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जॉर्ज फ्लॉयड Vs फैजान, 4 समानताएं और 4 अंतर

जॉर्ज फ्लॉयड केस में तुरंत और पारदर्शी एक्शन हुआ, फैजान को मिला विभागीय जांच

रोहित खन्ना
वीडियो
Published:
जॉर्ज फ्लॉयड केस में तुरंत और पारदर्शी एक्शन हुआ, फैजान को मिला विभागीय जांच
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जॉर्ज फ्लॉयड केस में तुरंत और पारदर्शी एक्शन हुआ, फैजान को मिला विभागीय जांच
(फोटो: क्विंट हिंदी)

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वीडियो एडिटर: पूर्णेंदु प्रीतम

अफ्रीकन अमेरिकन जॉर्ज फ्लॉयड की हत्या हुई तो दिल्ली के फैजान की याद आई. 25 मई को अमेरिका के मिनियापोलिस में जॉर्ज की मौत हुई. 26 फरवरी, 2020 को नॉर्थ ईस्ट दिल्ली के कर्दमपुरी में फैजान की मौत हुई. दोनों मामलों में 4 एक सी बातें हैं और 4 अंतर भी.

4 समानताएं:

समानता नंबर 1

जॉर्ज फ्लॉयड निहत्था, बीच सड़क एक पुलिस अफसर ने उसकी गर्दन को अपने घुटनों के नीचे दबा दिया, वहीं तीन अफसर खड़े देखते रहे.

फैजान और चार और लोग ....निहत्थे, बुरी तरह जख्मी, उसी तरह सड़क पर....5-6 पुलिस वाले लाठियों के जोर पर उन्हें जमीन पर लिटाए हुए

समानता नंबर 2

जॉर्ज फ्लॉयड- कहता रहा मैं सांस नहीं ले पा रहा, लेकिन पुलिस वालों ने एक न सुनी, उसकी गर्दन दबाए रखी, आठ मिनट तक.

फैजान और उसके साथ जमीन पर पड़े लोग दर्द से कराहते हुए गाते रहे - जन गण मन.

समानता नंबर 3

जॉर्ज फ्लॉयड की हमले के थोड़ी देर बाद मौत हो गई.

फैजान की दो दिन बाद चोटों के कारण मौत हो गई.

समानता नंबर 4

जॉर्ज फ्लॉयड एक अमेरिकी अफ्रीकन, एक ऐसा समुदाय जो अक्सर पुलिस के जुल्म का शिकार होता है.

फैजान एक मुस्लिम...वो समुदाय जिस पर पुलिस की हिंसा बढ़ रही है.

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अब देखिए 4 फर्क:

अंतर नंबर 1

इस वारदात के महज चार दिन बाद जॉर्ज की गर्दन दबाने वाले पुलिस अफसर डेरेन चाउविन पर थर्ड डिग्री मर्डर का मुकदमा डाल दिया गया है. डेरेक और उसके तीन साथियों को नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया है. लेकिन फैजान और उसके साथ चार दूसरे लोगों को लाठी के जोर पर जमीन पर लिटाते हुए और गालियां देते दिखने वाले पुलिसवालों पर कोई चार्ज नहीं लगा.

अंतर नंबर 2

फैजान की हत्या के सिलसिले में दिल्ली पुलिस ने जो एफआईआर दर्ज की है उसमें अज्ञात लोगों को आरोपी बनाया गया है.

क्यों? , अनजान क्यों? वीडियो में दिखने वाले पुलिसवालों को क्यों नहीं?

दिल्ली पुलिस के ज्वाइंट कमिश्नर ने क्विंट से कहा -क्योंकि वीडियो में पुलिसवाले फैजान को पीटते नहीं दिख रहे थे. अच्छा तो उन पर मर्डर का चार्ज नहीं लग सकता.. लेकिन उन पर कोई भी चार्ज क्यों नहीं लगा? उन पर IPC की धारा 304A के तहत मामला दर्ज क्यों नहीं हो सकता...यानी जानबूझकर लापरवाही का मामला.

आखिर पुलिस वालों को घायल फैजान को अस्पताल ले जाने के बजाय गालियां देते हुए तो सुना जा सकता है– क्या ये लापरवाही नहीं है? क्या फैजान को अस्पताल ले जाने में हुई देरी भी उसकी मौत की वजह नहीं बनी? फिर FIR में धारा 304A क्यों नहीं? वीडियो में दिख रहे पुलिसवालों पर धारा 341A भी लगा सकते थे, जबरन बंधन बनाकर रखने का चार्ज, लेकिन FIR में ये भी नहीं..क्यों? हमें नहीं पता.

पुलिसवालों पर धारा 295A भी लगा सकते थे - किसी के धर्म या आस्था को लेकर अपमान करना...लेकिन फिर भी धारा 295A नहीं लगी. क्यों? हम नहीं जानते. आज भी फैजान के परिवार को न तो FIR की कॉपी और न ही पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिली है. पुलिस वालों की गलती थी ये तब क्विंट से बात करते हुए ज्वाइंट सीपी आलोक कुमार ने खुद माना था.

जब फैजान को तुरंत इलाज की जरूरत थी तब उनसे राष्ट्रगान गवाना सही नहीं था, पुलिसवालों ने ऐसा क्यों किया इसका पता तो हमें विभागीय जांच के बाद ही चल पाएगा
आलोक कुमार, ज्वाइंट सीपी, दिल्ली पुलिस

अंतर नंबर 3

जॉर्ज फ्लॉयड के साथ बदसलूकी और आखिर में उसकी जान लेने वाले पुलिस वालों पर मुकदमा चला और उन्हें बर्खास्त किया गया...लेकिन फैजान को क्या मिला? एक विभागीय जांच? और हम सब जानते हैं उसका मतलब- कुछ नहीं होगा. भारत में पुलिस महकमा ऐसी जांच अक्सर करता है और हर बार आरोपी पुलिसवाले बच निकलते हैं.

अंतर नबंर 4

इन पांच लोगों से जब जबरन जन गण गन गवाया जा रहा था, तो वीडियो में दिखा कि उनके ऊपर कैमरा घूम रहा था, शायद किसी पुलिसवाले ने ही इसे शूट किया हो. और उसमें इतनी जुर्रत थी कि उसने इसे शेयर भी कर दिया. फिर भी दिल्ली पुलिस ने वारदात के 9 दिन बाद कहा कि वायरल वीडियो में दिख रहे पुलिसवालों की पहचान नहीं हो पाई. अब इस जवाब को कैसे पचाया जाए?

  • पहली बात क्या लोकल थाने को मालूम नहीं होगा कि उस दिन कर्दमपुरी मेन रोड पर किसकी ड्यूटी लगी थी?
  • उसी वारदात का दूसरा वीडियो, जिसे कुछ दूरी से बनाया गया था, उसमें पुलिस वाले दिख रहे थे, हालांकि उनके चेहरे साफ नहीं हैं. लेकिन क्या तकनीक के सहारे इन पुलिस वालों को पहचाना नहीं जा सकता था?
  • वीडियो में पुलिस वालों की आवाज भी सुनाई पड़ रही है तो क्या इन पुलिसवालों के साथ काम करने वाले पहचान नहीं सकते थे कि ये किसकी आवाज है, और क्या आवाज पहचानने वाली voice-recognition technology से पुलिसवालों की पहचान नहीं हो सकती थी?
  • फैजान के साथ जो चार लोग और थे, क्या वो पुलिसवालों की पहचान नहीं कर सकते थे? क्या पुलिस ने उन चारों से पूछा है? कम ही उम्मीद है.

पुलिस के बयान में लोचा

24 फरवरी को वारदात के चार दिन बाद क्विंट से बात करते हुए ज्वाइंट सीपी आलोक कुमार ने कहा कि पुलिस फैजान को 24 फरवरी को ही अस्पताल ले गई थी. लेकिन LNJP अस्पताल की CCMO डॉ. रितु सक्सेना ने क्विंट से कहा-

अस्पताल के न्यूरोसर्जरी वार्ड में फैजान को 26 फरवरी को एडमिट किया गया था. उसे उसके परिवार वाले लेकर आए थे.
डॉ. रितू सक्सेना, CCMO, LJNPअस्पताल

फैजान के परिवार ने भी क्विंट से कहा कि वो फैजान को 26 फरवरी की सुबह अस्पताल ले गए थे. परिवार का ये भी कहना है कि उससे पहले 24 और 25 फरवरी की रात फैजान को ज्योति नगर पुलिस स्टेशन में रखा गया था. उसे 24 घंटे इलाज से दूर रखा गया....जिससे आखिरकर फैजान की मौत हो गई.

तो ज्वाइंट सीपी आलोक कुमार ये बात क्यों नहीं बताते कि फैजान को 24 घंटे पुलिस कस्टडी में भी रखा गया था? क्या ये ज्योति नगर थाने के पुलिसकर्मियों को बचाने के लिए किया गया?

इस वीडियो को रिकॉर्ड करने से पहले क्विंट ने संबंधित ज्वाइंट सीपी, DCP, SHO और दिल्ली पुलिस के PRO से डिपार्टमेंटल जांच का अपडेट लेना चाहा लेकिन कोई जवाब नहीं मिला.

एक बात तो साफ है ये जो इंडिया है ना, यहां की पुलिस कुछ भी करके बच सकती है. जॉर्ज फ्लॉयड की मौत पर तुरंत, सख्त और पारदर्शी कानूनी एक्शन लिया गया, यहां अपने देश में फैजान की निर्मम हत्या को भुला दिया गया

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

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