Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Videos Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019गुजरात और दिनाकरन का सबक- सियासत में किसी को कमजोर मत आंकिए

गुजरात और दिनाकरन का सबक- सियासत में किसी को कमजोर मत आंकिए

1.76 लाख करोड़ के 2जी ‘स्कैम’ में आए फैसले ने BJP की मुश्किलें बढ़ा दीं

राघव बहल
वीडियो
Published:
जयललिता के लिए कभी ‘अछूत’ रहे दिनाकरन ने बड़ा उलटफेर किया
i
जयललिता के लिए कभी ‘अछूत’ रहे दिनाकरन ने बड़ा उलटफेर किया
(फोटो: द क्विंट)

advertisement

राजनीति में हफ्तेभर का वक्त भी काफी लंबा होता है! पिछले 7 दिनों में ये कहावत कितनी सच साबित हुई है. सोमवार को प्रधानमंत्री मोदी के गृह राज्य गुजरात के किले में दरार पड़ी, तो गुरुवार को 1.76 लाख करोड़ के 2जी ‘स्कैम’ में आए फैसले ने मुश्किलें बढ़ा दीं.

इसके बाद शनिवार को लालू यादव को चारा घोटाले के दूसरे केस में दोषी ठहराया गया और रविवार को कभी अम्मा जयललिता के लिए ‘अछूत’ रहे टीटीवी दिनाकरन ने पुराने सहयोगियों और बदले की नीयत से काम कर रही केंद्र सरकार को हरा दिया. इसके साथ ही उन्होंने अम्मा की विरासत पर दावा भी कर दिया.

मैं लगातार कह रहा था कि गुजरात में बीजेपी दोहरे अंकों में सिमट कर रह जाएगी, लेकिन मेरे सहकर्मियों को इस पर ऐतबार नहीं था. वैसे भी कोई अपने बॉस को गलत नहीं कहता. गुजरात में बीजेपी को 99 सीटें मिलने के बाद न्यूजरूम में मेरी लोकप्रियता बढ़ गई और मुझे हीरो बताया जाने लगा.

(गुजरात चुनाव पर मैंने एक शर्त ऐसी भी जीती है, जिसमें मैं अपनी पसंद का 40 साल पुराना सिंगल माल्ट मांग सकता हूं. मैंने अभी तक इसके लिए ब्रांड फाइनल नहीं किया है. अगर आपके पास कुछ सुझाव हों तो मुझे जरूर भेजिएगा.)

अंडरडॉग टीटीवी जिन्होंने हिम्मत दिखाई

गुजरात की बाजी जीतने के बाद अपनी जुआरी वाली किस्मत मैंने चेन्नई के सहकर्मियों के साथ आजमाने का फैसला किया (इनमें बेहद प्रतिभाशाली स्मिता ठाकुर और विक्की वेंकटेश्वरन शामिल हैं.) अगली एडिटोरियल मीटिंग में मेरी उनके साथ कुछ ऐसी बातचीत हुई:

मैं: ‘मुझे लगता है कि टीटीवी आरके नगर उपचुनाव जीतेंगे क्योंकि भारतीय मतदाता समझदार और भावुक हैं. वे अक्सर अंडरडॉग को जीतते हुए देखना चाहते हैं. खासतौर पर तब जब उसे परेशान किया जा रहा हो.’

स्मिता/विक्की: ‘नहीं सर, वोटर बस दो पत्ती वाला चुनाव चिन्ह दबाने वाले हैं. ईपीएस/ओपीएस के कैंडिडेट को जीत मिलेगी. अम्मा समर्थकों के लिए सिर्फ चुनाव चिन्ह मायने रखता है.’

मैं उनके तर्क से सहमत नहीं था, लेकिन चुप हो गया. मुझे लगता है कि ‘हम अंग्रेजी वाले’ कम पढ़े-लिखे भारतीय वोटरों की समझदारी को स्वीकार नहीं कर पाते, जो कई बार खुद को चुनावी पंडितों से भी अधिक स्मार्ट साबित कर चुके हैं. यह मुझे ऐसा ही मामला लगा था, लेकिन तमिल राजनीति की समझ नहीं होने की वजह से मैंने उनके आगे हथियार डाल दिए.

काश, मैंने ऐसा नहीं किया होता क्योंकि टीटीवी की जबरदस्त जीत से मेरी बात सच साबित हुई. टीटीवी ने चुनाव में साहस दिखाया, जबकि ईपीएस/ओपीएस को दिल्ली के दरबारी के तौर पर देखा जा रहा था. केंद्र सरकार के फरमान के खिलाफ हमेशा खड़े होने वाले तमिलनाडु के लोगों को यह मंजूर नहीं हुआ.

गुजरात के अंडरडॉग राहुल गांधी थे...

18 दिसंबर वाले हफ्ते में मोदी और शाह के लिए कई मैसेज हैं.

यह मैसेज है, ‘माननीय प्रधानमंत्री, प्लीज आप अपना रास्ता बदलिए. हमें ऐसी राजनीति पसंद नहीं है, जिसमें एक ही शख्स की चलती हो. जिस तरह से 2014 में आप अंडरडॉग थे और हमने आपको सपोर्ट किया था, उसी तरह अब हमारी सहानुभूति नए अंडरडॉग के साथ हो जाएगी.’
गुजरात ने दिखाया कि राहुल गांधी के चुनावी ग्राफ ने ‘करवट’ ले ली है.(फोटो: PTI)
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

अगर गुजरात ने दिखाया कि प्रधानमंत्री मोदी अजेय नहीं हैं तो उसने यह भी साबित किया कि राहुल गांधी के इलेक्टोरल ग्राफ ने ‘करवट ले ली है. लोग उन्हें अच्छी नीयत वाला शख्स मानने लगे हैं. एक ऐसा अंडरडॉग, जिसके साथ अन्याय हो रहा है. गुजरात के नतीजे ने दिखा भी दिया कि यह घातक हो सकता है.

1977 में शाह कमीशन ने जो डैमेज किया था, 2017 में उन्मादी टीवी न्यूज चैनल वही काम कर सकते हैं

प्रधानमंत्री को 1977 में शाह कमीशन वाले दौर को याद करना चाहिए. जनता ने तब इंदिरा गांधी को इमरजेंसी की सजा दी थी और लोकसभा चुनाव में उन्हें जबरदस्त तरीके से हराया था. उन्हें उम्मीद थी कि जनता सरकार देश के जख्मों पर मरहम लगाएगी.

इसके बजाय, जनता पार्टी की सरकार ने शाह कमीशन बिठा दिया, जिसका काम इंदिरा को तंग करना था. इंदिरा को उसके बाद जिस तरह से निशाना बनाया गया, वह लोगों को रास नहीं आया. आखिर, वह कभी दुर्गा रही थीं, जिन्होंने बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया था, बांग्लादेश को आजादी दिलाई थी, गरीबों के लिए योजनाएं लॉन्च की थीं और परमाणु परीक्षण किया था.

फिर उनके साथ आम अपराधी जैसा सलूक क्यों हो रहा था? धीरे-धीरे इंदिरा के पॉलिटिकल ग्राफ ने करवट ली. लोग उन्हें अंडरडॉग के तौर पर देखने लगे और उसके बाद जो हुआ, वह इतिहास है. 3 साल के अंदर इंदिरा की सत्ता में जोरदार वापसी हुई.

प्रधानमंत्री को देखना चाहिए कि बीजेपी के प्रवक्ता टीवी पर कितना अग्रेसिव बयान देते हैं. 1977 में जनता सरकार को शाह कमीशन ने जिस तरह से नुकसान पहुंचाया था, बीजेपी सरकार के लिए वही काम 2017 में पूर्वाग्रह से ग्रस्त टीवी चैनल कर रहे हैं. हर शाम, ये कथित ‘पत्रकार’ न्यूज एंकर्स राहुल गांधी के बारे में अजीबो-गरीब मुद्दे उठाते हैं. हास्यास्पद मुद्दे उछाले जाते हैं. यहां तक कि दोस्तों के साथ 3 घंटे की फिल्म देखने का भी मजाक बनाया जाता है.

(जैसा कि कुछ बीजेपी का हित चाहने वालों ने बताया, अटल बिहारी वाजपेयी और एल के आडवाणी भी चुनाव हारने के बाद फिल्म देखने जाते थे. इसलिए जब बीजेपी के प्रवक्ताओं ने राहुल गांधी का फिल्म देखने के लिए मजाक बनाया तो उन्होंने राहुल को बीजेपी के सबसे बड़े नेताओं के बराबर ला खड़ा किया.)

लोगों को नेहरू, इंदिरा और राजीव की आलोचना से ऐतराज नहीं है, पर अपमानित करना पसंद नहीं

नेहरू, इंदिरा और राजीव की आलोचना से लोगों को ऐतराज नहीं है, लेकिन उन्हें अपमानित किया जाना उन्हें पसंद नहीं.

परिवारवाद को लेकर राहुल के बारे में जो बातें कही जाती हैं, उनमें से कई लिखे जाने लायक नहीं हैं. लोग उनसे नफरत नहीं करते. यहां तक कि नेहरू के आलोचक भी मानते हैं कि वह आधुनिक भारत के निर्माता हैं. इंदिरा गांधी की इमरजेंसी के लिए आलोचना होती है, लेकिन उनके चाहने वालों की भी कमी नहीं है.

राजीव गांधी ने बोफोर्स, शाह बानो, अयोध्या जैसी गलतियां की हों, लेकिन उन्हें इकोनॉमी को आधुनिक चेहरा देने की पहल का श्रेय भी दिया जाता है. इंदिरा और राजीव गांधी की हत्या की गई. इतना ही नहीं, जो शख्स जिंदा नहीं है, उसके बारे में बुरा सुनना भारतीयों को पसंद नहीं.

जब राहुल यह कहते हैं कि वह अपनी भाषा का स्तर नहीं गिरा सकते तो मध्य वर्ग को यह बात अच्छी लगती है. सोशल मीडिया, पॉजिटिव मीडिया कमेंट्री और पान दुकानों पर होने वाली चर्चा से भी लग रहा है कि राहुल की करवट बदल रही है. गुजरात का नतीजा तो हम सबके सामने है ही.

तेजस्वी और लालू यादव को भी अंडरडॉग वाली छवि का फायदा मिल सकता है

तेजस्वी और लालू यादव को भी अंडरडॉग वाली छवि का फायदा मिल सकता है.(फोटो: PTI)

तेजस्वी और लालू यादव के साथ भी ऐसा ही हो रहा है. 2015 में लालू ने ऐसी बाजी जीती थी, जो अब उनसे छीन ली गई है. लोग उन्हें विक्टिम की तरह देख रहे हैं, जो डबल क्राॅस का शिकार हुआ.

लोग यह भी देखते आए हैं कि भ्रष्ट नेता किस तरह से छूट जाते हैं और दूसरी तरफ, जांच एजेंसियां कैसे लालू को निशाना बना रही हैं. तेजस्वी को बेवजह निशाना बनाने से भी लोग नाराज हैं.  

मैं गलत हो सकता हूं, लेकिन मुझे लगता है कि उन्हें भी बिहार में अंडरडॉग की छवि का फायदा मिल सकता है.

सावधान हो जाइए प्रधानमंत्री जी, राजनीति में अपमानित किए जाने वाले अंडरडॉग की भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है.

ये भी पढ़ें-

चारा घोटाला केस: लालू यादव को जेल, जगन्नाथ मिश्रा को बेल

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT