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इलेक्टोरल बॉन्ड पर वित्त मंत्रालय के जवाबों पर हमारे कुछ सवाल हैं

अगर ये सीक्रेट कोड रिकॉर्ड में नहीं है, तो इसे छिपाने की क्या जरूरत थी?

पूनम अग्रवाल
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वीडियो एडिटर- संदीप सुमन

वित्त मंत्रालय का सबसे पहले शुक्रिया. वो, इसलिए क्योंकि उन्होंने चुनावी बॉन्ड पर ‘सीक्रेट कोड’ की क्विंट की स्टोरी पर खुद ही मुहर लगा दी है. यानी वित्त मंत्रालय ने चुनावी बॉन्ड पर 'सीक्रेट कोड' के खुलासे को वाजिब माना है.

वित्त मंत्रालय का बयान

प्रेस रिलीज में साफ किया गया है कि चुनावी बॉन्ड (इलेक्ट्रोरल बॉन्ड) में सिक्योरिटी के लिए 'सीक्रेट कोड' होता है और इस नंबर को सरकार या कोई दूसरा जान नहीं सकता. लेकिन इस सफाई में भी कई विरोधाभासी बातें हैं.

द क्विंट ने ठोस सबूतों के आधार पर बताया है कि सरकार जनता को यह कहकर गुमराह कर रही है कि अगर कोई भी शख्स चुनावी बॉन्ड के जरिए किसी भी राजनीतिक दल को चंदा देता है, तो उनकी पहचान गुप्त रहेगी. ये गुप्त इसलिए नहीं रह सकती क्योंकि हर बॉन्ड में एक सीक्रेट कोड लिखा हुआ है जो नंगी आंखों से दिखाई नहीं देता सिर्फ अल्ट्रा वॉयलेट रे से दिखता है. इस कोड के जरिए सरकार आसानी से पता लगा सकती है कि किसने बॉन्ड खरीदा और किसको दिया.

जनवरी 2018 में जब वित्त मंत्री अरुण जेटली ने चुनावी बॉन्ड लॉन्च किया, तो उन्होंने वादा किया कि किसी भी राजनीतिक दल को चंदा देने वालों को पहचान का खुलासा होने को लेकर डरने की जरूरत नहीं है.

लेकिन, वित्त मंत्री का ये वादा झूठा साबित हो गया. वित्त मंत्रालय की ओर से जारी किए गए स्पष्टीकरण का यहां प्वॉइंट टू प्वॉइंट खंडन किया गया है.

ये भी पढ़ेंः क्या SBI वित्त मंत्रालय को चुनावी बॉन्ड के सारे राज बता रहा है?

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अगर ये एक सिक्योरिटी फीचर है, तो फिर ये इतना अलग क्यों है?

वित्त मंत्रालय ने प्रेस रिलीज में कहा कि चुनावी बॉन्ड पर जो 'सीक्रेट कोड' दिया गया है, वो सिक्योरिटी फीचर है.

देखिए- वित्त मंत्रालय ने 'सीक्रेट कोड' पर क्या कहा?

चुनावी बॉन्ड में सिक्योरिटी फीचर को शामिल किया गया है. गुप्त कोड इसलिए है, ताकि जालसाजी या फर्जीवाड़े से बचा जा सके. बॉन्ड पर जो सीरियल नंबर है उसे नंगी आखों से नहीं देखा जा सकता है.

लेकिन वित्त मंत्रालय के इस जवाब ने कई और सवाल खड़े कर दिए हैं.

अगर ये सीक्रेट कोड रिकॉर्ड में नहीं है, तो इसे छिपाने की क्या जरूरत थी?

वित्त मंत्रालय ने अपनी प्रेस रिलीज में कहा-

कोई भी खरीदार KYC मानकों को पूरी तरह भरने और किसी बैंक खाते से भुगतान करने के बाद ही चुनावी बॉन्ड खरीद सकता है. चुनावी बॉन्ड पर किसी प्राप्‍तकर्ता का नाम या कोई भी ऐसा विवरण नहीं लिखा होता है जिससे बॉन्ड खरीदने वाले की पहचान की जा सकती है.

जब मैं 1000 रुपये का चुनावी बॉन्ड खरीदने के लिए एसबीआई गई, तो मुझे संदेह भरी नजरों से देखा गया. मैंने सेल्फ अटेस्ट KYC डॉक्यूमेंट जमा करे, जिन्हें कई बार देखा गया और उनका ओरीजनल डॉक्यूमेंट्स के साथ कई बार मिलान किया गया.

जब मैंने उन्हें बताया कि मेरा पैन कार्ड खो गया है तो एसबीआई ने मुझे चुनावी बॉन्ड देने से इंकार तक कर दिया. लेकिन मैंने उन्हें बताया कि मेरे पैन नंबर को बैंक आसानी से वैरिफाई कर सकता है.

लेकिन एसबीआई के अधिकारी ने मुझसे कहा-

ऐसी स्थिति में हम आपको चुनावी बॉन्ड नहीं दे सकते. क्योंकि वित्त मंत्रालय से ऐसे निर्देश मिले हैं.

एसबीआई के एस अन्य सीनियर अफसर तो इनसे भी आगे निकल गए. उन्होंने कहा-

हम सरकार का सिर्फ एक अंग हैं. हमें सभी आदेश सरकार से, वित्त मंत्रालय से मिलते हैं. बैंक को ऐसी स्थिति के लिए कोई भी निर्देश नहीं हैं. अगर आप हमारी बैंक के ग्राहक होते तो, हम आपका स्वागत करते. ये कुछ ऐसी जरूरतें हैं, जो भारत सरकार की ओर से तय की गई हैं. हम केवल नोडल / ऑपरेटिंग एजेंसी हैं.

ऐसे में जब वित्त मंत्रालय यह कहता है कि-

एसबीआई किसी के साथ भी सीरियल नंबर शेयर नहीं करता है, यहां तक कि सरकार और उसके खुद के यूजर्स के साथ भी नहीं.

तो फिर क्या इस पर भरोसा किया जा सकता है?

ये भी पढ़ेंः इलेक्टोरल बॉन्ड पर क्‍विंट का खुलासा: ये रही फोरेंसिक लैब रिपोर्ट

अब एक आखिरी सवाल-

प्रेस रिलीज में यह माना गया है कि बॉन्ड पर रेंडम सीरियल नंबर होते हैं. ऐसे में कोई नंबर एक ही वक्त में रैंडम और सीरियल दोनों कैसे हो सकता है? या तो नंबर सीरियल में हो सकते हैं या फिर रेंडम. लेकिन दोनों एकसाथ कभी भी नहीं.

अब हमें इन तथ्यों पर वित्त मंत्रालय के अगले जवाब का इंतजार है.

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