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2017 में, फेसबुक ने चुनाव आयोग को पहली बार वोट देने वालों को रजिस्टर करने में मदद करने के लिए अपने प्लेटफॉर्म की पेशकश की.
लेकिन क्या आप जानते हैं कि फेसबुक ने ऐसा करने की पेशकश मुफ्त में की थी. सवाल है, क्यों?
क्योंकि चुनाव आयोग के साथ इस साझेदारी से फेसबुक को लाखों पहली बार वोट देने वालों के बेशकीमती डेटा बैंक बनाने में मदद मिल सकती थी. डेटा, जो फेसबुक राजनीतिक दलों को आगे ऊंची कीमत पर बेच सकता था.
उदाहरण के लिए, लोकसभा चुनाव लड़ने वाले राजनीतिक दलों के बारे में सोचें. इन्हें लाखों पहली बार वोट देने वालों को टारगेट करने की जरूरत है. लेकिन देशभर के वोटर्स बहुत अलग हैं, यहां तक
कि वे मुद्दे जो उनके लिए बहुत मायने रखते हैं, वो भी अलग-अलग हैं.
अब, अगर किसी राजनीतिक दल को देशभर से इन पहली बार वोट देने वालों के बारे में डेटा मिलता है, तो डेटा में न केवल नाम, उम्र और पते शामिल हैं बल्कि ईमेल आईडी, मोबाइल नंबर, व्यक्तिगत पसंद, पढ़ाई, राजनीतिक झुकाव, आमदनी, जाति, समुदाय भी शामिल हैं. ये न केवल इन वोटर्स तक सीधे पहुंचने में मदद करेगा. ये एक राजनीतिक दल को उसके स्पेसिफिक नेचर के मुताबिक हर वोटर को टारगेट करने की भी इजाजत देगा. इसलिए, इस तरह के डेटा मिलने से एक राजनीतिक पार्टी को अपने विरोधियों के खिलाफ बहुत ज्यादा फायदा होगा.
क्या फेसबुक ने इस तरह के डेटा का गलत इस्तेमाल पहले किया है?
मार्च 2018 में हुए फेसबुक-कैम्ब्रिज एनालिटिका डेटा स्कैंडल को याद कीजिए. जब डेटा एनालिटिक्स फर्म कैंब्रिज एनालिटिका ने 50 मिलियन फेसबुक यूजर्स के डेटा को हासिल किया था. ये आरोप है कि कैंब्रिज एनालिटिका ने डोनाल्ड ट्रंप को इन लाखों फेसबुक यूजर्स की अनुमति के बिना राजनीतिक विज्ञापन के टारगेट के लिए इस डेटा का इस्तेमाल करके अमेरिकी राष्ट्रपति चुने जाने में मदद की थी.
कैंब्रिज एनालिटिका घोटाले के बाद फेसबुक ने दावा किया कि डेटा का कोई उल्लंघन नहीं हुआ था और उसने कैंब्रिज एनालिटिका को सेवा से निलंबित कर दिया था. उस समय भारत सरकार ने फेसबुक और कैम्ब्रिज एनालिटिका से ये भी पूछा था कि क्या फेसबुक के भारतीय यूजर्स के बीच कोई डेटा उल्लंघन हुआ है. सीबीआई को भी मामले की जांच करने के लिए कहा गया था. इन सवालों और जांच का क्या हुआ? आज तक कोई आधिकारिक सूचना नहीं है.
और हम आपको फेसबुक-कैंब्रिज एनालिटिका मामले की याद क्यों दिला रहे हैं?
क्योंकि इस घोटाले की खबर आने से एक साल पहले चुनाव आयोग ने फेसबुक के साथ पार्टरनशिप की थी. लाखों भारतीय यूजर्स के निजी डेटा को खतरे में डाल दिया था.
तो यहां बताते हैं कि फेसबुक ने चुनाव आयोग के साथ काम करने का प्रस्ताव कैसे दिया।
और सबसे बड़ी बात जो फेसबुक ने कही थी:
लेकिन बदले में, फेसबुक को ये जानकारी मिलेगी कि उसके कितने यूजर्स वोटर के रूप में रजिस्टर्ड होना चाहते हैं.
2018 में फेसबुक ने एक और प्रमुख फीचर जोड़ा "Share You’re Registered.”
इस फीचर ने फेसबुक को हर उस यूजर के बारे में एक कंफर्मेशन दी जिन्होंने वोटर के रूप में रजिस्ट्रेशन किया था. एक बेशकीमती डेटा बेस बना रहा था जिसे कोई भी राजनीतिक दल पहली बार वोट देने वालों तक पहुंचने के लिए चाहेगा.
RTI के माध्यम से, क्विंट ने EC-फेसबुक पार्टनरशिप से संबंधित डॉक्यूमेंट्स को हासिल किया. दिलचस्प बात ये है कि कहीं भी हमें नहीं दिखा कि चुनाव आयोग के अधिकारियों ने चिंता जाहिर की हो या सवाल उठाया हो कि फेसबुक ये कैसे तय करेगा कि वो डेटा सुरक्षित रखेगा.
कोई सवाल नहीं पूछा गया कि क्या फेसबुक के इंडियन यूजर्स की गोपनीयता भंग नहीं होगी और इस बारे में कोई सवाल नहीं पूछा गया कि क्या फेसबुक इस डेटा को किसी तीसरे पक्ष को शेयर करेगा या बेच देगा.
दरअसल, 2018 में कैंब्रिज एनालिटिका मामले के सामने आने के बाद तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने EC-फेसबुक पार्टनरशिप को लेकर चिंता जताई थी. लेकिन कुछ दिनों बाद रावत ने पुष्टि की कि ये पार्टनरशिप जारी रहेगी. उस समय, रावत ने पार्टनरशिप को जारी रखने के लिए कोई कारण नहीं दिया.
जब क्विंट ने हाल ही में रावत से इस बारे में संपर्क किया तो उन्होंने कहा,
इसलिए, यहां कुछ सवाल हैं जो हमने चुनाव आयोग से पूछे हैं:
हम अभी भी चुनाव आयोग और फेसबुक से हमारे सवालों के जवाब का इंतजार कर रहे हैं.
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