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महाराष्ट्र की सियासी बिसात पर BJP, शिवसेना और NCP की चाल समझिए

महाराष्ट्र में कौन पलटेगा सियासी गेम?  

रौनक कुकड़े
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महाराष्ट्र की राजनीति में जो हो रहा है वो क्यों हो रहा है?
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महाराष्ट्र की राजनीति में जो हो रहा है वो क्यों हो रहा है?
(फोटो: क्विंट हिंदी)

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वीडियो एडिटर: वरुण शर्मा

हरियाणा में विरोधी दोस्त हो गए लेकिन महाराष्ट्र में दोस्त ही विरोधी जैसा बर्ताव कर रहे हैं. महाराष्ट्र की राजनीति में जो हो रहा है वो क्यों हो रहा है? दरअसल जितना दिखता है, मामला सिर्फ उतना है नहीं है.

पहले शिवसेना की बात करते हैं. शिवसेना ढाई साल सीएम पद की मांग पर अड़ी है.

एक सीधी बात जो समझ आती है वो ये है कि उद्धव अपने बेटे आदित्य का सियासी करियर सेट करना चाहते हैं. पहले ही चुनाव के बाद अगर आदित्य को सीएम या डिप्टी सीएम की कुर्सी मिल जाए तो राजनीति की पारी में उनकी अच्छी ओपनिंग हो जाएगी.

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सियासी पंडित ये भी कहते हैं कि बीजेपी ऐसा होने नहीं देगी ये शिवसेना भी जानती है, बस ये दबाव की राजनीति है. लेकिन शिवसेना किस चीज के लिए दबाव बना रही है?

महाराष्ट्र की राजनीति को फॉलो करने वाले लोग जानते हैं कि बीएमसी का फुल कंट्रोल शिवसेना का मकसद है. ये वही बीएमसी है जिसका सालाना बजट कई राज्यों के बजट से ज्यादा है. बीजेपी ने फिलहाल बीएमसी में शिवसेना को फ्री हैंड दे रखा है.

लेकिन बीजेपी ने बाकी राज्यों में अपने सहयोगियों का क्या हाल किया है, ये देखते हुए शिवसेना का एक्स्ट्रा अलर्ट रहना कोई ताज्जुब  की बात नहीं है!

दूसरी तरफ शिवसेना शायद सरकार में भी रसूखदार विभाग चाहती है.

सूत्र बताते हैं कि बीजेपी शिवसेना को कई बड़े मंत्रालय देने को तैयार है, लेकिन शिवसेना की नजर गृह, वित्त और रेवेन्यू विभागों पर है.

लेकिन अगर शिवसेना और बीजेपी में बात नहीं तो क्या होगा?

अपडेट ये है कि शिवसेना नेता संजय राउत ने एनसीपी चीफ शरद पवार से मुलाकात की है. कांग्रेस नेता बालासाहब थोरात,अशोक चव्हाण और पृथ्वीराज चव्हाण भी शरद पवार के घर पहुंचे थे. सूत्र बताते हैं कि महाराष्ट्र कांग्रेस के नेता बीजेपी को सत्ता से दूर रखने के लिए शिवसेना को बाहर से समर्थन देने को तैयार हैं लेकिन आखिरी फैसला कांग्रेस हाईकमान ही लेगी.

नंबर गेम के हिसाब से देखें तो कांग्रेस की मदद से शिवसेना-एनसीपी की सरकार बनना मुमकिन है.

मान लीजिए कि कांग्रेस शिवसेना-एनसीपी को बाहर से सपोर्ट कर देती है. शिवसेना की संख्या निर्दलीयों के साथ मिलकर 63 पहुंच गई है जबकि एनसीपी के 54 और कांग्रेस के 44 मिला दें तो संख्या 161 पर पहुंचती है तो बहुमत के आंकड़े 145 से ज्यादा है.

लेकिन क्या ऐसा संभव है कि शिवसेना-एनसीपी कांग्रेस की मदद से महाराष्ट्र में सरकार बना लेगी?

वर्चस्व की लड़ाई के हिसाब से देखें तो शिवसेना-एनसीपी और कांग्रेस तीनों के लिए महाराष्ट्र में नंबर 1 खतरा बीजेपी से है. तो तीनों का साथ आ जाना एक रणनीति हो सकती है. लेकिन ऐसा हुआ तो क्या सियासी संदेश जाएगा?

31 अक्टूबर को शिवसेना के मुखपत्र सामना में शिवसेना ने खुद माना कि बीजेपी ही उनकी स्वाभाविक सहयोगी है. दोनों की विचारधारा मिलती है. अगर शिवसेना एनसीपी-कांग्रेस के साथ गई तो ये विचारधारा के खिलाफ जाने की बात होगी.

ये तो बात हुई शिवसेना की. लेकिन एनसीपी शिवसेना के साथ जाती है तो उसके लिए क्या नतीजे निकल सकते हैं?

शरद पवार कह चुके हैं कि उन्हें विपक्ष मेें बैठने का जनादेश मिल चुका है. देखने वाली बात ये है कि एक तरफ तो उनकी राजनीति बीजेपी और शिवसेना के विरोध की राजनीति है, दूसरी बात ये भी है कि उनके कई नेताओं के खिलाफ ED की जांच चल रही है.

ऐसे में क्या वो बीजेपी से इस तरह का  सीधा मुकाबला चाहेंगे? सवाल ये है कि फिर वो शिवसेना से मुलाकात क्यों कर रहे हैं? क्या रणनीति ये है कि बाहर शिवसेना से करीबियां बढ़ाकर, अंदर बीजेपी से कोई कोई डील हो जाए?

डील का एक रूप ये हो सकता है कि फ्लोर टेस्ट के समय एनसीपी वॉकआउट कर जाए और फडणवीस अल्पमत की सरकार बना लें. ये चौंकाने वाली बात भी नहीं होगी. 2014 में भी बीजेपी के पास बहुमत नहीं था. और एनसीपी ने बाहर से समर्थन देकर बीजेपी की सरकार बनवा दी थी. चलिए मान भी लिया कि शिवसेना-एनसीपी एकमत हो गए. अब सवाल है कि क्या बीजेपी शिवसेना-एनसीपी का गठबंधन होने देगी?

बीजेपी ने विधायक दल की बैठक में देवेंद्र फडणवीस को नेता चुनकर इरादा साफ कर दिया है. वो झुकने को तैयार नहीं. मामला सिर्फ महाराष्ट्र का नहीं है. यहां बीजेपी के साथ ये दुर्घटना हुई तो इसका राष्ट्रीय स्तर पर सियासी संदेश जाएगा.

ऐसा कुछ होने से रोकने के लिए बीजेपी क्या कर सकती है?

कई तरीकों से महाराष्ट्र की नकेल केंद्र के हाथ में है. विपक्ष एजेंसियों के बेजा इस्तेमाल का आरोप लगा ही चुका है. महाराष्ट्र में बारिश की वजह से किसानों की फसल पहले ही बर्बाद हो चुकी है. ऐसे केंद्र की मदद के बिना किसानों को राहत पहुंचाना महाराष्ट्र के लिए आसान नहीं होगा.

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