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लड़कियां स्कूल में टॉपर, फिर करियर में क्यों फेल?

हायर एजुकेशन के क्षेत्र में साल दर साल लड़कियों ने मारी बाजी, लेकिन कार्यक्षेत्र में क्यों पिछड़ीं?

शादाब मोइज़ी
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लड़कियां स्कूल में टॉपर, फिर करियर में क्यों फेल?
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लड़कियां स्कूल में टॉपर, फिर करियर में क्यों फेल?
(Photo- Quint Hindi)

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‘लड़की को कोई ठीक-ठाक कोर्स करा देते हैं ताकि शादी में आसानी हो, जितना पढ़ाना था पढ़ा लिया.. अब शादी के लिए पैसे जमा करने हैं.’ एक तरफ देश में ये वाला लॉजिक चल रहा है.. और दूसरी तरफ अखबारों और मीडिया में हेडलाइन बन रही है कि...

  • लड़कियों ने बिहार बोर्ड के 10वीं में किया टॉप
  • 12वीं में भी लड़कियां बनी टॉपर.
  • लड़कियों ने CBSE बोर्ड एग्जाम में लड़कों को फिर पछाड़ा

बोर्ड कोई भी हो, पिछले कई सालों से आप याद कीजिए रिजल्ट वाले दिन हेडलाइन - लड़कियों ने फिर मारी बाजी..

अब सवाल ये है कि ये लड़कियां जो स्कूल लेवल पर लड़कों से अच्छा कर रही हैं, वो आगे चलकर कहां ‘गायब’ हो जाती हैं? लड़कों से आगे तो छोड़ ही दीजिए क्यों नौकरी, कारोबार, राजनीति ऐसे मोर्चे पर लड़कियां लड़कों से बहुत पीछे नजर आती हैं.? क्या उन्हें आगे चलकर पढ़ाई में मन नहीं लगता है? वो पढ़ाई में कमजोर हो जाती हैं? या फिर असल वजह कुछ और है..जब कोई वाजिब वजह नहीं समझ में आ रहा है तो हम तो पूछेंगे जरूर- जनाब ऐसे कैसे?

बिहार बोर्ड 10वीं की परीक्षा में इस साल 3 लोगों ने टॉप किया है. तीन में से दो लड़कियां हैं. जमुई के सिमुलतला स्कूल की पूजा और शुभदर्शिनी, दोनों को 484 नंबर आए हैं, मतलब 96.80 फीसदी. यही हाल 12वीं क्लास का भी था. साइंस, कॉमर्स और आर्ट्स तीनों ही स्ट्रीम में लड़कियों ने बाजी मारी.

साल दर साल CBSE बोर्ड एग्जाम में लड़कियां लड़कों को पछाड़ रही हैं. साल 2020 में सीबीएसई 12th बोर्ड में 92.15 लड़कियों ने एग्जाम पास किया था, जब्कि इसी साल 86.19 फीसदी लड़के पास हुए. मतलब लड़कियों ने लड़कों से 5.96% बेहतर प्रदर्शन किया है. साल 2019 में 88.70 लड़कियां और 79.40 लड़के पास हुए थे. यही हाल CBSE 10वीं बोर्ड का भी है.

उच्च शिक्षण संस्थानों में लड़कियों की हिस्सेदारी

IIT जैसे संस्थानों की तरफ रुख करेंगे तो पाएंगे कि साल 2019 में देश के कुल 23 IIT में करीब 946 फीमेल स्टूडेंट मतलब 17 फीसदी लड़कियों का एडमिशन हुआ है. ये भी तब जब जेंडर गैप को कम करने के लिए IIT ने सूपर न्यूमरेरी कोटा लागू किया है.

IIT-बॉम्बे में 2019 बैच में एडमीशन लेने वाले 1,115 छात्रों में से 199 लड़कियां थीं, जो कि कुल छात्रों का 17.84% है. 2019 में IIT दिल्ली में 18.05% लड़कियां थीं. वहीं दूसरी ओर 2020 जेईई एडवांस्ड में कामयाब होने वाले कुल 43,204 स्टूडेंट्स में से 6,707 लड़कियां हैं. मतलब करीब 16 फीसदी.

UPSC

अब बात सिविल सर्विसेज की. UPSC में साल 2019 में चुने गए कुल 829 उम्मीदवारों में से 632 लड़के और 197 लड़कियां हैं, 23.7 फीसदी लड़कियां. 2018 सिविल सेवा परीक्षा में 182 महिलाओं को कामयाबी मिली थी. करीब 24 फीसदी. आबादी आधी लेकिन हिस्सेदारी एक चौथाई से भी कम.

प्राइवेट कंपनियों में लड़कियों की हिस्सेदारी

सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकॉनमी (CMIE) के मुताबिक, साल 2019-20 में लिस्टेड कंपनियों के डायरेक्टर्स ऑफ बोर्ड में 8 फीसदी महिलाएं हैं. भारत में कंपनियों की सीईओ की बात करें तो अनुमानित (estimated) 1.7 फीसदी महिलाएं हैं.

अगर अर्थव्यवस्था की बात करें तो विश्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक, देश में महिला श्रम शक्ति भागीदारी दर (FLFPR) मतलब female labor force participation rate 1990 में 30.27% से गिरकर 2019 में 20.8% हो गई है.

CMIE के मुताबिक भारत में सिर्फ 7 फीसद शहरी महिलाएं ऐसी हैं, जिनके पास रोजगार है या वे उसकी तलाश कर रही हैं.

पुरुष और महिला की सैलरी में असामनता

लड़कियों को कमजोर करने के पीछे घर से लेकर समाज और सरकार सब जिम्मेदार हैं. और मीडिया भी. दिल्ली या कहें मेट्रोपॉलिटन शहर छोड़ दें तो महिला पत्रकार न के बराबर हैं.

चलिए अब समझते हैं स्कूल की टॉपर बिटिया के सपनों के बीच में कौन आ रहा है.

"लड़की हो लड़की की तरह रहो, बेटी पराया 'धन' होती है, मेरी बेटी तो मेरे लिए बेटे की तरह है.." ये बातें लड़कियों की कामयाबी में पहला रुकावट हैं.

दूसरा बैरियर उन्हें सुरक्षा नहीं दे पाना. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो NCRB की रिपोर्ट के मुताबिक साल2019में भारत में रोजाना औसतन 87 दुष्कर्म के मामले सामने आए हैं. आंकड़ों के मुताबिक साल2018की तुलना में साल2019में महिलाओं के खिलाफ अपराध सात फीसदी से ज्यादा बढ़े हैं.

2019 में महिलाओं के खिलाफ हुए कुल अपराध में से 17.9 फीसदी मामले किडनैपिंग के सामने आए हैं. वहीं 7.9 फीसदी मामले रेप से जुड़े हैं. मतलब घर से निकलने पर सौ खतरे.

दहेज के लिए पैसे जुटाएं या आगे की पढ़ाई कराएं. ऐसी कुप्रथा आज भी जारी है. कानून लाख बन गए लेकिन आपको पता है सच्चाई.साल 2019 के आंकड़ों के मुताबिक भारतीय दंड संहिता के तहत दर्ज मामलों में से ज्यादातर 'पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता' के 30.9 फीसदी मामले सामने आए हैं.

ये सूरत लड़कियां बदल सकती थीं, अगर नीति निर्माण में उनकी बड़ी भूमिका होती है. लेकिन महिला कल्याण के नाम पर वोट मांगनी वाली पार्टियां तक उन्हें राजनीति में आने नहीं देतीं. राजनीति में भी महिलाओं की हिस्सेदारी '32 दांत के बीच एक जुबान' जैसी है. पहली बार साल 2019 के चुनाव में सबसे ज्यादा 78 महिलाएं लोकसभा पहुंची हैं, मतलब कुल सांसदों में सिर्फ 14 फीसदी महिलाएं हैं. राज्यसभा का हाल और बेहाल है. 245 सांसदों में सिर्फ 10% महिला हैं. मोदी सरकार के मंत्रीमंडल में 59 मंत्रियों में सिर्फ 5 महिलाएं मंत्री हैं.

चलिए अब इंसाफ का तराजू उठाए महिला की मूर्ती वाले कोर्ट में चलते हैं. जुडिशरी का हाल और चौकाने वाला है. वहां इंसाफ की तराजू महिला ने उठाया तो है लेकिन असल में कोर्ट में विमेन रिप्रेजेनटेशन की आंखों पर पट्टी बंधा है.

अटॉर्नी जनरल वेनुगोपाल ने दिसंबर 2020 में सुप्रीम कोर्ट में एक केस के सिलसिले में अपने लिखित सबमिशन में बताया कि सुप्रीम कोर्ट में सिर्फ 2 महिला जज हैं और तो और आज तक एक भी महिला चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया नहीं बनी हैं. देश के सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट्स में कुल 1,113 जजों की स्वीकृत संख्या (sanctioned strength) में से महज 80 महिला जज हैं. इन 80 महिला जजों में से 78 देश के अलग-अलग हाईकोर्ट में हैं, मतलब कुल जजों की संख्या का केवल 7.2 प्रतिशत. अगर बार काउंसिल की बात करें तो 17 लाख एडवोकेट्स में से सिर्फ 15% महिलाएं हैं.

ये लड़कियां 12वीं के बाद रास्ता नहीं भटकतीं. हम इनकी राहों में कांटे बिछाते हैं. और जब देश की आधी आबादी, या स्कूलों का रिजल्ट देखकर यूं कहें कि बेहतर आबादी पीछे छूट जाए हम आगे कैसे बढ़ेंगे. इसे ठीक नहीं किया तो लड़कियां ही नहीं आगे वाली पीढ़ियां भी पूछेंगी जनाब ऐसे कैसे?

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Published: 10 Apr 2021,08:07 AM IST

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