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लॉकडाउन: मददगारों ने कहा-“भूख देखकर डर कहीं पीछे छूट जाता है”

जोखिम के बीच ये वॉलंटियर जरूरतमंदों की मदद करने निकल रहे

पूनम अग्रवाल
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कोरोनो वायरस प्रकोप के चलते हुए लॉकडाउन के कारण भूखे, बेघर और बेरोजगारों की मदद के लिए कई एनजीओ अपनी सेवा दे रहे हैं. कारवां ए मोहब्बत और युवा हल्ला बोल के साथ द क्विंट ने भी दिल्ली के अलग-अलग हिस्सों में जाकर देखा कि वॉलंटियर कैसे जोखिम उठाकर जरूरतमंदों की मदद कर रहे हैं.

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24 मार्च को लॉकडाउन की घोषणा के तुरंत बाद लाखों प्रवासी मजदूरों ने घर लौटने की कोशिश की. कुछ अपने घर पहुंचने में सफल हुए, तो कई लोग फंसे हुए हैं और अब अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

युवा हल्ला बोल की टीम हर दिन अलग-अलग इलाकों में 2,000 खाने का पैकेट बांटती है. वहीं कारवां ए मोहब्बत के वॉलंटियर रोज कमाने-खाने वालों और रिक्शा चालकों को खाना बांट रहे हैं.

हालांकि वॉलंटियर्स के लिए कोरोना वायरस के जोखिम के साथ ये काम करना आसान नहीं है. ये कहते हैं कि घर पहुंचने के बाद ये आइसोलेशन में रहते हैं.

कारवां ए मोहब्बत के ट्रस्टी और मानवाधिकार कार्यकर्ता हर्ष मंदर कहते हैं-

इस मुश्किल समय में अमीर और गरीब को या तो एक साथ डूबना होगा या एक साथ तैरना होगा. हमें अलग-अलग जरियों से बहुत सारे डोनेशन मिल रहे हैं. हम देश के कई शहरों में ऐसा होने की उम्मीद कर रहे हैं.
<b>हर्ष मंदर, मानवाधिकार कार्यकर्ता और ट्रस्टी, कारवां ए मोहब्बत</b>

हालांकि कई वॉलंटियर्स का कहना है कि उनके पास सीमित संसाधन हैं और सरकार को लॉकडाउन में फंसे लोगों की मदद के लिए और कदम उठाने चाहिए.

सामाजिक कार्य हमेशा सराहनीय होते हैं. ये एनजीओ सुनिश्चित कर रहे हैं कि कोई भूखा न रह जाए. हमारे स्वास्थ्य कर्मियों और डॉक्टरों की तरह, जो कोरोनो वायरस से जूझते हुए हर रोज अपनी जान जोखिम में डाल रहे हैं, ये वॉलंटियर्स भी दिन-रात मदद पहुंचाने में जुटे हुए हैं. ये हमारे समाज के असली हीरो हैं.

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