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वीडियो एडिटर: मोहम्मद इब्राहीम/संदीप सुमन
तोमार नाम, आमार नाम, वियतनाम से अब तोमार नाम, आमार नाम, जय श्री राम.
इस एक लाइन में पश्चिम बंगाल की 6 दशक का सियासी इतिहास समझा जा सकता है. हाल फिलहाल में यहां सियासत में राम के नाम की अहमियत बढ़ गई है और इससे कई सवाल उठते हैं.
बंगाल में जो दुर्गा पूजा मनाया जाता है. उसको हम "अकाल बोधन" कहते हैं. मोटा-मोटी ट्रांसलेट करें तो इसका मतलब है दुर्गा मां को "अकाल" बुलाना या फिर ऐसे समय पर बुलाना जब उनकी पूजा स्वाभाविक तौर पर नहीं होती.
रामायण में कहानी है कि श्री राम जब रावण से लड़ने जा रहे थे, तब मां दुर्गा के आशीर्वाद के लिए वो तपस्या पर बैठे. ये तपस्या उन्होंने 'अश्विन' महीने में की थी जबकि दुर्गा पूजा 'बसंत' ऋतु में की जाती है. बंगाल में अभी जो दुर्गा पूजा हम इतने जोर-शोर से मनाते हैं. वो भी अश्विन महीने में ही होती है.
बंगाल में एक काफी तगड़ा वैष्णव असर भी है. राम और कृष्ण दोनों की पूजा विष्णु के एक रूप के तौर पर की जाती थी. लेकिन चैतन्य महाप्रभु जैसे वैष्णव संतों की वजह से कृष्णा पूजा, राम पूजा से ज्यादा मशहूर हो गई. इसलिए बंगालियों के "तेरो परबों" या फिर 13 त्योहार में जन्माष्टमी का नाम आता है लेकिन राम नवमी एक प्राइवेट फेस्टिवल के तौर पर रह गया, जो ज्यादातर नाॅन-बंगाली घरों में मनाया जाता रहा.
लेकिन बंगाल में जो मुख्यधारा हिंदू ट्रेडिशन है वो है शक्ति पूजा का यानी की 'देवी' और उनके अनेक रूपों की पूजा. दुर्गा, काली, या फिर संतोषी माता यहां की सबसे मशहूर देवियां हैं. नॉर्थ इंडिया में जैसे ग्रीटिंग के तौर पर ‘जय श्री राम’ बोला जाता है वैसे ही यहां पर ‘जय मां काली’ या फिर ‘जय मां दुर्गा’ बोला जाता है.
बहुत लोगों का मानना है कि 2017 की राम नवमी BJP का "वॉटरशेड मोमेंट" था, जब पार्टी ने यह त्योहार "मनाने" का फैसला लिया. त्योहार मनाने के नाम पर बंगाल की सड़कों पर लोग, यहां तक कि स्कूल यूनिफॉर्म में बच्चे भी, तलवार और दूसरे अस्त्र लेकर निकल पड़े. वो बंगाल के लोगों के लिए किसी सदमे से कम नहीं था. लेकिन दूसरी साइड से तर्क यह आया कि मुहर्रम में सालों साल यही होता रहा लेकिन तब आप क्यों नहीं बोले? अगले साल यानी 2018 में राम नवमी का जश्न और भी शोर-शराबे से मनाया गया.
लेकिन इस बार आसनसोल और पुरुलिया जैसी जगहों से सांप्रदायिक दंगो की खबर आई जिनमें 3 लोगों की मौत हो गई. देखते ही देखते 'जय श्री राम' बंगाल में BJP का नारा बन गया. जैसे कि देश के दूसरी जगहों में 'भारत माता की जय'. हमारे 'सेक्युलर' भद्रलोक ने इसको "आक्रामक सांप्रदायिकता" कहा.
इसको हम ऐसे समझ सकते हैं कि अभी ममता की फीलिंग्स 'जय श्री राम' को लेकर वैसी ही हैं जैसे की 2014 से पहले लेफ्टिस्ट यूनियन्स, प्रेसिडेंसी यूनिवर्सिटी के छात्र और कोई भी 'लाल' चीज को लेकर थी. 2012 में जब कुछ छात्रों ने उनसे कोई मुश्किल सवाल पूछा तो वो उन्हें 'माओइस्ट' बोलकर शो से निकल गईं. श्री राम के कारण BJP को बंगाल में 18 सीट मिली तो साफ तौर पर ममता दीदी को वो बिल्कुल पसंद नहीं.
दूसरी ओर BJP ने सोच समझ कर अपना नारा 'जय श्री राम' से 'जय श्री राम, जय मां काली' कर दिया ताकि तृणमूल जो "एंटी-बंगाली" टैग उन पर लगाने की कोशिश कर रही है वो उसे काउंटर कर पाएं. इन सब के बीच दोनों पार्टियों ने एक दूसरे पर हमलों से विश्राम लेकर एक दूसरे को हजारों के तादाद में पोस्टकार्ड्स भेजने शुरू कर दिए. अब सारे हिंदू भगवान स्टैंड बाइ पर हैं. क्या पता कब किसको बुलावा आ जाए किसी पार्टी की राजनीतिक बोली लगाने के लिए!
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