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चीन का एक कानून, जो कंपनियों को कर सकता है जासूसी के लिए मजबूर

कानून मानने पर इनाम, उल्लंघन पर सजा

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कानून मानने पर इनाम, उल्लंघन पर सजा
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कानून मानने पर इनाम, उल्लंघन पर सजा
(फोटो: iStock)

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भारत सरकार ने सुरक्षा का हवाला देते हुए चीन के कुल 59 ऐप पर बैन लगा दिया है. इसमें पॉपुलर शॉर्ट वीडियो ऐप टिकटॉक से लेकर यूसी ब्राउजर और हेलो तक शामिल हैं. भारत में इन ऐप पर प्रतिबंध लगने के बाद चीन ने इस फैसले का विरोध करते हुए इसे भेदभावपूर्ण बताया. इन चीनी कंपनियों ने अपने बयान में कहा कि यूजर की प्राइवेसी उनके लिए प्राथमिकता है और वो किसी भी विदेशी सरकार के साथ भारतीय यूजर्स का डेटा नहीं शेयर करते हैं, लेकिन सच्चाई ये है कि चीन में 2017 में एक ऐसा कानून पास हुआ था, जो कंपनियों को डेटा चीनी इंटेलीजेंस सर्विस से शेयर करने के लिए मजबूर करता है.

अमेरिका ने हाल ही में चीन की दो कंपनियों- Huawei और ZTE को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताते हुए बैन कर दिया है और इनकी फंडिंग पर रोक लगा दी है. अमेरिका के फेडरल कम्युनिकेशन कमिशन (FCC) ने भी अपने बयान में चीन के इस कानून का हवाला दिया. FCC के चेयरमैन अजित पाई ने कहा, “दोनों कंपनियों के चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी और चीनी सेना से करीबी संबंध हैं, और दोनों व्यापक रूप से चीन के कानून के अधीन हैं जो, उन्हें देश की इंटेलीजेंस सर्विसेज के साथ सहयोग करने के लिए बाध्य करते हैं.”

चीन के इस कानून के तहत, चीनी कंपनियां, भले वो दूसरे देश से ऑपरेट कर रही हों, वो चीन की इंटेलीजेंस एजेंसियों से डेटा शेयर करने को लेकर बाध्य हैं. ये कानून क्या है और कैसे काम करता है, जानिए.

27 जून 2017 को वजूद में आए चीन के इस कानून को नेशनल इंटेलिजेंस लॉ यानी राष्ट्रीय खुफिया कानून कहा जाता है. चीन के साथ कोराबारी संबंध रखने वाले देशों के लिए ये कानून खतरे की घंटी है. चीन के राष्ट्रीय खुफिया कानून के चार ऐसे प्रावधान हैं जो भारत या दूसरे देशों में काम कर रही चीनी कंपनियों पर बड़े सवाल उठाते हैं:

  • कानून के आर्टिकल 14 में लिखा है कि नेशनल इंटेलीजेंस मिशन से जुड़े संस्थान अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए कानूनी तौर पर किसी भी संगठन और व्यक्ति से जरूरी समर्थन, मदद और सहयोग ले सकते है.
  • कानून के आर्टिकल 12 में लिखा है कि सरकार के प्रावधानों के मुताबिक, नेशनल इंटेलीजेंस मिशन से जुड़े संस्थान जरूरी व्यक्तियों और संगठनों से सहयोग ले सकते हैं और इंटेलीजेंस के कामों के लिए उनसे संबंध बनाए रख सकते हैं.
  • इस कानून के आर्टिकल 7 में लिखा है कि चीन सभी संगठनों और नागरिकों को नेशनल इंटेलीजेंस मिशन का समर्थन, सहायता और सहयोग करना होगा, और खुफिया मिशन से जुड़े सीक्रेट का बचाव करना होगा.
  • कानून के आर्टिकल 9 में लिखा है कि चीन के नेशनल इंटेलीजेंस मिशन में अहम भूमिका निभाने वाले व्यक्तियों और संगठनों को सरकार की तरफ से तारीफ और इनाम दिया जाएगा.
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कानून मानने पर इनाम, उल्लंघन पर सजा

ये कानून चीनी इंटेलीजेंस एजेंसियों को परिसर की तलाशी, संपत्ति जब्त करने और जासूसी करने के लिए व्यक्तियों या संगठनों को जुटाने की अनुमति देता है. इस कानून का उल्लंघन करने वालों को 15 दिनों की हिरासत और उन पर अपराध का आरोप लगाया जा सकता है.

इससे मतलब साफ है. चीन ने अपने देश की कंपनियों को कानून के शिकंजे में ऐसा फंसाया है कि वो चाहकर भी सरकार के लिए विदेशों में जासूसी करने से मना नहीं कर सकतीं. चीन इस कानून के दम पर मनमाने तरीके से अपनी कंपनियों का विदेशों में इस्तेमाल कर सकता है.

चीनी कंपनियों पर लगते रहे हैं जासूसी के आरोप

ये कोई पहली बार नहीं है जब चीन की सरकार और कंपनियों पर जासूसी के आरोप लगे हों. पिछले हफ्ते ही खबर आई थी कि टिकटॉक ने भारतीय आईफोन यूजर्स की जासूसी की. आईफोन यूजर्स जब iOS14 का बीटा वर्सन टेस्ट कर रहे थे, तब टिकटॉक ने फोन में जासूसी की, वो भी बेहद बारीक तरीके से. यूजर फोन पर जो भी लिख रहे थे, साधारण टेक्स्ट हो या पासवर्ड, उसे टिकटॉक कैप्चर करके अपने सर्वर पर डाल रहा था.

जब ये बात सामने आई तब टिकटॉक की मालिक कंपनी बाइटडान्स ने इसे बग बताकर इसका सारा दोष गूगल के पुराने सॉफ्टवेयर पर मढ़ दिया. पिछले दिनों इस तरह की कई रिसर्च रिपोर्ट आईं हैं, जो बताती है कि टिकटॉक भारत के ज्यादातर आईफोन की जासूसी कर चुका है.

वहीं, हाल ही में सरकार ने चीन से होने वाले साइबर हमले को लेकर भी एडवाइजरी जारी की थी. 5 दिनों में चीन स्थित के कई संगठनों द्वारा कथित तौर पर 40 हजार से ज्यादा हैकिंग की कोशिशें की गई थी.

जून में ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने भी घोषणा कर बताया कि सरकार-समर्थित साइबर हमलों द्वारा सरकार और संस्थानों को टारगेट किया जा रहा है. मॉरिसन ने चीन का नाम नहीं लिया था, लेकिन इस हमलों को चीन से जोड़ा जा रहा है. साइबर हमलों को देखते हुए ऑस्ट्रेलिया ने करीब 500 साइबरस्पाइजी रिक्रूट किए हैं.

साइबर हमले चीन की रणनीति का हिस्सा?

सुरक्षा मामलों के बड़े जानकार और सेंटर फॉर चाइना एनालिसिस एंड स्ट्रैटजी के प्रेसिडेंट जयदेव रानाडे का कहना है कि युद्ध की स्थिति में साइबर अटैक चीन की रणनीति का हिस्सा है. क्विंट से खास बातचीत में रानाडे का आकलन है कि चीन किसी देश पर हमला करने से पहले एक तगड़ा साइबर अटैक करने की रणनीति पर काम करता है.

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Published: 01 Jul 2020,03:13 PM IST

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