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कैश यानी नकद हर एंटरप्रेन्योर, बिजनेसमैन जानता है कि ये ऑक्सीजन की तरह होता है क्योंकि अगर आपके पास कैश नहीं है तो चाहे जितना भी कीमती एसेट हो, वो एकदम कबाड़ जैसा बन जाता है. इसलिए जब 2014 में पीएम नरेंद्र मोदी की सरकार आई थी तब मैंने कहा था कि एक TARP जैसा प्रोग्राम लाइए.
मैं अपनी अर्थव्यवस्था को संकट से निकालने के लिए TARP जैसी किसी योजना की वकालत लंबे अरसे से करता आ रहा हूं. इससे एक तो कंपनियों और बैंकों - दोनों की बिगड़ी हुई बैलेंस शीट सुधरेगी और IL&FS के कारण शुरू हुआ संकट भी रुकेगा.
ऐसे पर्याप्त आंकड़े और पिछले अनुभव मेरे पास हैं, जिनसे साबित हो सकता है कि TARP से अर्थव्यवस्था का भला होगा. इससे आम नागरिकों को फायदा होगा और ताकतवर लोगों से नजदीकी का गलत ढंग से फायदा उठाने वाले क्रोनी कैपिटलिस्ट को करारा झटका लगेगा. (असलियत इस आम धारणा से बिलकुल अलग है कि ऐसा करना "नैतिक रूप से गलत" होगा). मैं बताता हूं कि ऐसा कैसे होगा.
हम इसकी शुरुआत इतिहास से करते हैं. अमेरिका में लेमैन ब्रदर्स ने खुद दिवालिया घोषित किए जाने की अर्जी 15 सितंबर 2008 को दाखिल की. बाजार धराशायी हो गया, पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था के सामने तबाही का खतरा पैदा हो गया.
245 अरब डॉलर की रकम बैंकों को दी गई, 70 अरब डॉलर एआईजी जैसी विशाल इंश्योरेंस कंपनी को दिए गए और 80 अरब डॉलर का इस्तेमाल जीएम और क्रिसलर जैसी ऑटो कंपनियों को गहरे संकट से बाहर निकालने के लिए किया गया. बाकी रकम मुसीबत में घिरी कई कंपनियों को दी गई. हैरानी की बात ये है कि इन तमाम उपायों पर कुल 410 अरब डॉलर ही खर्च हुए. 290 अरब डॉलर की रकम को इस्तेमाल करने की नौबत ही नहीं आई.
TARP के तहत ये सारी रकम न तो अनुदान थी और न ही सब्सिडी. ये सारा फंड निवेश के तौर पर दिया गया, जिसे कंपनियों को वाजिब रिटर्न के साथ वापस लौटाना था. फिर भी, अमेरिकी संसद के बजट ऑफिस ने शुरुआत में अनुमान लगाया था कि 700 अरब डॉलर की कुल रकम में से करीब 356 अरब डॉलर वापस नहीं आएंगे, जिसे बट्टे खाते में डालना पड़ेगा. लेकिन अमेरिकी सांसद अपने देश की अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए इतनी रकम खर्च करने को खुशी से तैयार थे. उन्हें पता था कि फौरन नकदी देने का सरकार का वादा, पूरे सिस्टम को तबाह होने से बचा लेगा (काश, मोदी की टीम के पास भी बाजार के मनोविज्ञान की इतनी ही गहरी समझ होती !)
इस बात का सटीक आकलन कर पाना संभव नहीं है कि अगर TARP को लागू नहीं किया गया होता, तो अमेरिकी अर्थव्यवस्था को कितना नुकसान हुआ होता. इस बारे में हम सिर्फ अंदाजा ही लगा सकते हैं. एलन बिंदेर और मार्क जैंडी के अध्ययन के मुताबिक ऐसा होने पर अमेरिका में बेरोजगारी की दर 16 फीसदी तक पहुंच सकती थी (1930 के ग्रेट डिप्रेशन के दौरान बेरोजगारी की ये दर 25 फीसदी के सबसे ऊंचे स्तर तक जा पहुंची थी).
आज, महज एक दशक बाद, अमेरिकी अर्थव्यवस्था बेहद अच्छी हालत में है. बाजार रिकॉर्ड ऊंचाई पर हैं, सालाना विकास दर 4 फीसदी तक पहुंच रही है और बेरोजगारी की दर घटकर 5 फीसदी से कम रह गई है. मेरे हिसाब से TARP की असली सफलता यही है.
TARP जैसे किसी भी राहत पैकेज के खिलाफ सबसे पुरानी दलील ये है कि ऐसा करने से नैतिक रूप से गलत मिसाल पेश होती है, क्योंकि इससे उन गलती करने वालों को मदद मिलती है, जिन्हें सजा मिलनी चाहिए, जबकि ईमानदार करदाताओं के पैसों की “लूट” होती है. लेकिन असलियत इससे ठीक उलट है, जिसे मैं बेहद आसान अंक गणित से साबित करूंगा.
मैं कुछ मान्यताओं (assumptions) से शुरुआत करूंगा, जो हकीकत के बेहद करीब हैं.
अब जरा उन मौजूदा हालात पर एक नजर डालिए, जो मोदी सरकार की तरफ से TARP जैसे किसी पैकेज के अभाव में बने हैं:
लेकिन अगर सरकार TARP जैसी योजना ले आती, तो ये सारा गणित नाटकीय रूप से बदल जाता, जिसमें IL&FS के निवेशकों के मुकाबले दूसरे आम निवेशक ज्यादा फायदे में रहते.
और अंत में, अगर हम बेहद उदारता दिखाते हुए ये मान लें कि मार्केट कैप में NBFC को हुए कुल नुकसान का महज आधा हिस्सा ही IL&FS के डिफॉल्ट की वजह से हुआ है, जो TARP लाने पर नहीं होता, तो भी आम निवेशकों को सीधे-सीधे 2 लाख करोड़ का फायदा है! TARP जैसी योजना में सरकार द्वारा लगाया गया कुल कैश (एसेट्स की बिक्री से मिलने वाली रकम पर पहला हक भी सरकार का होगा) = 30 हजार करोड़ रुपये
मैंने ऊपर जो अंक गणित समझाया है, वो बेहद आसान है. लेकिन आईएएस के बाबुओं की टीम इसे कभी नहीं समझेगी, क्योंकि वो बाजार की ताकतों को हमेशा ही गहरे संदेह के साथ देखते हैं. और प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी आर्थिक नीतियों को उन्हीं के हवाले कर दिया है, जबकि उद्यमियों, दर्जियों और आग बुझाने वालों की उसमें कोई जगह नहीं है. आपने ये क्या कर दिया प्रधानमंत्री मोदीजी?
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