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ओलंपिक खेलों में हार ने एक बार फिर भारत में जाति की बदसूरत तस्वीर को उजागर कर दिया है. टोक्यो ओलंपिक (Tokyo Olympics 2020) के सेमीफाइनल के लिए क्वालीफाई करके इतिहास रचने के दो दिन बाद, महिला हॉकी टीम की खिलाड़ी, वंदना कटारिया के परिवार पर जातिवादी टिप्पणी की गई. क्यों? क्योंकि युवा एथलीटों की हमारी टीम फाइनल में जगह नहीं बना सकी थी.
सेमीफाइनल में हार के बाद, दो लोगों ने हरिद्वार में कटारिया के घर के बाहर पटाखे फोड़े और परिवार पर जातिगत टिप्पणी की. उन्होंने यहां तक कहा कि टीम इसलिए नहीं जीती क्योंकि उसमें 'कई दलित खिलाड़ी' थे.
ओलंपिक में हैट्रिक लगाने वाली पहली भारतीय खिलाड़ी- वंदना कटारिया ने इस मामले पर कहा:
घटना को शर्मनाक बताते हुए, भारतीय महिला हॉकी टीम की कैप्टन, रानी रामपाल ने कहा, "हम ने सब कुछ दिया, काफी त्याग किया, अपने देश का प्रतिनिधित्व करने के लिए बहुत संघर्ष किया. हालांकि, जब हम देखते हैं कि घर पर हमारे संबंधित परिवारों के साथ ऐसा हो रहा है, जैसे वंदना के परिवार के साथ क्या हुआ... मैं बस ये कहना चाहूंगा कि लोग ऐसा करना छोड़ दें - धार्मिक हमला, जातिवाद."
रामपाल उन बहुत कम खिलाड़ियों में से एक थीं, जिन्होंने हमले की निंदा की, लेकिन कुछ ट्विटर यूजर्स ने प्वाइंट किया कि किसी मंत्री या खेल अधिकारियों ने कटारिया के परिवार पर जातिवादी हमले पर कोई टिप्पणी नहीं की.
क्या ये दुर्भाग्यपूर्ण है? हां. क्या हम हैरान हैं? नहीं.
बॉक्सर तुलसी हेलेन के जातिवादी और यौन उत्पीड़न से लेकर, विनोद कापड़ी पर टिप्पणी, सनराइजर्स हैदराबाद टीम के साथियों के खिलाफ वेस्टइंडीज के क्रिकेटर डेरेन सैमी द्वारा नस्लीय भेदभाव के आरोप, भारतीय स्पोर्ट्स खिलाड़ी, दूसरे खिलाड़ियों के समर्थन में बोलने में विफल रहे हैं. हालांकि, उनमें से कई ने #BlackLivesMatter आंदोलन के दौरान प्रदर्शन किया था.
एंटी-कास्ट एक्टिविस्ट, सृष्टी रंजन, हैदराबाद यूनिवर्सिटी के पीएचडी स्टूडेंट रोहित वेमुल्ला को याद करती हैं, जिनकी जातिगत उत्पीड़न के बाद खुदकुशी से मौत हो गई थी. वो कहती हैं, "वंदना कटारिया की घटना ने मुझे उस लेटर की याद दिला दी. दलित चाहे कुछ भी कर लें, वो हमेशा अपनी जातिगत पहचान में ही सिमट कर रह जाएंगे. चाहे कुछ भी गलत हो जाए, इसके लिए हमेशा दलितों को दोषी ठहराया जाएगा."
खिलाड़ियों की जाति जानने को लेकर भारतीयों की उत्सुकता का पता ओलंपिक्स के दौरान चला, जब गूगल सर्च सर्वे में सामने आया कि कई लोगों ने पीवी सिंधु की जाति ढूंढी. टोक्यो ओलंपिक्स में बैडमिंटन में ब्रॉन्ज मेडल जीतने के साथ सिंधु दो ओलंपिक मेडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला बन गई हैं.
ये पहली बार नहीं है. सिंधु के अलावा, पीटी ऊषा और हीमा दास की जाति भी कई बार गूगल सर्च की जा चुकी है. 2018 के आर्टिकल में, कॉलमनिस्ट मयंक मिश्रा कहते हैं, "क्योंकि इंटरनेट एक प्राइवेट मीडियम है (जो मैं सर्च करता हूं, उसकी जानकारी मेरे लिए सीमित मानी जाती है), जो अक्सर सर्च किया जाता है, वो उस चीज का सच्चा रिफ्लेक्शन है, जिसके बारे में मैं उत्सुक हूं. अगर लोग जाति को सर्च कर रहे हैं, तो इसका मतलब है कि उनमें से अधिकांश इसका इस्तेमाल किसी के प्रदर्शन को आंकने के लिए एक संदर्भ के रूप में करते हैं."
खेल में छींटाकशी का कल्चर नया नहीं है. हमने देखा है कि कैसे हर बार हार का सामना करने वाले क्रिकेटरों के घरों पर हमला किया जाता है. वर्ल्ड कप में बांग्लादेश के खिलाफ पांच विकेट से हार का सामना करने के बाद पूर्व भारतीय क्रिकेट कप्तान एमएस धोनी के रांची स्थित घर पर भीड़ ने हमला किया था.
लेकिन एक्टिविस्ट कहते हैं कि धोनी के घर पर इसलिए हमला हुआ, क्योंकि टीम ने एक मैच में अच्छा प्रदर्शन नहीं किया था. कटारिया या कांबली या पलवंकर बालू पर इसलिए हमला किया गया, क्योंकि उनका जन्म एक दलित परिवार में हुआ था.
तो अगर, जब झारखंड में अनुसूचित जनजाति समुदाय की दो महिलाओं को हॉकी टीम के सदस्यों द्वारा धमकाया जाता है, या बॉलीवुड फिल्म 'चक दे इंडिया' में खेल अकैडमी के किसी सदस्य द्वारा गंभीरता से नहीं लिया जाता है, तो रियलिटी को फिक्शन बताकर नजरअंदाज करना ठीक नहीं है.
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