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आज देश कारगिल के शहीदों को याद कर रहा है. देश की सुरक्षा का सवाल इस वक्त और भी बड़ा हो गया है क्योंकि चीन हमारी मिट्टी पर नजर गड़ाए हुए है. भारत और चीन के बीच पिछले कई हफ्तों से तनातनी चल रही है. गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प के बाद हालात कुछ ऐसे हो गए थे कि लोग युद्ध की बातें करने लगे.
एक ऐसा ही युद्ध चीन के साथ 1962 में हुआ था. जब चीन ने अपनी चाल से अचानक भारत पर हमला बोल दिया. इसी युद्ध के दौरान जंग के मैदान में मौजूद रिटायर्ड मेजर ओंकार नाथ दुबे ने चीन से लड़ाई की पूरी कहानी बताई. उन्होंने बताया कि कैसे उन्होंने सीने में 16 गोलियां खाईं थीं.
रिटायर्ड मेजर ओंकार नाथ दुबे 70 जवानों की बटालियन में से उन तीन जवानों में शामिल थे, जो जिंदा वापस लौटे. जिसके बाद उन्हें सेना मेडल से सम्मानित किया गया. उन्होंने युद्ध की इस दिल दहला देने वाली कहानी को लेकर बताया,
उन्होंने आगे बताया, इसके बाद नायक सूबेदार दशरथ सिंह और नायक रोशन ने मुझे उठाया. चार दिन बाद इंटरनेशनल रेड क्रॉस आई. 24 या 25 अक्टूबर 1962 को. इसके बाद उन्होंने मेरी लाइफ सेविंग सर्जरी की. उन्होंने मेरे अंदर की गोलियां निकालीं. लेकिन एक गोली फिर भी मेरी हड्डी में रह गई.
गोली लगने के बाद रिटायर्ड मेजर ओंकार नाथ दुबे ने जो कहानी बताई है उस वक्त वो चीन के इलाके में थे. जहां उनका ये ऑपरेशन हुआ. लेकिन तीन महीने बाद जब उन्हें छोड़ा गया तो भारत आकर आखिरी गोली उनके शरीर से निकाली गई. उन्होंने बताया कि चीन में उनका एक्सरे नहीं किया गया था, भारत आने के बाद किया गया तो इस गोली के बारे में पता चला, जो हड्डी में घुस गई थी.
अब करीब 6 दशक बाद रिटायर्ड मेजर दुबे इस जंग को याद करते हुए बताते हैं, हम करीब 4 हजार जवान थे, लेकिन हमारे सामने चीन के करीब 11 हजार से भी ज्यादा जवान मौजूद थे. जवानों का ज्यादा संख्याबल चीन की जीत की वजह रहा. इसके अलावा दुबे बताते हैं कि कैसे उन्होंने पुराने आउटडेटेड हथियारों से चीन की हाईटैक हथियारों वाली फौज का सामना किया. उन्होंने कहा,
उन्होंने बताया कि इस दौरान हर भारतीय जवान अपनी जान लगाकर लड़ा. इस जांबाजी के साथ लड़ा कि जब तक आखिरी गोली खत्म नहीं हुई, फायरिंग करते रहे. ये जज्बा चीन के सैनिकों के पास नहीं था.
रिटायर्ड मेजर ओंकार नाथ दुबे ने बताया कि कैसे वो चीन में तीन महीने तक युद्ध बंदी रहे थे. उन्होंने बताया, “हम लोगों को एक चटाई मिलती थी और उस पर कपड़ा लगा होता था एक, ऊपर से एक गंदी सी रजाई मिलती थी, जिससे बदबू आती थी. जो पट्टी लगाई जाती थी, उस पट्टी को दोबारा धोकर यूज किया जाता था. पीने के लिए गर्म पानी मिलता था. खाने के लिए एक छोटी कटोरी चावल और गोभी की सब्जी मिलती थी. वहीं हफ्ते में दो दिन मीट मिलता था. जिसमें दो टुकड़े होते थे. हम लोग एक चुटकी नमक और एक चुटकी चीनी मिलाकर खाना खाते थे.”
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