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कॉन्सेप्ट: त्रिदीप मंडल
प्रोड्यूसर : ज़िजाह शेरवानी
एडिटर: दीप्ति रामदास
लोग अपने बच्चों के नाम के लिए बहुत रिसर्च करते हैं.अगर सेलेब्रिटी के बच्चों के नामों को ही देखें तो वियान, न्यासा, शहरान, अरिन, नितारा जैसे कई नए तरह के नाम देखने को मिलेंगे. लेकिन 50 साल पहले हमारे देश में ऐसे नाम नहीं होते थे. तब नाम पूरनचंद और अशोक और निरंजन जैसे होते थे, तो अब के अनोखे नाम कहां से आए? इन्हीं बदलते नामों का इतिहास जानने के लिए
हम 50 साल पीछे चलते हैं.
50 के दशक में कुछ इस तरह के नाम हुआ करते थे. दिलीप कुमार शर्मा, राज कौर, शशिकांत पाण्डेय, अंजू खन्ना, राम वीर, पूरनलाल.
'एंग्री यंग मैन' अमिताभ बच्चन का स्क्रीन नेम ‘विजय’ था. 20 से ज्यादा फिल्मों में उनका ये नाम रहा. देश में 'विजय' हीरोइज्म का दूसरा नाम बन चुका था.
80's में क्रिकेट वर्ल्ड-कप के साथ ही नामों में भी बदलाव देखने को मिला. सुनील और कपिल लगभग हर दूसरे घर में सुनाई देने लगे.
देश की आयरन लेडी इंदिरा का युग खत्म हो चुका था और फिर सोनिया और राजीव गांधी का युग आया. बॉलीवुड के प्यारे कपल्स की शादियां भी तो हुईं. लिविंग रूम में कलर टीवी आ गए. फिर महाभारत, रामायण, हमलोग, बुनियाद और भी बहुत से टीवी सीरियल ने हमारा ध्यान खिंचा. असल में 80 के दशक ने नामों के लिए हमें कई विकल्प दिए.
90's रोलर कोस्टर वाला दशक था. हम 'रोटी कपड़ा मकान' से कहीं आगे बढ़ गए थे. हमने वो हासिल किया जो हमें चाहिए था. हमने अपने रास्ते दुनिया के लिए खोल दिए. राहुल, विशाल, सचिन, आजाद, सोनाली जैसे कई कॉमन नाम देखने को मिले.
2000 का दशक मॉडर्नाइजेशन का था. सभी के हाथों में फोन आ गया था. इंटरनेट कैफे, ब्रॉडबैंड कनेक्शन ने सोशल मीडिया और गूगल बाबा को जन्म दिया. नामकरण के लिए पंडित जी को कंप्यूटर जी ने रिप्लेस किया.बढ़ती ख्वाहिशों को टेक्नोलोजी का साथ मिला और अलग से अलग, नए से नए नामों की खोज का सिलसिला शुरू हुआ. जैसे-शैबर, आर्यन,अशर, आर्यमन.
पेरेंट्स चाहते हैं कि उनका बच्चा अलग नाम के साथ सबसे अलग लगे. लेकिन बहुत पहले शेक्सपियर ने कहा था 'नाम में क्या रखा है?'
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