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वीडियो एडिटर- अभिषेक शर्मा
बेरोजगारों की लिस्ट लंबी होती जा रही है. ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री के पहिए रुक से गए हैं. बिस्किट बनाने वाली कंपनियां पारले, ब्रिटानिया के कर्मचारियों की जेब और आम जनता के मुंह का मजा बिगड़ रहा है. यही नहीं देश की सबसे बड़ी रोजगार इंडस्ट्री टेक्सटाइल में मंदी इतनी गहरी हो गई है कि उन्हें अपनी बर्बादी का इश्तेहार छपवाना पड़ा.
अब जब कोहराम मचा तो सरकार ने कुछ ऐलान किए हैं लेकिन माली हालत इतनी खराब है कि सरकार आरबीआई की तिजोरी की मोहताज हो गई RBI ने भारत सरकार को 1,76,051 करोड़ रुपये ट्रांसफर करने का फैसला किया.
अभी हाल ही में ब्रिटानिया कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर ने ये कहकर देश में हंगामा मचा दिया कि "लोग अब 5 रुपये का बिस्कुट खरीदने से पहले भी दो बार सोच रहे हैं." एक और बिस्कुट कंपनी पारले ने कहा है कि मांग में कमी के चलते उन्हें पारले कर सकती है 10,000 कर्मचारियों की छंटनी करनी पड़ सकती है. यही नहीं जिस गाड़ी पर आप बैठकर लॉन्ग ड्राइव का सोचते हैं उस ऑटो सेक्टर में उठापटक मची हुई है.
लेकिन जब मंदी की घंटी जोर-जोर से बजने लगी तब सरकार जागी बजट में की गई भूल में सुधार करते हुए वित्त मंत्री ने कैपिटल गेन्स टैक्स पर सरचार्ज हटाने का ऐलान किया. लगातार फिसल रहा. बाजार चढ़ा लेकिन फिर ठिठक गया.
सच्चाई ये है कि जिस FPI (foreign portfolio investment) के लिए सरचार्ज वापस लिया गया उनकी नेट बिक्री ऐलान के बाद भी जारी है तो पते की बात ये है कि हमारी इकनॉमी की ग्रोथ पर अब भरोसा नहीं रहा.
कुल मिलाकर बात वही. कारोबार होगा, कमाई होगी, लोगों के पास पैसा होगा तो बिक्री बढ़ेगी, फिर बैसाखी की जरूरत नहीं पड़ेगी.
ऑटो ही नहीं बैंक भी बेहाल हैं. पैसे के लिए तरस रहे बैंकों के लिए वित्त मंत्री ने 70 हजार करोड़ देने की बात कही. लेकिन क्या इतने से काम हो जाएगा. छोटे कारोबारी लोन तो तब लेंगे जब उन्हें बिजनेस चलने का भरोसा होगा. फिर बात वही, माहौल ठीक कीजिए.
उन उद्योगों का क्या जो कभी अखबार में इश्तेहार दे-देकर ऑफर देते थे, और अब विज्ञापन देकर अपनी बदहाली का रोना रो रहे हैं. टेक्सटाइल, रियल्टी, स्टील उद्योग अब भी सरकार की तरफ ताक रहे हैं. जिस जीएसटी ने कमर तोड़ी है, उसमें सुधार के ऐलान हैं. लेकिन ये ऐलान ही हैं, जब होंगे तब होंगे. और जब होंगे उसके काफी बाद असर दिखेंगे. रिफंड तुरंत मिले तो कारोबारी का फंसा पैसा निकलेगा और वो कुछ आगे काम करेगा.
पैनिक से काम नहीं चलेगा जनाब. आरबीआई की कमाई आपने ले ली. विपक्ष कह रहा है-
तो क्या इन उपायों को REACTIVE कहना ही बेहतर होगा... जबकि जरूरत है PROACTIVE कदमों की. बुनियादी काम करने होंगे.
द हिन्दू में बिजनेस पत्रकार पूजा मेहरा ने एक रिपोर्ट लिखी है. बताया है कि इनकम टैक्स पर बनी एक टास्क फोर्स की रिपोर्ट से खुलासा हुआ कि मंदी के पीछे नोटबंदी भी है. इसमें लिखा है कि नोटबंदी के बाद प्राइवेट कंपनियों के निवेश में 60 फीसदी की कमी आई. 2016-17 में कुल 10,33,847 करोड़ का निवेश हुआ था लेकिन 2017-18 में कुल 4,25,051 करोड़ का निवेश हुआ. तो काम यहां करना पड़ेगा. यही निवेश बढ़ाने की जरूरत है
पूजा मेहरा की रिपोर्ट में एक और चौंकाने वाला सच सामने आया है. इसमें बताया गया है कि जिन 7,80,216 कंपनियों ने फाइनेंशियल ईयर 2016-17 में टैक्स रिटर्न फाइल किया, उनमें से लगभग 46 फीसदी ने अपने एकाउंट्स में घाटे की बात कही. सरकार ने इस रिपोर्ट को अभी तक सार्वजनिक नहीं किया है. मंदी का मरहम लगाना है तो गलतियां कबूल करनी होंगी. लीपापोती नहीं.
बिजनेस स्टैंडर्ड में नितिन सेठी लिखते हैं कि अप्रैल, मई में जीएसटी वसूली में कमी आई है. नितिन CAG के रिपोर्ट के हवाले से बताते हैं कि GST का सिस्टम इनपुट क्रेडिट की कैल्कुलेशन नहीं कर पा रहा है. केंद्र राज्य में विवाद हैं. निर्मला जी ने GST को सरल और रिफंड को सुलभ बनाने पर जो बातें की हैं, वो अच्छी हैं. अमल के फायदे होंगे, लेकिन वक्त लगेगा.
कुल मिलाकर बेरोजगारी, कंपनियों की खस्ताहाली, आर्थिक मंदी के जख्म गहरे हैं. फर्स्ट एड से काम नहीं चलेगा, मेरे सरकार बड़ा ऑपरेशन चाहिए.
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