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इस वक्त भारत का हर शख्स इस सवाल का जवाब चाहता है कि आखिर हमारी इकनॉमी पटरी पर कब लौटेगी. IMF की चीफ इकनॉमिस्ट डॉ गीता गोपीनाथ (Gita Gpoinath) का अनुमान है - 2022 से पहले नहीं. डॉ. गीता की सलाह है कि अगर भारत को तेज रिकवरी करनी है तो सरकार को आम आदमी और उद्योगों को सीधी मदद देनी होगी. डॉ. गीता गोपीनाथ ने ये बातें क्विंट के एडिटोरियल डायरेक्टर संजय पुगलिया से एक खास बातचीत में कहीं हैं.
क्या हम गंभीर संकट में हैं और आपको क्यों लगता है कि रिकवरी में वक्त लगेगा?
अभी कोरोना वायरस संकट खत्म नहीं हुआ है और महामारी अभी चल ही रही है. जब तक ये रहेगा तब तक लोगों को सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना होगा. इसलिए जिन सेक्टर में कॉन्टैक्ट करना जरूरी होता है, उनमें रिकवरी होने में अभी वक्त लगेगा. रेस्टोरेंट, हॉस्पिटेलिटी, टूरिज्म जैसे सेक्टर की रिकवरी धीमी होगी. जब वैक्सीन आ जाएगी या रहन सहन ठीक हो जाएगा, तब हालात सामान्य होंगे. लेकिन उसमें अभी वक्त लगेगा. इसके असर भी अलग-अलग स्तर पर होंगे. विकसित देशों की तुलना में विकासशील (चीन को छोड़कर) देशों पर ज्यादा बुरा असर हुआ है. 2019 की ग्रोथ तक वापस पहुंचने में कुछ देशों को 2022 तक का वक्त लगेगा वहीं कुछ देशों को 2023 तक का वक्त भी लग सकता है.
क्या आपको लगता है कि भारत की वी-शेप रिकवरी वास्तविक है या ये अस्थायी डिमांड की वजह से है?
मैं दुनिया के दूसरे देशों की तरह ही भारत की रिकवरी को वी-शेप रिकवरी नहीं कहूंगी. हमने साल की पहली छमाही में बहुत बुरी गिरावट देखी है, लेकिन अब जब देशों को खोला जा रहा है तो थोड़ी रिकवरी देखने को मिल रही है. लेकिन हम अभी फिर से 2019 वाले स्तर पर नहीं पहुंच रहे हैं. वहां तक भी पहुंचने में लंबा वक्त लगने वाला है. हालांकि इसमें चीन एक अपवाद है.
भारत की सरकार रिकवरी को लेकर तमाम आंकड़े पेश कर रही है लेकिन दूसरी तरफ IMF का कहना है कि भारत की प्रति व्यक्ति जीडीपी बांग्लादेश से भी नीचे जा चुकी है, आप इन दोनों बातों को कैसे देखती हैं?
ये बात सही है कि रिकवरी देखने को मिली है. पहली तिमाही के मुकाबले तो रिकवरी है ही. लेकिन अहम बात ये है कि 2019 के स्तरों पर वापसी कब होती है. तो इस बारे में हमारा मानना ये है कि 2021 के बाद जाकर ही हम 2019 के स्तरों पर वापस लौट पाएंगे.
अब सरकार को क्या करना चाहिए, ताकि हम रिकवरी के रास्ते पर तेजी से आगे बढ़ें?
सरकार ने रिकवरी के लिए फिस्कल मोर्चे पर कदम उठाए हैं. लेकिन सरकार ने जो भी कदम उठाए हैं वो कर्ज देने, लिक्विडिटी बढ़ाने से जुड़े हैं. लेकिन ज्यादा लोगों को सीधी रकम दी जानी चाहिए थी. हम दुनिया में देख रहे हैं कि देश निम्न आय वाले लोगों के सीधे हाथ में पैसा दे रहे हैं, जिससे इकनॉमी में तुरंत रिकवरी देखने को मिले. मॉनेटरी पॉलिसी के मोर्चे पर कई सारे कदम उठाए गए हैं. इस मोर्चे पर और किया जा सकता है. तीसरा सार्वजनिक निवेश के मोर्चे पर, सरकार ने उस मोर्चे पर भी पैकेज का ऐलान किया है. इससे रिकवरी में भी मदद मिलेगी और रोजगार भी पैदा होंगे.
IMF की रिपोर्ट कहती है कि गरीब, बेरोजगार और संकट में पड़े कारोबार तेजी से सहयोग चाहते हैं, ऐसे में बड़े फिस्कल स्टिम्युलस की जरूरत है. क्या भारत को फिर से अपनी रणनीति पर विचार करना चाहिए?
हमारा भी मानना है कि भारत को थोड़े और कदम उठाने चाहिए. सरकार को निम्न आय वाले लोगों और SME को डायरेक्ट सपोर्ट देने के बारे में सोचना चाहिए. लेकिन भारत की अपनी वित्तीय चुनौतियां हैं, तो सरकार के भी हाथ बंधे हुए हैं कि वो तय सीमा में ही खर्च कर सकते हैं. लेकिन जैसा मैंने कहा कि अभी और किए जाना जरूरी है.
क्या दुनिया भर के नेता आपस में तालमेल दिखा रहे हैं?
देशों ने लोगों की वित्तीय मदद की है, इसलिए बड़ा संकट टला है. IMF ने 81 देशों को मदद दी है. मेडिकल क्षेत्र में ज्यादा तालमेल की जरूरत है. वैक्सीन को हर जगह पहुंचाने के लिए बेहतर तालमेल की भी जरूरत है. गरीब देशों को अलग से मदद की जरूरत है.
क्या अमीर देशों को और खर्च करना चाहिए?
अमीर देशों को राहत पैकेज जारी रखना चाहिए. इससे उन देशों को मदद मिलेगी और दुनिया को भी फायदा होगा.
अमेरिका-चीन का ट्रेड वार और विश्व व्यापार, क्या हैं रुझान?
चीन-अमेरिका के बीच ट्रेड वार और कोरोना के कारण दुनिया की इकनॉमी पहले से बुरे हाल में है. इस साल विश्व व्यापार में 10% गिरावट आने की आशंका है. जिस तरह से कई देश अपनी सीमाओं पर सख्ती बरत रहे हैं वो चिंता की बात है. संकट के समय राष्ट्रवाद हावी हो जाता है, दुनिया की अर्थव्यवस्था को तेजी पकड़नी है तो मुक्त बाजार और सुधार जरूरी है.
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