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पॉलिसी पैरालिसिस: गलत फैसले, जानलेवा गलतियां बंद कीजिए

दूसरी कोविड लहर में जिन हजारों जिंदगियों को बचाने में हम में नाकाम रहे...उसकी वजह है - पॉलिसी पैरालिसिस!

रोहित खन्ना
वीडियो
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(फ़ोटो: क्विंट हिंदी)
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(फ़ोटो: क्विंट हिंदी)

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वीडियो प्रोडियूसर: मौसमी सिंह, शोहिनी बोस

वीडियो एडिटर: विवेक गुप्ता, पूर्णेन्दु प्रीतम

कैमरा: शिव कुमार मौर्या

ये जो इंडिया है ना… कोरोना की दूसरी लहर में जो हो रहा है.. इसका कोई भी देशवासी हकदार नहीं है. लोग फुटपाथ पर अपने परिजानों का अंतिम संस्कार कर रहे हैं. मृतकों के शव अमानवीय तरीके से जमा होते जा रहे हैं. लोग मर रहे हैं क्योंकि ऑक्सीजन सिलेंडर, आईसीयू बेड, या डॉक्टर, या दवाई नहीं है. लोग मर रहे हैं क्योंकि हम वैक्सीन उत्पादन के लिए अपनी पूरी क्षमता को अनलॉक करमें में अबतक फेल हुए हैं. लेकिन हम इस मोड़ पर क्यों आ पहुंचे हैं? दुर्भाग्य से ये सिर्फ वायरस की वजह से ही नहीं है. ये पॉलिसी पैरालिसिस भी है. कोई भी कदम उठाने में फेल, कोई भी कदम उठाने से इनकार, या बहुत देर से कदम उठाना...यही होता है पॉलिसी पैरालिसिस. जिसकी वजह से अब 22 अप्रैल तक देश में करीब 2 लाख मौतें, 20 लाख से ज्यादा एक्टिव केसेस, रोज 3 लाख से ज्यादा नए केसेस आ रहे हैं.

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पहले वैक्सीन की बात करते हैं. सरकार का नारा था-जब तक दवाई नहीं, तब तक ढिलाई नहीं. यानी सरकार को पता था कि वैक्सीन सबसे जरूरी है. लेकिन उत्पादन बढ़ाने के लिए क्या किया गया? कुछ भी नहीं. जबकी यूके और यूएस जैसे देशों ने वैक्सीन कंपनियों को एडवांस फंडिंग दी. इंडिया के सबसे बड़े वैक्सीन निर्माता सीरम इंस्टीट्यूट और भारत बायोटेक को कई सरकारी मदद नहीं मिली. सीरम इंस्टीट्यूट ने उत्पादन बढ़ाने के लिए खुद 2,000 करोड़ रुपये का निवेश किया. उन्हें बिल और मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन से भी 2,200 करोड़ रुपये मिले. भारत बायोटेक ने भी खुद से ही निवेश जुटाया. बिल और मेलिंडा गेट्स को सबसे बड़े वैक्सीन कंपनी की मदद करने का खयाल आया.. लेकिन हमारी सरकार को नहीं.

अगस्त 2020, तक यूएस की सरकार ने मॉडर्ना, फाइझर, जॉनसन एंड जॉनसन समेत कई वैक्सीन कंपनियों में 44, 700 करोड़ रुपये का निवेश कर दिया था. सरकारे यही करती हैं. वो आगे की सोचती हैं. हमने इतने महीने क्यों जाने दिए? हमने वैक्सीन निर्माताओं को  4,500 करोड़ एडवांस देने के लिए 19 अप्रैल 2021 तक का इंतजार क्यों किया? जवाब है पॉलिसी पैरालिसिस.

एक और बात- इंडिया की वर्तमान वैक्सीन उत्पादन क्षमता जो कि 7 से 10 करोड़ है.. वो हमारी मासिक जरूरत, जो 15 से 20 करोड़ की है, उसको पूरा करने के लिए काफी नहीं है. और हमारी सरकार को ये पहले से पता है. लेकिन इस कमी को पूरा करने के लिए क्या हमने दूसरे उत्पादकों से वैक्सीन पहले से बुक कराए हैं? जी नहीं. अगस्त 2020 तक यूएसए अलग अलग फार्मा कंपनियों से 40 करोड़ वैक्सीन डोज बुक कर चुकी थी. यूरोपियन यूनियन ने नवंबर 2020 तक 80 करोड़ वैक्सीन के डोज बुक कर लिए थे. क्या आप जानते हैं कि इंडिया ने अपना पहला बैक्सीन ऑर्डर कब दिया? और वो भी सिर्फ 1 करोड़ 60 लाख डोज का.. जनवरी 2021 में. 130 करोड़ लोगों के देश के लिए इतना छोटा ऑर्डर? और वो बी इतनी देर से? क्यों ? जवाब है पॉलिसी पैरालिसिस.

और अब दूसरी कोविड लहर की चपेट में जब मृत्यु दर और एक्टिव केसेस रिकॉर्ड ऊंचाइयों पर हैं, सरकार ने आखिरकार विदेश वैक्सीन कंपनियों को इंडिया में वैक्सीन सप्लाई करने के लिए कहा है. लेकिन इन कंपनियों के पास पहले से ही करोड़ों के ऑर्डर आ चुके हैं. क्या वो तुरंत इंडिया को सप्लाई कर पाएंगे? जी नहीं. जब तक ये संभव होगा, तब तक कई और जाने जाएंगी. जिंदगियां जो बचाई जा सकती थी.

अब.. ऑक्सीजन के बारे में बात करते हैं.. बार-बार मरीजों के परिवार वाले ऑक्सीन के लिए बिनती कर रहे हैं. डॉक्टर ऑक्सीन के लिए बिनती कर रहे हैं. कई राज्य ऑक्सीजन के लिए केंद्र से गुहार लगा रहे हैं. कोविड की दूसरी लहर में कई लोग वायरस की वजह से कम बल्कि ऑक्सीजन की कमी के कारण ज्यादा मर रहे हैं. जिंदगियां जो बचाई जा सकती थी.

न्यूज वेबसाइट स्क्रॉल के मुताबिक अक्टूबर 2020 में कोरोना के इंडिया में आने के कई महीने बाद मोदी सरकार ने देश के 150 जिला अस्पतालों में, 162 ऑक्सीजन प्रोडक्शन यूनिट के लिए टेंडर जारी किया था. कीमत सिर्फ 201 करोड़, जो पीएम केयर्स फंड से मिल भी गया. लेकिन आज 6 महीने बाद, क्या आप जानते हैं कि इन 162 यूनिट में से कितने इंस्टॉल हुए? सिर्फ 33.  यूपी में, 14 ऑक्सीजन यूनिट में से, क्या आप जानते हैं कि कितने इंस्टॉल हुए? एक भी नहीं. क्या आज इन  150 जिला अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी है? हां, बिलकुल है. जिसकी वजह से लोग मर रहे हैं. क्या आप जानते हैं क्यों?जी हां, पॉलिसी पैरालिसिस.

चलिये और आगे चलते हैं..क्या आपने B.1.167 के बारे में सुना है? ये कोरोना वायरस का इंडियन ओरिजिन डबल म्यूटेंट रूप है या स्ट्रेन है. कई एक्सपर्ट्स मानना है कि कोविड की दूसरी लहर के लिए यही B.1.167 ज्यादातर जिम्मेदार है. लेकिन क्या आप जानते हैं इस वायरस स्ट्रेन का पता 5 अक्टूबर 2020 को लग चुका था? सरकार को उसी दिन अलर्ट हो जाना चाहिए था. इस वायरस के स्ट्रेन के हजारों सैंपल की जीन सिक्वेसिंग का काम शुरू हो जाना चाहिए था..इसे अच्छे से समझने के लिए...इसके बेहतर इलाज के लिए. लेकिन फिर एक बार हम स्लो थे.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक हमने अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर में कुछ नहीं किया. सिर्फ जनवरी में 10 लैबोरेट्रीट का एक नेटवर्क, कोविड जिनोमिक्स कॉन्सटोर्यिम, जिनोम सिक्वेसिंग की गलती बढ़ाने के लिए बनाया गया. 115 करोड़ रुपए बजट के साथ, लेकिन अप्रैल आ गया..और इन लैब ने कुछ खास हासिल नहीं किया है..क्या आप जानते हैं क्यूं? क्योंकि केंद्र सरकार ने डिपार्टमेंट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी को 115 करोड़ रुपए नहीं दिए! उनसे कहा गया कि पैसे खुद ही इकट्ठा कीजिये. और डिपार्टमेंट 80 करोड़ रुपए जुटा पाया सिर्फ 31 मार्च तक. इस घातक स्ट्रेन के पता चलने के 6 महीने बाद.

जैसा कि हम सभी जानते हैं...31 मार्च तक दूसरी कोविड लहर हमारे काबू के बाहर निकल चुकी थी. लाखों केस...हजारों मौतें..जिंदगियां जिन्हें हम बचाने में नाकाम रहे. क्यों? जवाब है...पॉलिसी पैरालिसिस!

कुछ दूसरे सवाल भी हैं- कुंभ जैसे धार्मिक आयोजनों को अनुमति क्यूं दी गई? क्या सरकार को पता नहीं था कि वहां कोविड गाइडलाइंस का पालन असंभव होगा ? उन्हें पता था.. लेकिन आस्था और गौरव के सामने स्वास्थ्य क्या चीज है? एक मेगा सुपर-स्प्रेडर इवेंट को अनुमति देने के बाद.. फिर आनन फानन में उसे रोक दिया गया.. लेकिन हम जानते हैं कि नुकसान हो चुका है. एक और सवाल - विधान सभा चुनाव के दौरान बड़े पैमाने पर रैलियों की अनुमति क्यों दी गई? जिन्हें आज रद्द किया जा रहा है. लेकिन हम सब जानते हैं.. कि नुकसान हो चुका है.

और आखिर में.. लॉकडाउन. पिछले साल लॉकडाउन पॉलिसी में कई गलतियां थीं. बिना किसी चेतावनी के.. सभी ट्रेनों और बसों को रोक कर, लाखों प्रवासी मजदूरों को महामारी के बीच, पैदल चलने पर मजबूर किया गया. इस से लाखों को तकलीफ हुई. और फिर भी सरकार ने तब लॉकडाउन लगाने के लिए बार-बार अपनी पीठ थपथपाई. इसलिए अब और भी कन्फ्यूज होने के लिए तैयार रहिए. क्योंकि पीएम ने 20 अप्रैल को कहा.. लॉकडाउन को अब अंतिम विकल्प बनाया जाए. तो लॉकडाउन होगा, लॉकडाउन नहीं होगा, पार्शियल लॉकडाउन होगा.. दूसरी लहर से निपटने के लिए सरकार की क्या पॉलिसी है? हम सच में नहीं जानते. इस बीच प्रवासी मजदूर एक बार फिर लौट रहे हैं.. एक बार फिर से अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी और फिर हजारों की मौत होगी.

लेकिन हम इतना जानते हैं कि ये जो इंडिया है न..इसके जिन हजारों परिवारों ने अपने प्रियजनों को खो दिया है, लाखों, जो आईसीयू बेड, ऑक्सीजन और वैक्सीन के लिए संघर्ष कर रहे हैं.. वो सभी देशवासी बेहतर डिजर्व करते हैं.

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