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वीडियो एडिटर: संदीप सुमन
नेताजी सुभाष चंद्र बोस...एक ऐसा नाम जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायकों में से एक है. जब भी बोस की बात होती है तो सबसे पहले जेहन में गूंजता है-आजाद हिंद फौज या इंडियन नेशनल आर्मी, जिस फौज ने आजादी की लड़ाई में एक अहम भूमिका निभाई थी. आपको पता ही होगा कि आजाद हिंद फौज विदेशी धरती पर बनाई गई थी और ये पूरी की पूरी सेना युद्ध के बंदियों के जरिए बनाई गई थी.
दरअसल, बताया ये जाता है कि इंपीरियल जापानीज आर्मी ने करीब 45 हजार ब्रिटिश इंडियन सोल्जर्स को अपने कब्जे में कर लिया था. ये भारतीय लोगों की सेना थी.
अब ये सवाल कि आखिर जापान को इस इंडियन आर्मी में क्या इंटरेस्ट था. तो आइडिया ये था कि जापान युद्ध में एक सहयोगी चाहता था. ऐसे में जापान ने तय किया कि इंडियन नेशनलिस्ट की भावनाओं को युद्ध में ब्रिटेन के खिलाफ इस्तेमाल किया जाए. ऐसे में उन्होंने आर्मी के जवानों को अपने कब्जे में ले लिया था.
इन्हीं सैनिकों के दम पर आजाद हिंद फौज बनी. इसका नेतृत्व कैप्टन मोहन सिंह कर रहे थे. सिर्फ 1 पखवाड़े के भीतर सैकड़ों की संख्या में लोग इस फौज में शामिल होने के लिए Farrer Park में इकट्ठा हुए.
लेकिन इन सबमें सुभाष चंद्र बोस की क्या भूमिका थी?
पहले में नहीं लेकिन दूसरे अवतार में थी. साल 1943 में सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज की कमान संभाली. दिसंबर 1942 तक कैप्टन मोहन सिंह और जापानियों में मतभेद हो चुके थे. Farrer Park में INA में शामिल होने वाले लगभग आधे भारतीय सैनिक जा चुके थे. सुभाष चंद्र बोस की एंट्री होती है.
पूर्व कांग्रेस प्रमुख बोस मानते थे कि भारत को आजादी मिलिट्री तरीकों से मिल सकती है. बोस को INA की अध्यक्षता करने और उसे दोबारा जिंदा करने के लिए सबसे सही शख्स समझा गया.
बोस ने आजाद हिंद फौज के लिए मलय इलाके में और सैनिकों की भर्ती की. INA को वैधता देने के लिए उन्होंने 'आजाद भारत की प्रोविंशियल सरकार' की स्थापना कर दी. INA ने खुद को निर्वासित सरकार की की मिलिट्री बताया.
जापान के आजाद हिंद फौज को लड़ाई में शामिल करने के दो मकसद थे.
एक ब्रिटिश मिलिट्री हिस्टोरियन रॉब हेवर्स ने लिखा है कि कैसे आईएनए की सैन्य ताकत कमजोर थी. क्योंकि जापानी सैनिकों ने आईएनए को काफी पुराने और खराब हथियार दिए थे.
लेकिन इसके बावजूद आजाद हिंद फौज ने दूसरे विश्व युद्ध में दो मिलिट्री एनकाउंटर में हिस्सा लिया. जनवरी-फरवरी 1944 में बर्मा के अकरान में आजाद हिंद फौज के सैनिकों ने ब्रिटिश भारतीयों की भावनाओं को देखते हुए डिविजनल हेडक्वॉर्टर पर कब्जा करने के लिए जापानी सेना की मदद की.
जब मई 1945 में बर्मा के रंगून को उसके सहयोगी देशों ने अपने कब्जे में ले लिया, तब आईएनए के सैनिकों ने सरेंडर करना शुरू कर दिया. उनके नेता सुभाष चंद्र बोस इस लड़ाई को जारी रखने के लिए सोवियत संघ के लिए निकल पड़े. इसके लिए उन्होंने उड़ान भरी, लेकिन ताइवान में एक रहस्यमयी प्लेन क्रैश में उनकी मौत हो गई. जिसके बाद आजाद हिंद फौज भी बिखर गई.
लेकिन शायद जिस सबसे महत्वपूर्ण तरीके से INA ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को को परिभाषित किया वो युद्ध के मैदान से दूर था. लाल किले पर.
इससे पहले, भारत में अधिकतर लोग इस फौज के बारे में नहीं जानती थी, जो उनकी आजादी के लिए लड़ रही थी. लेकिन अब INA को लोगों का समर्थन हासिल था. अगर देश की एकता की बात करें, तो एक हिंदू, मुसलमान और सिख आपस में काफी पावरफुल थे.
अपनी आजादी की लड़ाई लड़ रहे एक देश को अपने तीन हीरो मिल गए थे.तीनों को दोषी पाया गया, लेकिन फैसले पर लोगों के गुस्से का मतलब था कि खान, सहगल और ढिल्लोन को जल्द ही रिहा कर दिया जाएगा. रेड फोर्ट ट्रायल के कारण ब्रिटिश इंडियन आर्मी, रॉयल इंडियन एयरफोर्स और रॉयल इंडियन नेवी के अंदर भी हड़ताल देखने को मिली.
देश की आजादी के लिए जो आंदोलन धीरे-धीरे बढ़ रहा था, आजाद हिंद फौज और रेड फोर्ट ट्रायल से उसे गति मिली.
INA ने भले भारत की आजादी को सैन्य रूप से सुरक्षित नहीं किया, लेकिन भारत की आजादी के लिए विदेशी धरती पर बनी एक सेना के तौर पर उसने हर भारतीय के अंदर जज्बा पैदा किया. और वो अब भी कर रहा है.
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