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इस साल के बजट में सरकार के कई अनुमान धरे के धरे रह सकते हैं.सरकार की आमदनी के अनुमान में एक बड़ी गड़बड़ हो सकती है. ये गड़बड़ शेयर बाजार कर सकता है. पिछले तीन ट्रेडिंग सेशन में शेयर बाजार बुरी तरह से टूटा है. और अब ये डर बढ़ गया है कि इस पूरे साल दुनिया के बाजारों में गिरावट का रह सकता है. भारत के बाजार भी मंदे रह सकते हैं. ऐसे में लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स से 20 हजार करोड़ रुपए की कमाई का अनुमान कैसे पूरा होगा?
बाजार के जानकार कहते हैं कि ग्लोबल हालात को देखते हुए ये टैक्स गलत वक्त पर लगाया गया है. अभी आम राय ये बन रही है कि बाजार कमजोर रहा तो ट्रेडिंग वॉल्यूम भी गिरेगा और STT से कमाई भी गिर सकती है.
बजट के बाद वित्त मंत्रालय के बड़े अफसरों ने अपने बजट अनुमानों को सही ठहराने के लिए कई तर्क दिए. एक तर्क ये था कि शेयरों से 3.76 लाख करोड़ रुपए की कमाई होती है जो टैक्स फ्री है. यानी इस पर 30 हजार करोड़ का टैक्स तो कहीं नहीं गया. फिर भी इस साल सिर्फ 20 हजार करोड़ और अगले साल 38 हजार करोड़ रुपए की टैक्स उगाही का अनुमान लगा रही है. इस साल 31 जनवरी के पहले तक की कमाई पर LTCG नहीं लगेगा. उसके बाद एक लाख की कमाई पर भी टैक्स नहीं लगेगा. यानी इन सब से बची कमाई कितनी होगी, उस पर कितना टैक्स आएगा ये सब अंधेरे में है.
इस नए टैक्स से सम्भव है कि निवेशक दूसरे विकल्पों की तरफ चले जाएं. सोना उनमें से एक हो सकता है.विदेशी निवेशक भारत के बाजार छोड़ेंगे तो नहीं, लेकिन अपने नए निवेश में भारत के लिए रकम थोड़ी भी काम कर देंगे तो उसका भी नेगेटिव असर होगा. जो लोग शेयरों से कमाई करना चाहते हैं, उन्हें लम्बे निवेश के लिए बढ़ावा देने के बजाय ये नई तजवीज शॉर्ट टर्म निवेश को बढ़ावा दे सकती है. यानी ट्रेडिंग की मानसिकता बढ़ेगी ना कि लॉन्ग टर्म निवेशक बनने की.
LTCG से टैक्स वसूली के आक्रामक अनुमान के कारण एक अलग बहस हो सकती है कि सरकार निफ्टी और सेंसेक्स कितना रहेगा - ये भविष्यवाणी कब से करने लग गयी? लेकिन हम इस मुद्दे को यही छोड़ देते हैं.
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अगर सरकार पूंजी बाजार में डिसइन्वेस्टमेंट के लिए नहीं आती और एक PSU को दूसरे PSU के शेयर खरीदने को मजबूर करती है तो उसे भी निवेशक, रेटिंग एजेन्सी और अर्थशास्त्री गलत समझते हैं, आंकड़ों की बाजीगरी समझते हैं. इसी तरह दो और आंकड़ों पर नजर रखिएगा- GST और एक्सपोर्ट के लक्ष्य भी काफी बड़े रखे गए हैं.सरकार अगर दूसरे जरियों से मोटा रेवेन्यू उठाने की कोशिश करती तो अच्छा रहता, ये डर हम जिनकी बातें कर रहे हैं, पैदा ना होते. लेकिन चुनावी वर्ष में सरकार के फैसलों के तर्क और कसौटियां एकदम अलग होती हैं.
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