गुजरने का इंतजार करें.

सुप्रीम कोर्ट ने लगाई फटकार

हाल इतना बुरा है कि सुप्रीम कोर्ट को सरकारी एजेंसियों को फटकार लगानी पड़ रही है. सुप्रीम कोर्ट के गुस्से के बाद पीएम नरेंद्र मोदी ने केंद्रीय कृषि मंत्रालय को यूपी, पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने वालों के खिलाफ कदम उठाने को कहा. नेताओं ने प्रदूषण पर पॉलिटिक्स भी खूब चमकाई. वहीं दिल्ली सरकार ने ऑड-इवन स्कीम लागू किया है. लेकिन क्या इतने से आप आजादी से सांस ले पाएंगें? क्या पराली जलाना ही इन सबके लिए जिम्मेदार है? दिल्ली में प्रदूषण के कई सोर्स हैं. पंजाब और हरियाणा करीब 17-44% तक इसमें योगदान करते हैं. बाकी दिल्ली के अंदरूनी कारण, जैसे इंडस्ट्रियल पॉल्यूशन, गाड़ी, कंस्ट्रक्शन भी इसके लिए जिम्मेदार होते हैं.

कोर्ट ने प्रदूषण से निपटने के लिए 3 दिसंबर तक जापानी तकनीक का अध्ययन कर रिपोर्ट देने साथ ही हाइड्रोजन-बेस्ड फ्यूल टेकनोलॉजी का इस्तेमाल करने की संभावना के बारे में पता लगाने को कहा है.

कमाल है ना सुप्रीम कोर्ट को जापान की टेक्नोलॉजी बतानी पड़ रही है. टेक्नोलॉजी तो छोड़िए, आप पराली का जलना तक नहीं रोक पाए. कोर्ट ने ये तक कह दिया कि "सरकार की ओर से समस्या का समाधान खोजने के लिए बहुत कम कोशिश किए गए हैं." चलिए अगर आपने प्रदूषण रोकने के लिए कुछ किया है, तो यही बता दीजिए कि आप कौन सी टेक्नोलॉजी लेकर आए. अगर लाए हैं, तो असर क्यों नहीं दिखता?

ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीस की रिपोर्ट बताती है कि 2017 में करीब 2 लाख बच्चों की मौत जहरीली हवा से हुई यानी लगभग साढ़े पांच सौ बच्चों की हर रोज मौत.

अब सवाल बस इतना है कि हर साल प्रदूषण जान लेने को उतारू हो जाता है फिर हम क्यों नहीं वक्त से पहले कुछ करते हैं? ये जापान की टेक्नोलॉजी हो या स्मॉग कंट्रोल टावर्स, इनके बारे में पहले क्यों नहीं सोचा गया? क्यों नहीं पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बढ़ावा दिया जा रहा है. जनाब हम 5 ट्रिलियन डॉलर की इकनॉमी बन भी जाएं, तो क्या फायदा अगर साफ हवा ही नहीं मिलेगी. और अगर राजनीतिक दल और सरकार के लिए ये मुद्दा नहीं है तो भी हम अपने देश की सेहत के लिए पूछेंगे जनाब ऐसे कैसे?

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Published: 15 Nov 2019,03:11 PM IST

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