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चारा घोटाला केस: लालू यादव को जेल, जगन्नाथ मिश्रा को बेल

कोर्ट ने ये फैसला देवघर कोषागार से 89 लाख, 27 हजार रुपये का फर्जीवाड़े के केस में सुनाया है.

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  • लालू यादव दोषी करार, जगन्नाथ मिश्रा बरी
  • 22 आरोपियों में से 15 दोषी, 7 बरी
  • 3 जनवरी 2018 को सजा का ऐलान
  • CBI ने देवघर कोषागार मामले में सुनाया फैसला

90 के दशक के चारा घोटाला मामले में रांची सीबीआई कोर्ट ने लालू प्रसाद यादव और जगन्‍नाथ मिश्र समेत 22 आरोपियों पर फैसला सुना दिया है. कोर्ट ने लालू यादव समेत 15 लोगों को दोषी करार दिया गया है, जबकि बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र समेत 7 लोगों को बरी कर दिया गया है.

आरोपियों पर अब 3 जनवरी को सजा का ऐलान होगा, तब तक लालू यादव को रांची के बिरसा मुंडा जेल भेज दिया गया है.

सीबीआई जज शिवपाल सिंह ने 13 दिसंबर को सुनवाई पूरी कर ली थी, जिसके बाद शनिवार को सभी आरोपियों की मौजदूगी में ये फैसला सुनाया गया.

कोर्ट ने ये फैसला देवघर कोषागार से 89 लाख, 27 हजार रुपये निकालने के मामले में सुनाया है. इस कोषागार से साल 1991-1994 के बीच फर्जी तरीके से चारे के लिए रुपये निकाले गए थे.

कुल चारा घोटाला करीब 950 करोड़ का बताया जाता है. इसमें लालू यादव पर कुल 6 अलग अलग मामले हैं, जिसमें से 2013 में चाईबासा कोषागार के एक मामले में लालू को 5 साल की सजा मिल चुकी है. ये मामला 37 करोड़ 70 लाख रुपये अवैध ढंग से निकालने का था. सजा के बाद लालू यादव जमानत पर थे. सजा मिलने के बाद लालू को लोकसभा सीट भी गंवानी पड़ी थी.

कोर्ट से बाहर आते हुए लालू यादव का वीडियो.

फैसले के बाद लालू यादव की प्रतिक्रिया

फैसले के बाद लालू यादव के ट्विटर हैंडल से कुछ ट्वीट किए गए, जिसमें उन्होंने बीजेपी पर आरोप लगाया कि वो द्वेष की भावना की राजनीति करती है. इसके अलावा उन्होंने एक के बाद एक तमाम ट्वीट किए हैं.

फैसला आने के बाद राष्ट्रीय जनता दल (RJD) की ओर से प्रेस कॉन्फ्रेंस की गई. पार्टी के प्रवक्ता मनोज झा ने पत्रकारों को संबोधित किया.

फैसले से पहले लालू प्रसाद यादव ने कहा था कि उन्‍हें पूरा भरोसा है कि साथ न्याय होगा. लालू ने 2जी का जिक्र करते हुए कहा कि उनके केस में भी कोर्ट सही फैसला सुनाएगी और इंसाफ होगा.

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क्या है चारा घोटाला मामला?

1990-97 के अपने मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान लालू प्रसाद पर चारा घोटाला में शामिल होने का आरोप लगा. चारा घोटाला बिहार का सबसे चर्चित घोटाला था, जिसमें जानवरों को खिलाये जाने वाले चारे और पशुपालन से जुड़ी चीजों की खरीदारी के नाम पर करीब 950 करोड़ रुपये सरकारी खजाने से फर्जीवाड़ा करके निकाल लिए गए.

चारा घोटाले मामले में 30 जुलाई, 1997 में लालू प्रसाद ने सीबीआई कोर्ट के सामने सरेंडर कर दिया था. उन्होंने मुख्यमंत्री पद से भी इस्तीफा दे दिया था.

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साल 1990 से 1994 के बीच देवघर कोषागार से 89 लाख, 27 हजार रुपये का फर्जीवाड़ा कर अवैध ढंग से पशु चारे के नाम पर निकासी के इस मामले में कुल 38 लोगों को आरोपी बनाया गया.

इनके खिलाफ सीबीआई ने 27 अक्टूबर, 1997 को केस दर्ज किया था.

इस केस में लालू, पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा, बिहार के पूर्व मंत्री विद्यासागर निषाद, पीएसी के तत्कालीन अध्यक्ष जगदीश शर्मा, ध्रुव भगत, आर के राणा, तीन आईएएस अधिकारी- फूलचंद सिंह, बेक जूलियस और महेश प्रसाद, कोषागार के अधिकारी एस के भट्टाचार्य, पशु चिकित्सक डॉ. केके प्रसाद और अन्य चारा आपूर्तिकर्ता आरोपी थे.

सभी 38 आरोपियों में से 11 की मौत हो चुकी है, वहीं 3 सीबीआई के गवाह बन गये जबकि 2 ने अपना गुनाह कुबूल कर लिया था, जिसके बाद उन्हें 2006-7 में ही सजा सुना दी गयी थी.

शिवपाल सिंह की सीबीआई कोर्ट ने इस मामले में सभी पक्षों के गवाहों के बयान दर्ज करने और बहस के बाद अपना फैसला 13 दिसंबर को सुरक्षित रख लिया था.

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