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ये जो इंडिया है ना...यहां कुछ लोग मानते हैं कि यहां नफरत (Hate) नहीं है. उन लोगों के मुताबिक क्या शिक्षक का अपने छात्रों को एक-एक कर बुलाना और एक मुस्लिम बच्चे को थप्पड़ लगवाना नफरत नहीं है? RPF कॉन्सटेबल चेतन सिंह (Chetan Singh) का ट्रेन के अंदर मुसलमान यात्रियों को चुन-चुन कर मारना नफरत नहीं है? मुसलमानों के आर्थिक बहिष्कार की बात करते हैं, सारे वायरल वीडियो...ये भी नफरत नहीं है?
हम इसे नकार सकते हैं लेकिन सच यही है कि नफरत अब हमारे देश और समाज में अंदर तक घुस चुकी है. ये वीडियो बता रहा है कि नफरत अब हमारे स्कूल में भी पहुंच गई है.
शिक्षिका तृप्ता त्यागी ने कहा कि मोहमडन (यानी मुस्लिम) छात्रों की माएं उनकी पढाई पर ध्यान नहीं देती हैं, जिसकी वजह से उनकी पढाई-लिखाई बर्बाद हो जाती है. ये साफ तौर पर मुसलमानों के प्रति एक नफरती इंसानियत दिखाने वाला एक अपमानजनक, संप्रदायिक बयान है.
क्या टीचर ने "मारो", "काटो" या मुसलमानो को 'गद्दार' कहा? नहीं...लेकिन क्या सिर्फ ऐसा कहने पर नफरत की शुरुआत होती है? जी नहीं. इसकी शुरुआत यहीं से हुई है, जब स्कूल में ऐसे शिक्षक अपने छात्रों के मासूम जहनों में, उनके दिमाग में नफरत और कट्टरता भरना शुरू करते हैं.
और फिर ये नफरत बढ़ती जाती है. स्कूलों में नफरत, घरों के अंदर होने वाली बातचीत में नफरत, सोशल मीडिया पर नफरत, टीवी न्यूज चैनल के डिबेट्स में नफरत, धर्म-संसदों में, महापंचायतो में, राजनितिक भाषणों में...हर जगह से धीरे-धीरे नफरत सीखी जाती है. फिर इस नफरत को गलत जानकारी, फेक न्यूज और नफरत की राजनीति के साथ मिला कर.. हम पैदा करते हैं RPF कांस्टेबल चेतन सिंह जैसा हैवान.
कुछ महीने पहले कर्नाटक के एक कॉलेज में, एक लेक्चरर ने एक छात्र का नाम सुनकर कहा- "ओह, तो तुम कसाब जैसे हो" स्वाभाविक रूप से, छात्र को वो बात सरासर गलत लगी.
कर्नाटक में ही हमने कॉलेज-कैंपस के अंदर हिजाब पहनने वाली मुस्लिम छत्राओं को निशाना बनाते हुए देखा, जिसका तत्कालिन बीजेपी सरकार ने भी समर्थन किया.
फिर...दिसंबर 2021 में ये वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें उत्तर प्रदेश के सोनभद्र के एक स्कूल में छात्र भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए "लड़ने, मरने और मारने" की शपथ ले रहे हैं.
नफरत फैलाने वालों को ढूंढना आसान है, उनके नफरती वायरल वीडियो आसानी से मिल जाते हैं. उनके नाम सभी जानते हैं. उनसे कुछ के खिलाफ FIR भी दर्ज है, लेकिन वे जमानत पर बाहर हैं. उनसे कुछ, अपनी जमानत की शर्तों को तोड़कर, अभी भी खुले-आम नफरती भाषण दे रहे हैं लेकिन फिर भी वे आजाद हैं.
लगतार नफरत और हिंसा की धमकियों ने मन में डर पैदा कर दिया है. इस बच्चे के परिवार के मन में ही नहीं, बल्कि हमारे देश के कई मुस्लिम नागरिकों के मन में भी, हमने कुछ ही दिन पहले देखा कि कैसे मुस्लिम परिवारों को उत्तराखंड के पुरोला कस्बे से भगाया गया और इसकी वजह साफ है- देश के कई मुसलमानों को अब लगता है कि सरकार के पास नफरतियों के खिलाफ कार्रवाई करने की न क्षमता है, न ही इच्छा. सरकार और पुलिस पर उनका भरोसा उठ रहा है.
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