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क्विंट हिंदी के कार्यक्रम राजपथ में क्विंट के एडिटोरियल डायरेक्टर संजय पुगलिया के साथ खास बातचीत में कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल बीजेपी पर जमकर बरसे.
कपिल सिब्बल ने कहा:
''देश का गणित बताता है कि मोदी जी का वापस आना काफी मुश्किल है. ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि मोदी जी के गठबंधन के कई साथी उन्हें छोड़ चुके हैं. बीजेपी आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, केरल, तमिलनाडु में नहीं है. प. बंगाल, ओडिशा में बहुत कम है, नाॅर्थ-ईस्ट में अब आ गए हैं और कर्नाटक में हैं. कुल मिलाकर, उन्हें इन जगहों पर ज्यादा सीटें नहीं मिलने वाली.''
बीजेपी को पता है कि इन्हें और नए गठबंधन साथी चाहिए, तो नीतीश कुमार को लेकर आ गए. आप शिवसेना की गारंटी नहीं दे सकते कि वो साथ मिलकर चुनाव नहीं लड़ेगी. नवीन पटनायक, केसीआर, जो बराबर दूरी बनाकर चल रहे थे, उनका करीब-करीब बीजेपी की तरफ झुकाव दिख रहा है.
मुझे नहीं पता कि आप इस नतीजे पर कैसे पहुंचे. जहां तक केसीआर का सवाल है, वो नहीं चाहते कि मोदी की सत्ता विरोधी लहर का प्रभाव उनके ऊपर पड़े.
केसीआर मोदी के साथ हो गए, इसका सुबूत इसी बात में है कि 8 महीने पहले विधानसभा भंगकर दी गई, ताकि एमपी, राजस्थान के साथ चुनाव करा लें.
ये अच्छी बात है न! एमपी, राजस्थान में बीजेपी हारने वाली है, केसीआर की राजनीति ये नहीं है कि बीजेपी के साथ आ जाएं. अगर लोकसभा में बीजेपी की सीटें कम होतीं, तो केसीआर को भी नुकसान होता, साथ ही साथ लोकसभा और प्रदेश के चुनाव में बीजेपी अपने कैंडिडेट्स खड़े करती. अब ये समझौता नहीं है कि बीजेपी अपने कैंडिडेट ही खड़े नहीं करेगी.
लेकिन केसीआर ने 8 महीने पहले विधानसभा भंग कर दी, किसी बड़े डिजाइन के बिना वो रिस्क तो नहीं ले सकते?
रिस्क तो वाजपेयी जी ने भी लिया था, वहां कौन सा बड़ा डिजाइन था, क्या हालत हुई उनकी, इसलिए अंदाजा लगाने की जरूरत नहीं है. ओडिशा के मामले में भी ऐसे अंदाजा लगाए जाने का सवाल ही नहीं है
तमिलनाडु में एक नई तरह की राजनीति की जा रही है. वहां डीएमके, चुनाव से पहले गठबंधन, AIADMK के 2 धड़े, रजनीकांत, कमल हासन अलग से हैं.
बीजेपी को कुछ नहीं मिलने वाला, मैं सार्वजनिक तौर से कह सकता हूं. पलनीसामी की सरकार इतनी बदनाम हो चुकी है कि उन्हें कोई सीट नहीं मिलने वाली. दिनाकरन का वजूद है इस समय, लेकिन वहां भी मतभेद हैं. डीएमके को फायदा होने वाला है.
चुनाव बाद के हालात पर बात करें, तो डीएमके, केसीआर या नवीन पटनायक हों, इनके बारे में गारंटी नहीं हो सकती कि वो बीजेपी के साथ न जाएं
गारंटी किसी चीज की नहीं हो सकती. इसकी गारंटी भी नहीं कि बीजेपी को इसका चांस भी मिलेगा कि वो ऐसी स्थिति में आ जाएं कि इनका साथ मिल जाए.
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