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वीडियो एडिटर: मोहम्मद इब्राहिम
लद्दाख में देपसांग, गलवान वैली, पेगॉन्ग लेक और यहां तक कि अरुणाचल प्रदेश में भी बार-बार घुसपैठ हुई, परमानेंट पोस्ट बनाए गए, जमीन कब्जा करने की रिपोर्ट आई. तो क्या LAC पर हमारी इंटेलिजेंस कमजोर हो गई है? क्या बॉर्डर पर तैनात हमारे जवानों तक खुफिया जानकारी नहीं पहुंचती? क्या गलवान वैली में भारत और चीन की सेना के बीच टकराव, जिसमें 20 जवानों की जान चली गई, इंटेलिजेंस की नाकामी का नतीजा था?
हमने फैसला किया कि रिटायर्ड डिफेंस और इंटेलिजेंस ऑफिसर्स से इस बारे में बात की जाए और पता किया जाए कि आखिर इंडियन इंटेलिजेंस सिस्टम में – एजेंसी, सुरक्षा बलों और सरकारी विभागों में - खुफिया जानकारी जुटाई कैसे जाती है – खास तौर पर चीन से लगे भारतीय सीमा के नजरिए से. और इस बातचीत में हमें ये जानकारी हासिल हुई:
लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर चीनी सेना यानी PLA का सामना आईटीबीपी यानी इंडो-तिबत्तन बॉर्डर पुलिस और भारतीय सेना करती है. कई इलाकों में ITBP के जवान फॉरवर्ड पोस्ट पर होते हैं जबकि आर्मी कुछ किलोमीटर पीछे कैंप और पोस्ट पर तैनात होती है.
इसके अलावा LAC पर तैनात इंटेलिजेंस ब्यूरो के अधिकारी भी खुफिया जानकारी जुटाते हैं.
ये जानकारियां एरियल सर्विलेंस के जरिए भी NTRO यानी नेशनल टेक्नीकल रिसर्च ऑर्गनाईजेशन और इसरो यानी इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाईजेशन की मदद से हासिल की जाती है. जहां NTRO आम तौर पर ड्रोन के जरिए तस्वीरें लेता है वहीं इसरो इसके लिए सैटेलाइट की मदद लेता है. ISRO के पास ऐसे खास सैटेलाइट्स मौजूद हैं जो सिर्फ डिफेंस से जुड़ी जानकारियां जुटाते हैं.
एक तरफ NTRO के पास ड्रोन की तस्वीरों को एनालिसिस करने के लिए अपने एक्सपर्ट्स मौजूद हैं, तो दूसरी तरफ इसरो तस्वीरें खींच कर मिलिट्री इंटेलिजेंस को सौंप देता है.
सैटेलाइट्स एक-एक सेकंड, एक-एक मिनट में कई तस्वीरें रिकॉर्ड कर सकते हैं. इसलिए DIPAC और मिलिट्री इंटेलिजेंस को सैटेलाइट तस्वीरें मंगाने के लिए इसरो को पक्के लोकेशन और टाइम पीरियड की जानकारी देनी पड़ती है. उदाहरण के लिए – LAC पर गलवान वैली के आसपास PLA की हरकतों की तस्वीरें.
तो आपने देखा हमारे पास ऐसे कई सारे सोर्सेज हैं जिससे ढेर सारी खुफिया जानकारियां जुटाई जाती हैं. अगला कदम होता है इन जानकारियों की स्टडी करना. ये देखना कि सैटेलाइट से जो इनफार्मेशन मिल रही हैं वो ह्युमन इंटेलिजेंस यानी उस इलाके में मौजूद इंटेलिजेंस ऑफिशीयल की जुटाई जानकारी से मिलान करती हैं या नहीं और फिर ये फैसला लेना कि कौन सी खुफिया जानकारी राष्ट्रीय सुरक्षा के नजरिए से ज्यादा अहमियत रखती है, जिस पर ज्यादा नजर रखने की जरूरत है.
अलग-अलग खुफिया एजेंसियां और सुरक्षा बल अलग-अलग मंत्रालयों को रिपोर्ट करती हैं. जैसे कि – ITBP और इंटेलिजेंस ब्यूरो होम मिनिस्ट्री के दायरे में आता है, जबकि DIPAC और आर्मी इंटेलिजेंस डिफेंस मिनिस्ट्री के लिए काम करती हैं. इसलिए अलग-अलग मिनिस्ट्री और एजेंसी के बीच बेहतर तालमेल के लिए सारी खुफिया जानकारियां इकट्ठा करने का काम JIC यानी ज्वाइंट इंटेलिजेंस मीटिंग करती है. JIC इसके लिए हर हफ्ते एक मीटिंग करता है जिसमें सभी एजेंसियों – जैसे कि IB, RAW, आर्मी, नेवी और एयर इंजेलिजेंस के डायरेक्टरेट्स, DIPAC, CBI, ED, DRI, NIA, ITBP, BSF, CRPF, SSB – के चीफ या सीनियर अधिकारी हिस्सा लेते हैं.
JIC की मीटिंग में हर किसी को अपनी खुफिया जानकारी शेयर करने का वक्त दिया जाता है. JIC के चेयरमैन पूर्व ब्यूरोक्रैट होते हैं जिन्हें खुफिया विभाग का लंबा अनुभव होता है. मीटिंग में उनकी टीम सारी जानकारियों को इकट्ठा करती है और NSA यानी नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर के साथ इसे शेयर करती है. इसके बाद NSA प्रधानमंत्री को इस बारे में ब्रीफ करते हैं.
अब जब हम ये जान चुके हैं कि खुफिया जानकारियां कैसे जुटाई और शेयर की जाती हैं. इस मामले में अब हम सही सवाल सामने रख सकते हैं -
द क्विंट ने जिन डिफेंस और इंटलिजेंस एक्सपर्टस से बात की, उनके मुताबिक जब टेकनॉलोजी इंसान के द्वारा जुटाई गई खुफिया जानकारियों की पुष्टि कर देता है तो उस जानकारी को पक्का मान लिया जाता है. इसलिए जब JIC की मीटिंग्स में इंटेलिजेंस इनपुट के साथ बार-बार PLA की घुसपैठ से जुड़ी सैटेलाइट तस्वीरें रखी जा रही थीं, क्या हमने इस खतरे को भांपने में गलती कर दी?
या फिर राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी की वजह से कोई कार्रवाई नहीं की गई?
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