Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Videos Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019ओलंपिक खिलाड़ियों से इतना प्यार! आभार, भूल सुधार या सिर्फ प्रचार?

ओलंपिक खिलाड़ियों से इतना प्यार! आभार, भूल सुधार या सिर्फ प्रचार?

नेताओं के बड़े-बड़े ऐलान मेडल लाने के लिए खिलाड़ियों के प्रति आभार है, भूल सुधार है या सिर्फ प्रचार है?

शादाब मोइज़ी
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(फोटो- क्विंट हिंदी)

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ओलंपिक (Olympics) में खिलाड़ियों ने मेडल जीते तो सरकारों और नेताओं का खेल प्रेम फूट पड़ा. कोई करोड़ो दे रहा है कोई टेलीफोनिक बातचीत का वीडियो जारी कर रहा है. ऐसा लगता है कि हमारी सरकारें और नेता खेलों को लेकर बड़े सीरियस हैं. लेकिन जिन खिलाड़ियों पर अब करोड़ों की बारिश हो रही है उनकी कहानी सुनेंगे तो आप भी पूछेंगे... जनाब ऐसे कैसे?

  • ओलंपिक में भारत के जिस गोल्डन बॉय नीरज चोपड़ा को हरियाणा सरकार ने 6 करोड़ देने का ऐलान किया है उसी हरियाणा में नीरज के पिता उन्हें एक से डेढ़ लाख रुपए का भाला नहीं दिला पाए थे. नीरज को पिता और चाचा ने मिलकर 7 हजार रुपए का सस्ता भाला दिलाया. एक समय ऐसा भी था जब नीरज के पास महीनों तक कोच नहीं था. वो यूट्यूब देखकर ट्रेनिंग करते थे.

  • मेडल विनर पहलवान रवि कुमार दहिया को हरियाणा सरकार ने 4 करोड़ रुपये इनाम देने का ऐलान किया है. रवि के पिता राकेश हर दिन अपने गांव से छत्रसाल स्टेडियम तक की लगभग 40 किलोमीटर की दूरी तय कर रवि तक दूध और फल पहुंचाते थे. क्यों वहां सही दूध और पर्याप्त फल नहीं मिलते थे?

  • जिस मीराबाई चानू के लिए 2 करोड़ रुपये के इनाम की घोषणा हुई, वही मीराबाई चानू पहाड़ों पर लकड़ी ढोती थीं.

  • एक और मेडलिस्ट लवलीना... जिनके नाम के साथ... असम के सीएम पोस्टर लगवाने में गर्व महसूस कर रहे हैं, उनके गांव के लोगों ने क्विंट को बताया कि वहां एक ढंग का जिम तक नहीं...एक बात बताना जरूरी है कि हिमंता ने जो पोस्टर लगवाए उसमें उनका बड़ा सा मनोरम चेहरा तो दिखा लेकिन मेडल लाने वाली लवलीना का नहीं.

  • महिला ओलंपिक हॉकी में भारत का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन देने वाली टीम की वंदना बचपन में पेड़ की टहनी से प्रैक्टिस करती थीं. इसी टीम की नेहा फैक्ट्री में काम करती थीं.

अगर मैं आपसे पूछूं कि इन सारी कहानियों में एक कॉमन चीज क्या है? खिलाड़ियों की सक्सेस स्टोरी. है ना?

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लेकिन क्या इन कहानियों में ये बात भी नहीं छिपी है कि इन खिलाड़ियों को हमारी सरकारों से सहूलियतें नहीं मिलतीं. जो नेता आज मेडल पर मजमे लगा रहे हैं, जलसे कर रहे हैं उन्होंने ये कभी नहीं देखा कि देश में ग्रास रूट पर तैयारी कर रहे खिलाड़ियों को कितनी सुविधा मिलती है.

तो फिर नेताओं के बड़े-बड़े ऐलान मेडल लाने के लिए खिलाड़ियों के प्रति आभार है, भूल सुधार है या सिर्फ प्रचार है?

समझने के लिए आपको ये जानना चाहिए कि केंद्रीय बजट में खेल के लिए आवंटन घटाया गया है. खेलो इंडिया का बजट घट गया है.

खिलाड़ियों का सम्मान, इनाम और पैसों की बारिश का ऐलान कर नेता जी नाम कमाते हैं, वहां भी 'झोल' की कहानी है.

जिस बजरंग पूनिया ने टोक्यो ओलंपिक में देश के लिए रेसलिंग में ब्रॉन्ज जीता है, जब उन्होंने एशियाई खेलों में गोल्ड जीता तो हरियाणा सरकार ने 3 करोड़ देने का वादा किया. नहीं मिला तो खुद पूनिया ने ट्वीट किया. पूनिया के समर्थन में नीरज चोपड़ा ने भी सवाल उठाए थे.

इनाम छोड़िए ये सरकारें खिलाड़ियों के साथ क्या करती हैं, कान खोलकर सुनिए....आंखें खोल लीजिए.

  • चंडीगढ़ में नेशनल मुक्केबाज रितु पार्किंग टिकट काटती हैं.

  • 2018 में ब्लाइंड वर्ल्ड कप क्रिकेट विजेता टीम के सदस्य नरेश तुमडा मजदूरी करते हैं.

  • ओलंपिक मेडलिस्ट पर करोड़ों लुटा रही हरियाणा सरकार से पूछना चाहिए कि रोहतक की स्ट्रेंथ लिफ्टिंग में कई पदक जीत चुकी सुनीत को हाउस मेड क्यों बनना पड़ा?

  • राष्ट्रीय कुश्ती प्रतियोगिता में चार बार पदक हासिल कर चुकीं महाराष्ट्र के सांगली की महिला पहलवान संजना बागडी गन्ने के खेत में क्यों काम रही हैं.

  • 5 इंटरनेशनल मैच खेल चुकीं झारखंड की फुटबॉलर आशा कुमार क्यों खेतों में काम कर रही हैं.

  • झारखंड की ही जूनियर इंटरनेशनल फुटबॉलर संगीता सोरेन को ईंट-भट्ठे पर क्यों मजदूरी करनी पड़ी.

  • मथुरा के कराटे चैंपियन हरिओम चाय क्यों बेच रहे हैं?

  • पंजाब की इंटरनेशनल कराटे खिलाड़ी हरदीप क्यों 300 की दिहाड़ी पर धान रोपती हैं.

ये लिस्ट बहुत लंबी है, मैं आपको कितनी कहानियां सुनाऊं. ये लिस्ट जितनी लंबी रहेगी. ओलंपिक, एशियाड, कॉमनवेल्थ की मेडल टैली में हमारे देश के आगे लिखा नंबर उतना ही छोटा रहेगा. जरा सोचिए इन तमाम लोगों को थोड़ी सुविधाएं मिल जातीं, वंदना को समय से हॉकी स्टिक मिल जाती. मीराबाई का कीमती वक्त लकड़ी ढोने में जाया न होता. हॉकी खिलाड़ी नेहा को मजदूरी न करनी पड़ती. तो क्या हमें टोक्यो ओलंपिक में सात के सांत्वना पुरस्कार से ही संतोष करना पड़ता? पोस्टर, नगाड़े, ढोल के शोर में ये मूल सवाल फिर से दब गए तो हम फिर पूछेंगे... जनाब ऐसे कैसे?

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