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उर्दूनामा पॉडकास्ट: भगत सिंह के नारे ‘इंक़लाब ज़िंदाबाद’ के मायने?

उर्दूनामा के इस एपिसोड में जानिए कि क्या होते हैं ‘इंक़लाब’ शब्द के मायने, इंक़लाबी शायरी और भी बहुत कुछ

फबेहा सय्यद
फीचर
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उर्दूनामा पॉडकास्ट में जानिए- ‘इंक़लाब’ का इतिहास
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उर्दूनामा पॉडकास्ट में जानिए- ‘इंक़लाब’ का इतिहास
(फोटोः Quint Hindi)

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"इंक़लाब आएगा, रफ्तार से मायूस ना हो"

क्रांति आमतौर पर तब आती है, जब समाजिक स्तर पर सुधार की जरूरत हो. क्रांति शब्द का इस्तेमाल उत्पीड़न और शोषण के खिलाफ संघर्ष के लिए किया जाता है. आजादी की लड़ाई को भी क्रांति के तौर पर देखा जाता है. इस क्रांति में सिर्फ एक नारे ने पूरे देश को बांध कर रखा था और वो नारा था 'इंक़लाब ज़िंदाबाद'.

इस नारे को भगत सिंह और उनके क्रांतिकारी साथियों ने दिल्ली की असेंबली में 8 अप्रैल 1929 को एक आवाज़ी बम फोड़ते वक़्त बुलंद किया था.

द क्विंट की फबेहा सय्यद ने इतिहासकार सैयद इरफान हबीब और प्रोफेसर खालिद अशरफ से 'इंक़लाब' शब्द के मायने, संदर्भ और इसके पीछे के इतिहास को समझने की कोशिश की. उर्दूनामा के इस एपिसोड में जानिए कि क्या होते हैं 'इंक़लाब' शब्द के मायने, इंक़लाबी शायरी और भी बहुत कुछ.

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