12 IIM में क्यों नहीं एक भी SC/ST फैकल्टी?

हमारे देश के 12 IIM में एक भी SC/ST फैकल्टी मेंबर नहीं हैं.

अस्मिता नंदी
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IIM और IIT जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में सोशल डायवर्सिटी क्यों नहीं है?
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IIM और IIT जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में सोशल डायवर्सिटी क्यों नहीं है?
(फोटो: क्विंट हिंदी)

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वीडियो एडिटर: पूर्णेंदु प्रीतम

IIM और IIT में SC/ST फैक्ल्टी मेंबर इतने कम क्यों हैं? मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने नवंबर में राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में कहा था कि हमारे देश के 12 IIM में एक भी SC/ST फैकल्टी मेंबर नहीं हैं. इनमें देश के 2 टॉप IIM संस्थान- अहमदाबाद और कोलकाता भी शामिल हैं और बाकी 8 IIM में सिर्फ 11 SC/ST फैकल्टी मेंबर हैं.

जहां तक IIT का सवाल है, तो इस साल जनवरी तक के आंकड़ों के मुताबिक सभी संस्थानों में SC/ST मेंबर की संख्या पूरे फैकल्टी मेंबर्स की संख्या से 3% से भी कम थी. IIT और IIM, इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट की पढ़ाई के लिए देश के सबसे प्रतिष्ठित संस्थान हैं.

सवाल है कि आखिर इतने प्रतिष्ठित संस्थानों में सोशल डायवर्सिटी क्यों नहीं है?

लेखक और अमेरिका बेस्ड एकेडमिक, सूरज येंगडे कहते हैं, भारत के एजुकेशनल सिस्टम में अनमोल रत्न का दर्जा रखने वाले IIT और IIM न सिर्फ (तथाकथित) सवर्ण जाति के क्लब हैं बल्कि वो ऐसी जगहें हैं जहां जनरल कैटेगरी के अलावा अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और ओबीसी कैटेगरी से संबंध रखने वालों को दबाया-कुचला जाता है.

संविधान के प्रावधानों के मुताबिक, सभी सरकारी संस्थानों में अनुसूचित जातियों के लिए 15% आरक्षण, अनुसूचित जनजातियों के लिए 7.5% और अन्य पिछड़ी जातियों (ओबीसी) के लिए 27% आरक्षण देना जरूरी है. IIT और IIM, डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनेल एंड ट्रेनिंग के एक पुराने आदेश का हवाला देकर आरक्षण या तो पूरी तरह लागू नहीं करते या उसे बाई-पास करते हैं. उस आदेश में साइंटिफिक और टेक्निकल पदों को आरक्षण से मुक्त रखा गया है. इस मुद्दे पर IIM अहमदाबाद के खिलाफ हाईकोर्ट में मुकदमा दर्ज है. आरक्षण से जुड़े मुद्दों पर केन्द्र सरकार का नोडल महकमा है. DoPT साल 1975 के एक आदेश में महकमे ने साइंटिफिकऔर टेक्निकल पोस्ट को आरक्षण के दायरे से मुक्त रखने की मांग की थी.

IIM बैंगलोर के एल्युमनस सिद्धार्थ जोशी जानकारी देते हैं कि 1975 में डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल एंड ट्रेनिंग ने IIM अहमदाबाद को फैकल्टी के पदों पर नियुक्ति को आरक्षण के दायरे से मुक्त रखा है. IIM अहमदाबाद ने अपने यहां ये आदेश लागू कर दिया, वहीं IIM के दूसरे संस्थानों ने मान लिया कि ये आदेश उनके लिए भी लागू है और उन्होंने भी अपने यहां आरक्षण लागू नहीं किया.

अक्सर IIM की दलील होती है कि मानकों के अनुरूप क्वालिफाइड न होने के कारण वो SC/ST मेंबर्स को नियुक्त नहीं करते.

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सिद्धार्थ जोशी कहते हैं, रिसर्च पेपर लिखने के दौरान हमने पाया कि 2017 में IIM के एक-तिहाई फैकल्टी मेंबर अपने डॉक्टोरल प्रोग्राम के दौरान चुने गए थे. इसका मतलब है कि एक-तिहाई सदस्यों को खुद IIM ने ट्रेनिंग दी थी. इन प्रोग्राम में कम से कम 270 या ज्यादा से ज्यादा 400 उम्मीदवारो को ट्रेंड किया जा सकता था.

इन प्रोग्राम के कुछ मेंबर्स जो कमजोर वर्गों के थे IIM के फैकल्टी भी बन सकते थे लेकिन ऐसा नहीं हुआ, क्योंकि IIM ने आरक्षण की सुविधा लागू नहीं की है. जहां तक IIT का सवाल है तो छात्रों में मेरिट की कमी का बहाना दिया जाता है. क्रिकेट और दूसरे स्पोर्ट्स इवेंट में कोटा सिस्टम का हवाला देते हुए IIT दिल्ली के प्रोफेसर एम बालकृष्णन ने OBC पर एक रिसर्च पेपर पेश करते हुए कहा कि

मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि IIT से पढ़े किसी भी रैंक का इंजीनियर IIT को दुनिया के सबसे बेहतर 10 नहीं तो सबसे बेहतर 20 संस्थानों में रख सकता है. अगर प्रस्तावित आरक्षण नीति लागू कर दी जाए तो संस्थान के लिए ये पोजि‍शन बनाए रखना बेहद मुश्किल हो जाएगा

‘मेरिट की कमी’ की दलील से सभी सहमत नहीं हैं.

लेखक और अमेरिका बेस्ड एकेडमिक, सूरज येंगडे कहते हैं: “हम एक ऐसी दोयम दर्जे की शिक्षा प्रणाली बनते जा रहे हैं जो ब्राह्मण, ब्राह्मणवाद और ब्राह्मणवादिता को अहमियत देने और कुछ प्रभावशाली जातियों के पुरुषों को दूसरों से श्रेष्ठ साबित करने में लगी है ताकि वो लोग ज्ञान की उत्पत्ति और उसके वितरण को नियंत्रित कर सकें.”

प्रोफेसर सुखदेव थोराट कहते हैं: “जहां तक शिक्षा व्यवस्था में आरक्षण का सवाल है तो आमतौर पर यूनिवर्सिटी इसका विरोध करते हैं. किसी भी यूनिवर्सिटी को सभी के लिए विज्ञापन देना चाहिए साथ ही मेधावी छात्रों को तलाशकर उन्हें बढ़ावा देना चहिए.”

IIT अभी तक की सिर्फ शुरुआती स्तर पर फैकल्टी मेंबर पदों पर SC/ST लोगों को नियुक्त कर रहे थे. 21 नवंबर को मानव संसाधन मंत्रालय ने IIT को नोटिस भेजा जिसमें साफ-साफ कहा गया है कि सीनियर फैकल्टी पदों पर SC/ST लोगों को नियुक्त करें. IIM को भी इसी तरह का निर्देश दिया गया था. नोटिस में मंत्रालय का कहना है कि वो “सभी पुराने आदेशों को खारिज करती है.”

मैनेजमेंट संस्थानों को मार्च 2019 में पारित सेन्ट्रल एजुकेशनल इंस्‍टीट्यूशन, यानी रिजर्वेशन इन टीचर्स कैडर एक्ट का पालन करने को कहा गया थाइस कानून के मुताबिक संस्थान के सभी विभागों की फैकल्टी में SC/ST, OBC और EWS में खाली पदों पर सीधे भर्ती की सुविधा है. इस सिलसिले में IIM को रोस्टर तैयार करने और उसी के मुताबिक नियुक्ति के लिए कहा गया है.

सिद्धार्थ जोशी कहते हैं, मानव संसाधन मंत्रालय का निर्देश काफी फायदेमंद है लेकिन इसकी कोई गारंटी नहीं है कि नतीजे उम्मीद के मुताबिक होंगे क्योंकि इन संस्थानों में जिन सामाजिक वर्गों का बोलबाला है वो इस कानून के लूपहोल्स को उधेड़कर उसे लागू होने से रोकने की पूरी कोशिश करेंगे. उनकी कोशिश होगी कि कमजोर तबके के लोग इन संस्थानों की फैकल्टी में शामिल न होने पाएं.

IIT और IIM में फैकल्टी में आरक्षण क्यों जरूरी है?

मनीष ठाकुर, IIM कलकत्ता के प्रोफेसर: अगर उन्हीं मार्जिनलाइज्ड कम्युनिटी के टीचर हों तो माहौल बेहतर हो जाता है और वो संकोच कम करेंगे.

सिद्धार्थ जोशी: समावेश क्यों जरूरी है? इन क्लासरूम में आने वाले दलित समुदाय के छात्रों को रोल मॉडल उपलब्ध कराने के लिए जरूरी है. क्लासरूम में लोकतांत्रिक माहौल बनाने के लिए जरूरी है. इन संस्थानों में लोकतांत्रिक माहौल स्थापित करने के लिए जरूरी है जहां अब तक चुनिन्दे वर्गों का ही बोलबाला रहा है. संस्थानों में दिए जाने वाले ज्ञान को डेमोक्रेटिक बनाने के लिए जरूरी है. उदाहरण के लिए कचरा प्रबंधन में मैनुअल स्कैवेंजिंग को शामिल क्यों नहीं किया जाना चाहिए? इन IIM में इसकी पढ़ाई कभी नहीं हुई है, लिहाजा आरक्षण बेहद जरूरी है.

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