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GST: “केंद्र ले सकता है सस्ता कर्ज, राज्य क्यों लें महंगा लोन?’’

संजय पुगलिया की पश्चिम बंगाल के वित्त मंत्री अमित मित्रा से खास बातचीत

संजय पुगलिया
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संजय पुगलिया की पश्चिम बंगाल के वित्त मंत्री अमित मित्रा से खास बातचीत
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संजय पुगलिया की पश्चिम बंगाल के वित्त मंत्री अमित मित्रा से खास बातचीत
(फोटो: क्विंट हिंदी)

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वीडियो एडिटर: दीप्ति रामदास

राज्यों के मिलने वाले जीएसटी कंपनसेशन के मुद्दे पर हुई GST काउंसिल की 41वीं बैठक बेनतीजा रही. केंद्र और राज्यों के बीच अभी कोई सहमित नहीं बन पाई है. केंद्र ने राज्यों को 2 ऑप्शन दिए हैं लेकिन इन ऑप्शन से राज्य सरकारें नाराज दिख रही हैं. राज्य सरकारों की क्या दिक्कतें है? वो क्यों नाराज है और वो केंद्र सरकार से क्या चाहती हैं? इन मुद्दों को लेकर क्विंट के एडिटोरियल डायरेक्टर संजय पुगलिया ने पश्चिम बंगाल के वित्त मंत्री अमित मित्रा से खास बातचीत की.

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गुरुवार को हुई 41वीं GST काउंसिल बैठक में क्या हुआ?

GST काउंसिल की बैठक में कंपनसेशन के बकाए पर कोई फैसला नहीं हो पाया. पहले 5 घंटे की लंबी चर्चा हुई जिसके बाद वित्त मंत्री ने दो विकल्प दिए हैं. पहला विकल्प ये है कि राज्य RBI से 97,000 करोड़ लोन लें. दूसरा विकल्प ये है कि राज्य RBI से 2.35 लाख करोड़ का कर्ज लें. लेकिन दूसरे विकल्प भी हो सकते हैं. सरकार ने जो विकल्प दिए हैं उनको लेकर सफाई कमी भी है. अभी जो सरकार ने विकल्प दिए हैं उससे राज्यों पर कर्ज का बोझ बढ़ेगा. हमने केंद्र से लिखित में जवाब देने को कहा है.

क्या केंद्र GST कंपनसेशन पेमेंट के लिए कानूनी रूप से बाध्य है या नहीं?

केंद्र सरकार प्राकृतिक आपदा का हवाला दे रही है. लेकिन GST कानून का पालन बाध्यता है. आज भी GST वसूला जा रहा है. अप्रैल में बंगाल से 600 करोड़ की वसूली हुई. जब वसूली हो रही है तो राज्यों को हिस्सा मिले. 5 साल के लिए मुआवजे के वादे पर ही राज्य GST के लिए सहमत हुए. राज्यों ने अपना 70% टैक्स कलेक्शन बंद कर दिया. इस करार का पालन जरूरी है. जेटली के समय दिमाग और दिल दोनों साफ थे. केंद्र नोट छपवा सकता है. केंद्र को सस्ता कर्ज मिल सकता है. जब राज्य सैलरी नहीं दे पा रहे तो कर्ज कहां से चुकाएंगे.

बिन भुगतान कैसे चलाएंगे सरकार?

70 फीसदी राज्यों का जो टैक्स आता है वो हमने छोड़ दिया, आज कहें कि आप अपने आप बॉरो करो, उसको सर्विस करो, इसका मतलब ब्याज देते रहो. हमारी मांग है कि केंद्र कर्ज लेकर राज्य सरकार को कंपनसेशन के बकाए का भुगतान करे. केंद्र ने वादा नहीं निभाया तो संघीय ढांचा खतरे में पड़ जाएगा.

केंद्र को कैसे बाध्य करेंगे?

इस मुद्दे पर कुछ बीजेपी राज्य भी विपक्ष के साथ हैं, मैं बोलना नहीं चाहता कौन, सबने एक ही बात कही, कि हमसे उधार नहीं हो सकता है. आशा है कि ये फेड्रलिज्म को मानेंगे. अरुण जेटली जो कर के गए थे और जो निर्मला जी चला रही हैं वो मोरल बाइडिंग मानेंगी. उम्मीद है कि केंद्र नैतिक जिम्मेदारी निभाएगा और राज्यों के हित में फैसले करेगा.

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