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‘प्रलय’ से सिर्फ 100 सेकंड दूर, तबाही के इतने करीब कभी न थी दुनिया

डूम्सडे क्लॉक में तबाही का कांटा सिर्फ 100 सेकंड दूर है

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(फोटोः क्विंट हिंदी /अर्णिका काला)
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(फोटोः क्विंट हिंदी /अर्णिका काला)

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कैमराः मुकुल भंडारी

वीडियो एडिटरः वरुण शर्मा

''एटम बमों के जोर से ऐंठी है ये दुनिया, बारूद के एक ढेर पर बैठी है ये दुनिया...'' 1954 की हिंदी फिल्म 'जागृति' के गाने का ये हिस्सा आज की दुनिया पर एकदम सही बैठता है. दरअसल जब ये फिल्म बनी उससे सात साल पहले यानी 1947 में एक घड़ी बनी थी, इसका नाम है डूम्सडे क्लॉक यानी कयामत की सांकेतिक घड़ी. इस घड़ी का कांटा इस वक्त कयामत यानी प्रलय के सबसे करीब है. इस वक्त दुनिया तबाही से महज 100 सेकंड दूर रह  गई है.

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एटमी युद्ध और जलवायु परिवर्तन सबसे बड़ा खतरा

इस घड़ी को मैनेज करने वाले वैज्ञानिकों के संगठन को ‘द एल्डर्स’ कहा जाता है. एल्डर्स पिछले साल घटी घटनाओं के आधार पर घड़ी के कांटे का आगे बढ़ाना या पीछे खिसकाना तय करते हैं. तो पिछले साल ऐसा क्या हुआ कि घड़ी का कांटा अब तक के इतिहास में प्रलय के सबसे करीब पहुंच गया?

वैज्ञानिकों के मुताबिक इस वक्त दुनिया को एटमी युद्ध और जलवायु परिवर्तन से सबसे ज्यादा खतरा है. ट्रंप राज में अमेरिका ने ईरान से एटमी समझौते को खत्म कर लिया. नॉर्थ कोरिया और अमेरिका के बीच युद्ध का खतरा हमेशा बना रहता है. पिछले साल दोनों में बात तो शुरू हुई लेकिन फिर किसी नतीजे तक नहीं पहुंची. 

इसके अलावा अगस्त 2019 में इंटरमीडिएट न्यूक्लियर फोर्सेज संधि भी लैप्स हो गई. अमेरिका ने रूस पर धोखे का आरोप लगाया और 1987 की इस संधि से बाहर हो गया. इसके साथ ही अमेरिका ने रूस की तरह ताकत पाने के लिए मीडियम रेंज की मिसाइलों का परीक्षण शुरू कर दिया.

अब रूस और अमेरिका को सीमा में बांधे रखने वाली सिर्फ एक चीज बची है जिसे न्यू स्टार्ट संधि कहते हैं और जो फरवरी 2021 में खत्म हो रही है. इस संधि की मियाद पांच साल बढ़ सकती है. रूस इसके लिए तैयार भी है. समस्या ये है कि ट्रंप ने शर्त लगा दी है कि अगर चीन इसमें शामिल हुआ तो ही वो इस संधि को आगे बढ़ाएंगे लेकिन चीन मानने को तैयार नहीं है.

‘द एल्डर्स’ की चेयपर्सन मैरी रॉबिन्सन हैं, जो आयरलैंड की राष्ट्रपति और यूएन हाई कमिश्नर रह चुकी हैं. रॉबिन्सन के मुताबिक जहां तक जलवायु परिवर्तन की बात है तो जनता अपने नेताओं पर दबाव बनाती भी है लेकिन एटमी युद्ध के खिलाफ जनता कोई दबाव नहीं डाल रही. रॉबिन्सन के मुताबिक जब तक एटमी बम हैं, तब तक इनके इस्तेमाल का डर बना हुआ है.

धरती की बढ़ती गर्मी भी तबाही का संकेत

एक तरफ एटमी युद्ध का खतरा है. दूसरी तरफ जलवायु संकट. 2019 धरती के इतिहास का दूसरा सबसे गर्म साल रहा. 2019 का औसत तापमान सन 1850 से 1900 के बीच औसत तापमान से 1.1 डिग्री सेल्सियस ज्यादा रहा. अगर हम इसी तरह ग्रीन हाउस गैस पैदा करते रहे तो धऱती 3 से 4 डिग्री तक गर्म हो सकती है, जिससे बड़े पैमाने पर तबाही आएगी.

1991 में शीत युद्ध खत्म होने के बाद ये कांटा मध्य रात्रि यानी 12 बजे के सबसे दूर था. ये उस वक्त 12 बजे से 17 मिनट दूर यानी  11  बजकर 43 मिनट पर था. 1998 में भारत और पाकिस्तान के बीच परमाणु युद्ध की आशंका के कारण ये कांटा एक बार फिर 11.51 पर आ गया था.

एल्डर्स के मुताबिक डीप फेक वीडियो, रोगाणुओं और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस ने इस दुनिया को और भी खतरनाक बना दिया है...ऐसे में दुनिया भर के नेताओं के लिए जागृति का समय आ गया है.

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