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वीडियो एडिटर: अभिषेक शर्मा
भारत में कोरोना से मौत 1 लाख के पार पहुंच गई है. देश में मृत्युदर के साथ ही मौत के आंकड़ों पर अमेरिकी राष्ट्रपति के भारत पर गड़बड़ी के आरोपों पर क्विंट ने पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के चेयरपर्सन के श्रीनाथ रेड्डी से खास बातचीत की.
1 लाख मौत बनाम केस फैटेलिटी रेट, हमें किन आंकड़ों पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए?
दोनों ही आंकड़े जरूरी हैं. जब हम घरेलू आंकड़े देखते हैं तो कोशिश करते हैं कि कम से कम मौतें हों लेकिन जब हम दुनियाभर से तुलना करते हैं और देखते हैं कि हम दुनिया में कोरोना केस में दूसरे नंबर पर हैं. और अब देश में इसकी वजह से मौतें भी ज्यादा हो रही हैं तो सटीक नंबर का कोई मतलब नहीं रह जाता है. जब मौतों की तुलना दुनियाभर से की जाती है, अब इसमें देश की जनसंख्या को भी ध्यान में रखना होगा तो फिर ये आंकड़ा इतना डराने वाला नहीं नजर आता है. हमारी स्थिति बाकी यूरोपियन देशों से बेहतर है. असल में उनके यहां मौत का आंकड़ा प्रति दस लाख ज्यादा है लेकिन ये शाबाशी की कोई बात नहीं, ये सिर्फ एक फैक्ट ऑफ लाइफ है क्योंकि मापदंड अलग हैं. हमारे यहां मौत का आंकड़ा कम है लेकिन फिर भी हमें इसे रोकने के लिए हर मुमकिन कोशिश करनी चाहिए.
क्या भारत कोरोना से होने वाली मौत का आंकड़ा छिपा रहा है?
हां, ये हो सकता है कि हम गलत आंकड़े दिखा रहे हों. निर्भर करता है शायद 100% या 500%. मुझे नहीं लगता 500%, परिस्थिति को देखकर तो नहीं ही लगता है. केस के आंकड़ों में एक बार गड़बड़ हो सकती है लेकिन मौत का आंकड़ा तो सुनिश्चित किया जाता है. मौत के कारण को गलत बताया जा सकता है. लेकिन मौत की संख्या तो संभावित रूप से सामने होती है. और सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि दक्षिण एशिया में हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी मौत के आंकड़े में कमी आई है. इसका मतलब ये नहीं कि सभी लोग आंकड़े छिपा रहे हैं. हो सकता है कि कुछ गड़बड़ियों हुई हों, लेकिन ट्रेंड बहुत जरूरी हैं. मैं नहीं समझता कि अंडर काउंटिंग इतने बड़े लेवल पर हो रही है कि हम उसी रेट पर चल रहे हैं जैसे फ्रांस, इटली या अमेरिका.
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