Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Zindagani Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Zindagi ka safar  Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019सुभाष चंद्र बोस : गांधी से नहीं बनी फिर क्यों कहा था राष्ट्रपिता? 

सुभाष चंद्र बोस : गांधी से नहीं बनी फिर क्यों कहा था राष्ट्रपिता? 

गांधी जी के विरोध के बावजूद कांग्रेस प्रेसिडेंट बने बोस ने सिविल सेवा भी छोड़ी थी

सुदीप्त शर्मा
जिंदगी का सफर
Updated:
गांधी के साथ बोस, उनके बगल में बैठे हैं वल्लभ भाई पटेल
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गांधी के साथ बोस, उनके बगल में बैठे हैं वल्लभ भाई पटेल
गांधी के साथ बोस, उनके बगल में बैठे हैं वल्लभ भाई पटेल

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''तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा" ये उस क्रांतिकारी देशभक्त का नारा था जिसने अपने विचारों से नौजवानों में आजादी की ललक पैदा की. आजाद हिंद फौज के संस्थापक और अंग्रेजों से देश को मुक्त कराने में अपना बहुमुल्य योगदान देने वाले सुभाष चंद्र बोस का आज जन्मदिन है. 23 जनवरी 1897 को कटक में पैदा हुए बोस ने कलकत्ता यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया. इसके बाद वे इंडियन सिविल सर्विसेज की परीक्षा देने इंग्लैंड चले गए. उन्होंने परीक्षा पास भी की. लेकिन बाद में उन्होंने नौकरी छोड़ दी और आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए.

1923 में वे ऑल इंडिया यूथ कांग्रेस के प्रेसीडेंट भी बने. 1925 में उन्हें मांडले जेल भेज दिया, जहां से वे 1927 में वापस लौटे. एक बार फिर उन्हें सविनय अवज्ञा में गिरफ्तार कर लिया गया. जब वे जेल से वापस आए, तो 1930 में उन्हें कलकत्ता का मेयर बनाया गया.

महात्मा गांधी के साथ सुभाष चंद्र बोस, उन्होंने ही पहली बार उन्हें राष्ट्रपिता बोला थाफोटो: ट्विटर/@mw569256)
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1938 में बोस कांग्रेस के प्रेसीडेंट चुने गए. 1939 में गांधी के विरोध के बावजूद उन्होंने पट्टाभि सीतारमैया को प्रेसीडेंट इलेक्शन में शिकस्त दे दी. लेकिन जल्द ही आंतरिक विरोध के चलते उन्होंने इस्तीफा दे दिया. इसके बाद उन्होंने फॉरवर्ड ब्लॉक का गठन किया. उनकी मास अपील के चलते अंग्रेज सरकार ने बोस को हाउस अरेस्ट कर लिया.

नजरबंद बोस ने हाउस अरेस्ट से भाग निकलने की योजना बनाई. उन्होंने अपनी दाढ़ी बढ़ाई. पठान के वेश में वे भागने में कामयाब रहे. पहले वे बिहार गए. वहां से पेशावर, जहां से काबुल, मास्को और रोम होते हुए वे जर्मनी पहुंचे. यहां उन्होंने हिटलर से मुलाकात की.

हिटलर से पहले बोस ने रूस से मदद मांगी थी. लेकिन रूस खुद ही सेकंड वर्ल्ड वॉर में फंसा हुआ था. इसके बाद वे जर्मनी पहुंचे. 1943 में बोस जापान की सहायता से साउथ ईस्ट एशिया पहुंचे. यहां उन्होंने मोहन सिंह द्वारा बनाई इंडियन नेशनल आर्मी की कमान संभाली.

जवाहर लाल नेहरू और शरत चंद्र बोस के साथ सुभाष चंद्र बोस(फोटो: नेहरू मेमोरियल म्यूजियम एंड लाइब्रेरी)

तमाम मतभेदों के बावजूद बोस, गांधी की बेहद इज्जत करते थे. इंडियन नेशनल आर्मी की चार टुकड़ियां थीं. इनमें से एक का नाम महात्मा गांधी के ऊपर था. बोस ने युद्ध के पहले अपने भाषण में गांधी से आशीर्वाद मांगते हुए शुरूआत की थी. सिंगापुर से रेडियो पर उद्बोधन देते हुए गांधी को पहली बार राष्ट्रपिता सुभाष चंद्र बोस ने ही कहा था.

युद्ध के दौरान उन्होंने जापानी सेना के साथ मिलकर म्यांमार पर जीत हासिल की. इस बीच जापान पर परमाणु हमला हो गया और युद्ध रुक गया. बोस का कैंपेन भी रोक दिया गया.

सुभाष चंद्र बोस ने मोहन सिंह द्वारा बनाई गई इंडियन नेशनल आर्मी की कमान संभाली थी.

18 अगस्त 1945 को टोकियो जाते वक्त ताईवान में उनका प्लेन क्रैश हो गया. कहा जाता है उनका अंतिम संस्कार जापान में कर दिया गया. उनकी अस्थियां रोकोनजी टेंपल में रखी गईं. हालांकि उनकी मौत पर लगातार सवाल उठाए जाते रहे.

यह भी पढ़ें: बंगाल में सुभाष चंद्र बोस की 121वीं जयंती पर कई कार्यक्रम

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Published: 23 Jan 2019,08:34 AM IST

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