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वीडियो एडिटर: आशुतोष भारद्वाज
वीडियो प्रोड्यूसर: कनिष्क दांगी
ये जो इंडिया है न... इसका वोटर दूध का दूध और पानी का पानी करना जानता है.
दिल्ली चुनाव की जब काउंटिंग शुरू हुई तो कुछ गोदी मीडिया चैनलों ने कहा कि 2015 विधानसभा चुनाव के मुकाबले बीजेपी ने सुधार किया है.. लेकिन 8 सीट!.. 70 सीटों की विधानसभा में 8 सीटों को अच्छा प्रदर्शन नहीं कह सकते. ये सफाया कर देना है और इसे 2015 के चुनाव नहीं.... बल्कि 2019 के लोकसभा चुनाव की तुलना में देखना चाहिए.... जहां कुछ महीनों पहले बीजेपी ने सभी सात सीटें जीती थीं... उस प्रदर्शन से गिरकर 10 से कम सीटों में सिमट जाने पर बीजेपी को 'चिंतन' करना चाहिए.
विडंबना देखिए कि इस समय बीजेपी जिस शब्द से सबसे ज्यादा नफरत कर रही होगी.... वो शब्द है 'नफरत'! और धार्मिक मामलो में इसका भाई - कट्टरता... धार्मिक नफरत!
ये जो इंडिया है न.... ये अब भी सेक्युलर है... यही बात दिल्ली के वोटरों ने कह दी है... बीजेपी की कट्टरता और नफरत की राजनीति को पूरी तरह से नकार दिया है.... बीजेपी आजकल इन्हीं सब के भरोसे चुनाव लड़ रही है.
नफरत के भाषणों को अभूतपूर्व स्तर पर ले जाया गया... वो भी एकदम खुलेआम- मुसलमानों को निशाना बनाया गया... उन्हें गोली मार दो, बिजली का झटका दे दो.... देश के 15% नागरिकों के लिए वरिष्ठ नेताओं के खुलेआम जहरीले बयान.... और वो भी चुनाव जीतने की रणनीति के तहत
लेकिन ये जो इंडिया का वोटर है न... उसका जवाब इस नफरत की राजनीति के लिए साफ था...NO
अब राष्ट्रवाद की बात कर लेते हैं... बीजेपी ने 'राष्ट्रवादी' को मुस्लिमों से नफरत करने वाला मानने की भूल कर दी.. लेकिन कबसे? पुलवामा हमले के बाद आतंकवादियों के कैंपों पर बालाकोट स्ट्राइक हुई... जिसकी मदद से बीजेपी ने 2019 लोकसभा चुनाव में 303 सीटें जीत ली. लेकिन जो वोटर बालाकोट के लिए मोदी की तारीफ करता है.. क्या वो उनकी पार्टी की मुस्लिम विरोधी भावनाओं से भी इत्तेफाक रखता है? जवाब है नहीं.
अब बात करते हैं Hinduism की... बीजेपी ने एक और गलती की... पार्टी ने मान लिया कि एक अच्छा हिंदू, मुस्लिम से नफरत करने वाला और बीजेपी का वोटर है... फिर से मैं पूछता हूं.. कबसे? 2018 में राजस्थान, मध्य प्रदेश और राजस्थान में बीजेपी को सत्ता से किसने बाहर किया? मुख्य रूप से हिंदू वोटर ने. 2019 में बीजेपी को झारखंड में किसने हराया? मुख्य रूप से हिंदू वोटर ने. तेलंगाना, आंध्र, तमिलनाडु, बंगाल, महाराष्ट्र में गैर-बीजेपी सरकार हैं... हिंदू बहुल भारत में सभी लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुईं. इससे क्या पता चलता है? यही कि ऐसे बहुत से हिंदू हैं जो बीजेपी की दक्षिणपंथी, ध्रुवीकरण, मुस्लिम-विरोधी राजनीति से इत्तेफाक नहीं रखते.
लेकिन क्या ये बात बीजेपी की टॉप लीडरशिप को समझ आती है? पक्के तौर पर नहीं पता
जिस तरह लुटियन दिल्ली के इलीट की आलोचना के लिए कहा जाता है कि वो अपनी ही दुनिया में रहकर पार्टी को कोसते रहते हैं... ऐसे ही कहा जा सकता है कि बीजेपी की टॉप लीडरशिप भी शायद अपनी ही दुनिया में रहती है.
ऐसे ही अपनी ही दुनिया में रहने वाले पार्टी के सदस्य हैं राज्य सभा सांसद स्वपन दासगुप्ता. एक टीवी चैनल पर मैंने उन्हें 'शाहीन बाग जैसे प्रदर्शन उसके जैसे कई और इलाकों में बनने' के बारे में बात करते हुए सुना. इस टिप्पणी से मुझे दो बातें याद आईं. पहला- एंटी CAA प्रदर्शनों को लगातार महत्वहीन बनाने की कोशिश.. बावजूद इसके कि इन प्रदर्शनों की वजह से NRC वापस ले लिया गया और अब बीजेपी एक राज्य का चुनाव भी हार गई.. दूसरा- दासगुप्ता शायद कहना चाहते थे कि क्योंकि ये प्रदर्शन शाहीन बाग जैसे इलाके मतलब मुस्लिम एरिया में हो रहे हैं, इन्हे सीरियसली लेने की जरूरत नहीं. जाहिर तौर पर, ये सच नहीं है, क्योंकि प्रदर्शन पूरे देश में हो रहे हैं... और इसके बहुत सबूत मौजूद हैं. लेकिन मेरा प्वॉइंट है- अगर इसका विरोध सिर्फ मुस्लिम कर रहे हैं, तब भी ये प्रदर्शन महत्वहीन क्यों हैं? देश की करीब 15% लोग आपके इरादों से डर रहे हैं और आप सिर्फ उन्हें टारगेट कर रहे हैं, गाली दे रहे हैं?
माफ कीजिए.. ये जो इंडिया है न... यहां ऐसी राजनीति के लिए जीरो टॉलरेंस है.. कट्टरता और नफरत फैलाने वाले नेताओं के लिए कोई जगह नहीं है. जी हां... वोटर ने बटन दबाया है... लेकिन करंट लगा किसको? यही अब देश जानना चाहता है
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Published: 13 Feb 2020,09:51 AM IST