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वीडियो एडिटर-अभिषेक शर्मा
कैमरा- शिव कुमार मौर्या
आखिरकार हरियाणा में विधानसभा चुनाव की तारीखों का एलान हो गया है. ये 2019 में बीजेपी को मिली बंपर जीत के बाद पहला चुनावी इम्तहान है. लिहाजा ये बीजेपी की लोकप्रियता का भी टेस्ट है और कांग्रेस समेत तमाम रीजनल पार्टियों की हालत का भी. दिल्ली से सटे इस राज्य में वोटिंग 21 अक्टूबर को होगी और नतीजे 24 अक्टूबर को घोषित किए जाएंगे.
हरियाणा की पॉलिटिक्स में राजनीतिक पार्टियों का हाल कुछ यूं है जैसे एक छोटे से तालाब में खूब सारी भैंस घुस गई हों. BJP, JJP, कांग्रेस, INLD, BSP. पुरानी पार्टियों को भी जोड़ लें तो कांग्रेस में मर्ज हो चुकी कुलदीप बिश्नोई की HJC या मुख्यमंत्री रहे बंसी लाल की HVP. देश की आबादी में सिर्फ 2 फीसदी हिस्सेदारी वाले राज्य में पॉलिटिकल पार्टियों की लंबी लाइन है.
लेकिन मौजूदा हालात ऐसे हैं जैसे बीजेपी एक तरफ और तमाम दूसरी पार्टियां दूसरी तरफ.
फरवरी 2016 में हुए हिंसक जाट आंदोलन ने ना सिर्फ हरियाणा की कानून-व्यवस्था को बर्बाद किया बल्कि सूबे की सामाजिक समरसता को भी गहरे घाव दिए. लगा कि पहली बार मुख्यमंत्री बने मनोहर लाल खट्टर से हरियाणा संभल नहीं पाएगा.
लेकिन 2014 विधानसभा चुनाव में करीब 33% वोट पाने वाली बीजेपी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में करीब 58 फीसदी वोट और लोकसभा की सभी 10 सीटें जीतकर खुद को कतार में बहुत आगे खड़ा कर लिया है. हरियाणा में इस बार अमित शाह ने ‘मिशन 75’ का नारा दिया है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रोहतक की रैली के जरिए पहले ही चुनाव प्रचार का आगाज कर चुके हैं और पार्टी की तरफ से मुख्यमंत्री का चेहरा भी साफ है- मनोहर लाल खट्टर.
कांग्रेस पार्टी बीजेपी से तब पंजा लड़ाए जब उसकी अपनी लड़ाइयां खत्म हों. पार्टी के कद्दावर नेता और दो बार के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुडा को बागी तेवरों के बाद पार्टी ने विधायक दल का नेता बनाया गया है. चुनाव की दहलीज पर कांग्रेस ने अशोक तंवर की जगह कुमारी शैलजा को लाकर अपना प्रदेश अध्यक्ष भी बदला है.
अशोक तंवर की तरह ही शैलजा भी दलित समुदाय से हैं. हुडा जाट हैं और उन्हें पार्टी के विधायक दल का नेता बनाकर कांग्रेस ने इशारा दिया है कि वो पार्टी के मुख्यमंत्री उम्मीदवार हैं. लेकिन जैसे लट्ठ पार्टी में बज रहे हैं उसके चलते वोटर के जहन में तस्वीर साफ नहीं है.
देवी लाल परिवार में दो फाड़ के बाद उनके परिवार की युवा पीढ़ी ने बनाई- जननायक जनता पार्टी. इसी साल जनवरी में जेजपी ने जींद उपचुनाव की शक्ल में पहला चुनाव लड़ा. बीजेपी जीती और जेजेपी दूसरे नंबर पर रही लेकिन उसके बाद से दो युवा चौटालाओं की ये पार्टी कोई खास असर नहीं छोड़ पाई है.
ओमप्रकाश चौटाला की आईएनएलडी के हालिया प्रदर्शन खराब रहे हैं. हरियाणा में जमीन तलाश रही मायावती की बीएसपी और आईएनएलडी के गठबंधन की सुगबुगाहट हुई थी लेकिन वो हुआ नहीं. होता तो जाट और दलित वोट का एक अच्छा सियासी गठजोड़ बन सकता था.
वैसे पिछले कुछ सालों में बीजेपी ने ‘हिंदू वोटर’ की बड़ी छतरी के नीचे जाट, दलित, ब्राह्मण, ठाकुर, यादव, गुज्जर, बनिया, पिछड़े, अति-पिछड़े जैसी जातियों में फैली क्षेत्रिय दलों की पैठ को बुरी तरह प्रभावित किया है.
दिसंबर 2018 में हिंदी पट्टी के तीन राज्यों में कांग्रेस को जिताकर वोटरों ने संदेश दिया था कि विधानसभा चुनाव में पीएम मोदी के नाम पर वोट नहीं देते. लेकिन कश्मीर में आर्टिकल 370 हटाने और लगातार पाकिस्तान को धमकाने के इस माहौल में हो रहे ये चुनाव आने वाले दिनों का बड़ा राजनीतिक संदेश देंगे.
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