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क्या SBI वित्त मंत्रालय को चुनावी बॉन्ड के सारे राज बता रहा है?

राजनीतिक पार्टी को मिलने वाले चंदे को ट्रैक नहीं करना था तो फिर इसके पीछे सरकार की क्या नियत थी?

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क्विंट की जांच रिपोर्ट में ये सामने आया है कि राजनीतिक पार्टियों को चंदा देने के लिए जिस इलेक्टोरल बॉन्ड को लाया गया था. उसमें ऐसे 'अल्फा-न्युमेरिक नंबर' यानी सीक्रेट कोड छिपे हुए हैं, जिन्‍हें नंगी आंखों से देख पाना मुमकिन नहीं. इस छिपे हुए नंबर के जरिए राजनीतिक दल को चंदा देने वाले की पहचान उजागर हो सकती है. ये सरकार के दावों के ठीक उलट है, जिसमें सरकार ने कहा था कि बॉन्‍ड के जरिए कौन किसको चंदा दे रहा है, इसकी जानकारी डोनर के अलावा और किसी को नहीं होगी.

राजनीतिक पार्टी को मिलने वाले चंदे को ट्रैक नहीं करना था तो फिर इसके पीछे सरकार की क्या नियत थी?
ओरिजिनल डॉक्यूमेंट के दाहिनी ओर ऊपरी किनारे पर’ सीरियल नंबर छिपा हुआ दिखता है
(फोटो: Arnica Kala/The Quint)  
क्विंट के इन्वेस्टीगेशन में आगे ये बात सामने आई है कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया स्वतंत्र रूप से काम करने के बजाय, वित्त मंत्रालय के साथ इलेक्टोरल बॉन्ड मामले में लगातार संपर्क में है.
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जब 2 जनवरी 2018 को सरकार जब इलेक्टोरल बॉन्ड लेकर लाई थी, तब इसका मकसद राजनीति पार्टियों को दिए जाने वाले चंदे में 'पारदर्शिता' लाना था. साथ ही इस बात का भी दावा किया गया था कि बॉन्‍ड के जरिए चंदा देने वाले की जानकारी भी डोनर के अलावा और किसी को नहीं होगी.

अकेले एसबीआई को ही इलेक्टोरल बॉन्ड बेचने के लिए चुना गया. वित्त मंत्रालय की अधिसूचना में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि खरीदार की जानकारी गोपनीय रहेगी.

यहां तक कि वित्त मंत्री अरुण जेटली ने खुद कहा इस बात का यकीन दिलाया था कि इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए राजनीतिक चंदे की जानकारी बिलकुल गोपनीय रखी जाएगी.

'वित्त मंत्रालय से आते हैं सभी निर्देश': एसबीआई अधिकारी

इस इलेक्टोरल बॉन्ड के पड़ताल के लिए क्विंट ने आम लोगों की तरह 1-1 हजार कीमत के दो इलेक्टोरल बॉन्ड एसबीआई की एक ब्रांच से खरीदे. हमने इस बॉन्ड के लिए केवाईसी डॉक्यूमेंट जिसमें पैन कार्ड, आधार कार्ड और पासपोर्ट की सेल्फ अटेस्टेड फोटो कॉपी के साथ बॉन्ड खरीदने वाली एक फॉर्म भर कर जमा की.

सेल्फ अटेस्टेड फोटो कॉपी डॉक्यूमेंट काफी नहीं है, बल्कि असली चाहिए

बैंक अधिकारी ने केवाईसी डॉक्यूमेंट की फोटो कॉपी नहीं बल्कि असली डॉक्यूमेंट दिखाने को कहा. हमने उन्हें अपने पासपोर्ट और आधार कार्ड दिखाए. हमारे पास ओरिजिनल पैन कार्ड नहीं मौजूद था, लेकिन खुद दस्तखत किया पैन कार्ड की फोटो कॉपी थी. हमने बैंक अधिकारी से कहा कि सरकार केवाईसी के लिए सेल्फ अटेस्टेड डॉक्यूमेंट ही काफी मानती है.

लेकिन बैंक के एक सीनियर अधिकारी ने क्विंट से कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने के लिए केवाईसी वेरिफिकेशन दो लेवल पर होता है. पहले लेवल पर कस्टमर खुद केवाईसी डॉक्यूमेंट के फोटो कॉपी पर दस्तखत करता है. वेरिफिकेशन के दूसरे लेवल पर बैंक अधिकारी को असली डॉक्यूमेंट देखने होते हैं.

एसबीआई अधिकारी ने कहा कि जो ऑफिसर असली डॉक्यूमेंट की जांच करता है उसे अपना नाम और पद भी होता लिखना होता है. “सभी औपचारिकताएं सावधानी पूर्वक पूरी की जाती है, क्योंकि सरकार चुनाव बांडों की बिक्री पर करीब से नजर रख रही है.”

क्या इलेक्टोरल बॉन्ड के लिए एसबीआई का कस्टमर होना जरूरी है?

हमनें उन्हें बताया कि एसबीआई में मेरा सेविंग अकाउंट भी था, साथ ही मैंने इसी सारे डॉक्यूमेंट की मदद से एसबीआई से घर के रेनोवेशन के लिए लोन भी लिया था. तब भी मेरे पास ओरिजिनल पैन कार्ड नहीं था.

हमने बैंक अधिकारी से कहा कि जब बैंक को बिना ओरिजिनल पैन कार्ड के लोन देने या अकॉउंट खोलने में कोई दिक्कत नहीं हुई तो अब इलेक्टोरल बॉन्ड देने में क्यों? हमनें उनसे कहा कि अगर उन्हें पैन नंबर वेरीफाई करना है तो वो कुछ ही मिनटों में ऑनलाइन चेक कर सकते हैं. तो अब क्या दिक्कत है?

बैंक अधिकारी हमारे सवाल से थोड़ा नाराज हो कर बोला, "मैडम, इस केस में अलग बात है." उसने आगे कहा की अगर आप बैंक अकाउंट खुलवाने के लिए आती तो सेल्फ अटेस्टेड केवाईसी डॉक्यूमेंट के साथ वो फॉर्म ले लिया जाता.

लेकिन इस मामले में नहीं, क्योंकि इस मामले में सारा निर्देश मंत्रालय से आता है.
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"हमें रोज ऊपर रिपोर्ट भेजनी होती है"

जब हमने एसबीआई अधिकारी को जोर दिया कि वो डॉक्यूमेंट को वेरिफाई करके जल्द से जल्द बॉन्ड वेरिफाई कर दें. लेकिन अधिकारी ने कहा कि ये संभव नहीं है.

हर दिन डेटा जमा कर के हमें साहब को आगे भेजना पड़ता है, आप समझ रही हैं ना कि कितनी संवेदनशील चीज है. मैं आपसे क्या बोलूं.

मैंने अपने चार्टेड अकाउंटेंट को फोन कर पूछा कि नया पैन कार्ड बनवाने में कितना वक्त लगेगा. मेरे सीए ने जवाब दिया कि कम से कम एक हफ्ते लगेंगे. मेरे पास ज्यादा वक्त नहीं था क्योंकि इलेक्टोरल बॉन्ड सिर्फ सिर्फ चार दिन तक ही मिल सकता था. तो मैं दोबारा एसबीआई अधिकारी के पास गई. उन्होंने कहा कि वो मेरा मामला पहले ही 'ऊपर' भेज चुके हैं. और जैसे ही कुछ बात बनती है आपको बताया जायेगा.

जो भी एसबीआई अधिकारी ने बताया उससे ये बात तो साफ थी इलेक्टोरल बॉन्ड की बिक्री के पूरे प्रोसेस में सरकार का दखल है.

हम लोग सिर्फ सरकार के हिस्सा हैं, सभी ऑर्डर वित्त मंत्रालय की ओर से दिए आते हैं. इस मामले में बैंक का कोई विवेक नहीं है. अगर आप मेरे ग्राहक होते थे तो मैंआपका स्वागत करता.
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उन्होंने आगे कहा, "हमें भी बुरा लग रहा है कि एक कस्टमर हमारे पास बिजनेस के लिए आ रहा है और उसे हम छोटी सी बात के लिए मना कर रहे हैं.

ये भारत सरकार के निर्धारित नियम कायदे हैं, हम सिर्फ नोडल/ ऑपरेटिंग एजेंसी हैं. हमें वित्त मंत्रालय के हर दिशा निर्देश का पालन करना होगा. हर दिन की रिपोर्ट हमें दिन के आखिर में काम पूरा कर सील कर भेजनी होती है. और एक सॉफ्ट कॉपी अपलोड करनी होती है बस.

स्टेट बैंक को वित्त मंत्रालय से रोज निर्देश मिलते हैं, लेकिन वो जानकारी शेयर नहीं करता क्या इसपर यकीन मुमकिन है ?

कम पैसों के बॉन्ड पर एसबीआई हुआ राजी

अगले दिन मुझे उसी एसबीआई के अधिकारी का कॉल आया. उसने मेरे बॉन्ड की राशि की पुष्टि की कि उनके सीनियर बॉन्ड देने के लिए राजी हो गए हैं. क्योंकि सिर्फ 1000 रुपये का बॉन्ड था इसलिए बॉन्ड मुझे उसी दिन मिल जाएगा. उसने मुझसे कहा कि अगर बॉन्ड की राशि ज्यादा होती तो वो ना इसे दे पाते.

इस बार बैंक ने ज्यादा सवाल नहीं किया. बैंक अधिकारी ने बॉन्ड देने की प्रक्रिया शुरू कर दी.

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एसबीआई ने माना सीक्रेट नंबर की बात

एसबीआई के शीर्ष अधिकारी ने क्विंट को लिखे स्टेटमेंट में इस बात को माना कि इलेक्टोरल बॉन्ड में छुपा हुआ सीरियल नंबर होता है. उन्होंने कहा,

बैंक किसी भी सरकारी विभाग या एजेंसी के साथ चंदा देने वाले की डिटेल साझा करने के लिए अधिकृत नहीं है.

अब कई बड़े सवाल उठते हैं?

  • एसबीआई वित्त मंत्रालय से निर्देश लेता है, क्या यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि वे डोनर की जानकारी सरकार को दे रहे हैं?
  • बैंक के अधिकारी क्या कहना चाहते हैं जब वो कहते हैं कि चुनाव बॉन्ड खरीदने वाले एसबीआई के ग्राहक नहीं हैं?

बॉन्ड में यूनिक सीरियल नंबर का होना ये तो सच है. लेकिन क्विंट पूछता है कि ये सीक्रेट नंबर की जरूरत ही क्या थी, और क्यों आम लोगों और बॉन्ड के संभावित खरीदारों के लिए ये खुलासा नहीं किया गया? अगर राजनीतिक पार्टी को मिलने वाले चंदे की ट्रैक नहीं था तो फिर इसके पीछे सरकार की क्या नियत थी?

ये आर्टिकल एसबीआई और / या वित्त मंत्री से जवाब के साथ अपडेट किया जाएगा.

ये भी पढ़ें- ओपिनियन: विपक्ष को चंदा देने वालों पर नजर रखना ही सरकार का मकसद

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