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वीडियो एडिटर: दीप्ति रामदास
'वो रोज मेरा पीछा करता है’, ‘उनके घूरने से मैं असहज महसूस करती हूं ’, 'उनके गंदे कमेंट से अपमानित महसूस करती हूं.'
ज्यादातर भारतीय महिलाओं के लिए यौन उत्पीड़न एक रोजमर्रा की सच्चाई है. ये सब आम बातें हैं. समाज के हर तबके की महिलाएं इस अपमान को कार्यस्थल पर, घर में, सार्वजनिक परिवहन में हर रोज झेलती हैं. सबसे बुरी तरह प्रभावित होती हैं समाज के निचले तबके की महिलाएं, घरों में काम करने वालीं, लेबर ,शेल्टर होम की महिलाएं. लेकिन क्या ये समय ऐसा नहीं है कि हम इस स्थिति को बदलें?
क्विंट ने समाज के अलग-अलग तबके की महिलाओं से बात की, जिन्होंने अपने साथ हुए यौन उत्पीड़न की कहानियों को शेयर किया. ये कहानियां ऐसे उदाहरणों को उजागर करती हैं जो बहुत आम हैं, उत्पीड़न जो महिलाओं की रोजमर्रा की सच्चाई बन गयी है. लेकिन कहानी बस इतनी नहीं है, इन महिलाओं ने बताया कि कैसे उन्होंने अपने ऊपर हो रहे उत्पीड़न का जवाब दिया.
रुबीना, 52, एक हाउस वाइफ हैं. उनका कहना है कि ज्यादातर महिलाएं डर जाती हैं और उनमें थप्पड़ मारने की हिम्मत नहीं होती है. लेकिन हम महिलाओं को हर दिन मजबूत बनना पड़ता है और जवाबी कार्रवाई करनी पड़ती है. रुबीना अपने साथ हुए उत्पीड़न को कुछ इस तरह बताती हैं.
वो आगे बताती हैं कि अकसर मेरी दोस्त साथ होती थीं तो उसकी कुछ बोलने की हिम्मत नहीं होती थी. एक दिन उसने देखा कि मैं अकेली हूं, तो उसने मुझसे बात करने की कोशिश की. मैंने कोई ध्यान नहीं दिया. जब तीसरी, चौथी बार उसने बात करने की कोशिश की और अपनी साइकिल मेरे रिक्शे के बहुत करीब ले आया, तब मैंने उससे कहा ’मेरे चार भाई हैं, और वो तुम्हारी पिटाई कर देंगे’
सनुअरा घरों में काम करने जाती हैं. वो बताती हैं कि लोग उनका फायदा उठाने की कोशिश करते हैं.
सुरभि दीवान पेशे से वकील हैं. वो अपना अनुभव बताते हुए कहती हैं, “मैं क्लोकरूम में वेट कर रही थी, मेरे पास काफी सामान था.मैं वहां किताब पढ़ रही थी. जब मैंने एक आदमी को देखा, जो मेरे ठीक सामने बैठ कर मुझे घूर रहा था, जब मैं उसको देख रही थी, तब भी वो मुझे घूरे जा रहा था. मैं काफी असहज महसूस कर रही थी”
प्रियंका भी एक वर्किंग प्रोफेशनल हैं. उनके ऑफिस में भी उन्हें हैरेसमेंट झेलनी पड़ी थी. वो बताती हैं कि जब भी मैं पास से निकलती थी और उन्हें (ऑफिस के दो लोगों) लगता था कि आसपास कोई नहीं है, वो कुछ कमेंट करते थे और आवाज निकालते थे.
उद्यमी विनीता बंसल कहती हैं कि मेरे पापा ने हमेशा ये बात सिखाई कि अगर कोई कभी गलत करे तो आप पब्लिक में बोलो. लोग आवाज उठाने में आपका साथ देंगे. मुझे कोई तारीफ नहीं चाहिए कि मैंने हिम्मत दिखाई लेकिन मुझे ये मानसिक तनाव झेलने की जरूरत ही क्यों है? सबसे ज्यादा जरूरी है कि लड़कों को सिखाया जाए कि वो लड़कियों की इज्जत करें.
इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि इन महिलाओं के पास यौन उत्पीड़न के बारे में कहने को बहुत कुछ है. हमें यौन उत्पीड़न जैसी गंभीर समस्या का समाधान करना होगा नहीं तो ये हमारे समाज को खोखला कर देंगे.
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