मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Videos Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019अजब है तेल का खेल, सस्ता तो नफा सरकार का, महंगा तो नुकसान आपका

अजब है तेल का खेल, सस्ता तो नफा सरकार का, महंगा तो नुकसान आपका

कच्चा तेल सस्ता हो या महंगा, सरकारी टैक्स कलेक्शन बढ़ती रहनी चाहिए. लोगों की जेबें खाली हो, क्या फर्क पड़ता है.

मयंक मिश्रा
वीडियो
Updated:
क्रूड की कीमत तय करने का फॉर्मूला सरकार के फायदे की तरफ झुका
i
क्रूड की कीमत तय करने का फॉर्मूला सरकार के फायदे की तरफ झुका
(फोटो: क्विंट हिंदी)

advertisement

बीजेपी ने आंकड़ों के जरिए जीत का ऐलान कर दिया. दावा किया गया कि पहले की सरकारों के वक्त पेट्रोल-डीजल के दाम ज्यादा तेजी से बढ़ाए गए. इस पर कांग्रेस ने भी ट्विटर पर पलटवार किया. आंकड़ों में क्रूड के दाम जोड़कर थोड़ा करेक्ट किया कर दिया गया. लेकिन पूरी तस्वीर फिर भी नहीं मिली.

2014 के बाद की पूरी तस्वीर देखने से लगता है कि ग्लोबल मार्केट में कच्चा तेल अगर सस्ता हुआ, तो फायदा सरकार को मिला और महंगा हुआ, तो लोगों को चपत लगी. मतलब चित मैं जीता, पट तुम हारे .

बाईं तरफ कांग्रेस का चार्ट, दाईं तरफ बीजेपी का चार्ट

पेट्रोल-डीजल की कीमत तीन चीजों पर निर्भर करती है:

  1. सबसे बड़ा फैक्टर अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड की कीमत क्या है?
  2. डॉलर के मुकाबले रुपए की वैल्यू क्या है?
  3. और सरकारें कितना टैक्स लगा रही हैं?

रुपए की वैल्यू इसलिए अहम है, क्योंकि क्रूड का पेमेंट डॉलर में होता है और अगर डॉलर महंगा हुआ, तो क्रूड खरीदने के लिए ज्यादा रुपए खर्च करने पड़ते हैं.

सबसे पहले देखते हैं कि 2014 के बाद से अंतरराष्ट्रीय मार्केट में क्रूड की कीमत में बदलाव का असर दिल्ली में पेट्रोल की कीमत पर कैसा रहा है.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

दोनों ग्राफिक्स को देखने पर आपको पता चल गया होगा कि मौजूदा एनडीए सरकार के समय में क्रूड की कीमत और पेट्रोल-डीजल के दामों के बीच बहुत ही मामूली रिश्ता है. एक ही बात का खयाल रखा गया है- कच्चा तेल सस्ता हो या महंगा, सरकारी टैक्स कलेक्शन बढ़ते रहने चाहिए. लोगों की जेबें खाली हो, क्या फर्क पड़ता है.

इस बीच कलेक्शन कितना हुआ

पेट्रोल-डीजल से वसूली 2014-15 के 1.72 लाख करोड़ रुपए से 2017-18 में बढ़कर 3.43 लाख करोड़ रुपए हो गई. फिलहाल, पेट्रोल की कीमत 2014 के स्तर से काफी ज्यादा है, जबकि ग्लोबल मार्केट में क्रूड उस समय से सस्ता है. लेकिन टैक्स कलेक्शन रिकॉर्डतोड़.

पेट्रोल-डीजल की कीमत पर रुपए की वैल्यू का भी असर होता है. इसकी वैल्यू में जुलाई 2014 से करीब 20 परसेंट की गिरावट आई है. लेकिन इसका बड़ा हिस्सा यानी 13 परसेंट गिरावट तो इसी साल हुई है. इससे यही पता चलता है कि रुपए की वैल्यू से भी पेट्रोल-डीजल की कीमत का रिश्ता मामूली ही रहा है.

थोड़ा ध्यान क्रूड ऑयल प्रोडक्शन पर भी हो

हमें पता है कि देश को हर साल क्रूड इंपोर्ट करना पड़ता है. लेकिन अपने देश में प्रोडक्शन बढ़ाना तो दूर, 2014 के बाद डोमेस्टिक क्रूड प्रोडक्शन में लगातार गिरावट आ रही है. 2013-14 में हमने 3.78 करोड़ मीट्रिक टन क्रूड का प्रोडक्शन किया था. 2017-18 में वो घटकर 3.57 करोड़ मीट्रिक टन रह गया. मतलब 4 साल में हमारी मांग बढ़ी, लेकिन देश में प्रोडक्शन में 20 लाख मीट्रिक टन से ज्यादा की कमी आई. ये आंकड़े सरकारी हैं.

कमाल है. बिना किसी लॉजिक के पेट्रोल-डीजल की कीमत तय हो रही हैं. फिर भी बढ़ा-चढ़ाकर कहा जाता है कि सब कुछ सुधार दिया. कैसे? पेट्रोलियम सेक्टर के आंकड़ों को देख कर तो ऐसा नहीं लगता है.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: 13 Sep 2018,06:35 PM IST

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT