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दिल्ली: कोरोना मृतकों के लिए कब्रिस्तान, महज 25% जमीन बाकी

दिल्ली के चार बड़े अस्पतालों से लाए जाते हैं कोरोना मृतकों के शव

क्विंट हिंदी
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(फोटो: क्विंट हिंदी)
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(फोटो: क्विंट हिंदी)

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कोरोना वायरस का कहर दिल्ली में लगातार बढ़ता ही जा रहा है. इस खतरनाक वायरस से रोजाना कई लोगों की मौत भी हो रही है. एक दिन में इतनी मौतों को लेकर श्मशान घाटों और कब्रिस्तानों में भी अब मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. दिल्ली के आईटीओ में एक ऐसा ही कब्रिस्तान है, जहां करोना वायरस से मरने वाले लोगों को लाया जाता है. लेकिन अब कुछ ही दिनों में यहां भी जगह की कमी होने वाली है.

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कोरोना हॉस्पिटलों में किसी मरीज की अगर मौत होती है तो उन्हें सीधे एंबुलेंस में यहीं लाया जाता है और सभी सावधानियां बरतते हुए दफनाया जाता है. ऐसे में मरने वालों के परिजन उनसे आखिरी बार ठीक से मुलाकात भी नहीं कर पा रहे हैं. हॉस्पिटल में मौजूद अपने ही उनके साथ कब्रिस्तान तक आते हैं और उन्हें सुपुर्द-ए-खाक करते हैं.

इस 3 एकड़ में फैले कब्रिस्तान में अब तक कुल 350 कोविड मृतकों को दफनाया जा चुका है. जिसके बाद कब्रिस्तान का 75 फीसदी हिस्सा भर चुका है. बाकी के 25 फीसदी हिस्से में 100 शवों को और दफनाया जा सकता है. 

अब कब्रिस्तान ने कोरोना मृतकों के लिए सरकार से और जमीन देने की मांग की है. कुछ ही दिनों में बची हुई जमीन भी फुल हो जाएगी, जिसके बाद समस्या खड़ी हो सकती है.

कब्रिस्तान में मौजूद इमाम वसीम ने बताया कि इन शवों के साथ वो चीज नहीं हो रही है जो बाकी शवों के साथ होता है. दफनाने से पहले मान्यताओं के मुताबिक जो भी चीजें होती हैं, उन्हें यहां नहीं किया जाता. शव आते हैं और उन्हें कपड़े में लपेटकर ऐसे ही बांधकर कब्र में उतार दिया जाता है. उन्होंने बताया कि एक दिन में इस कब्रिस्तान में ज्यादा से ज्यादा 15 शवों को दफनाया गया है.

लगातार बढ़ रही है शवों की संख्या

इस कब्रिस्तान के इंचार्ज शमीम ने बताया कि पहले एक दिन में करीब 3 बॉडी यहां आती थी, लेकिन कुछ दिन बाद बढ़कर ये 6 हो गईं. इसके बाद 8-10 बॉडी आने लगीं. फिलहाल औसतन यहां 12 शव रोज आ रहे हैं. शमीम ने बताया कि इस कब्रिस्तान में दिल्ली के चार बड़े अस्पतालों से बॉडी लाई जाती हैं. जिनमें एनएनजेपी हॉस्पिटल, आरएमएल हॉस्पिटल, सफदरजंग और एम्स शामिल हैं.

शमीम का कहना है कि वो और उनके साथ कुछ और लोग लॉकडाउन के बाद से ही यहां कब्रिस्तान में बैठे हैं. सबसे ज्यादा समस्या उन्हें दिल्ली की तपती धूप में काम करने से हो रही है. इस काम की वजह से उन्हें बच्चों और परिवार से दूर रहना पड़ रहा है. पिछले ढ़ाई महीने से वो लोग अपने परिवार के पास नहीं गए हैं.

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