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कल्याण सिंह: मंडल का तोड़-कमंडल का जोड़, जिसने BJP की किस्मत-देश की सियासत बदली

कहते हैं कि अटल बिहारी वाजपेयी के बाद कल्याण सिंह ही ऐसे बीजेपी नेता थे जिनका भाषण सुनने को जनता आतुर रहती थी

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उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री Kalyan Singh का निधन

(फोटो- अलटर्ड बाई क्विंट)

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उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह (Kalyan Singh) का निधन हो गया है. 5 जनवरी 1932 को पैदा हुए कल्याण सिंह 89 साल के थे. पिछले कुछ दिनों से उनकी तबियत खराब चल रही थी.

अलीगढ़ जिले की अतरौली तहसील के छोटे से गांव ,मढ़ौली में जन्मे कल्याण सिंह ने 90 के दशक में BJP की किस्मत और देश की सियासत को मोड़ देने में अहम भूमिका निभाई थी. यहां हम विस्तार से कल्याण सिंह की इस यात्रा के बारे में जानेंगे.

राजनीतिक जीवन: बीजेपी के लिए 'कल्याणकारी' कल्याण सिंह

कल्याण सिंह के जिक्र के साथ ही यूपी की राजनीति खुद-ब-खुद अलीगढ़ पहुंच जाती है. कल्याण सिंह ने 1967 में यहां के अतरौली विधानसभा सीट से जीत दर्ज करके सूबे की राजनीति में अपने आप को स्थापित किया था. हालांकि यह पहली दफा नहीं था जब उन्होंने राजनीतिक ओपनिंग का प्रयास किया था. 1962 में 30 वर्षीय कल्याण सिंह ने जनसंघ के टिकट पर अतरौली विधानसभा सीट से ही लखनऊ पहुंचने की नाकाम कोशिश की थी.

1962-67 के बीच राजनीति के पिच पर उनके मेहनत का ही नतीजा था कि 1967 से लगातार 1980 तक,कल्याण सिंह विधायक के रुप में जीतते रहें और राजनीति की मैराथन पारी खेलते रहें. 1989-90 में देश की राजनीति मंडल कमीशन के पृष्ठभूमि में गर्म थी और तब बीजेपी को बने मुश्किल से 9-10 वर्ष ही हुए थे. मंडल का तोड़ निकालने के लिए बीजेपी ने कमंडल की सियासत शुरू की और 'संकटमोचन' कल्याण सिंह उसके अगुवा रहें.

बाबरी मस्जिद विध्वंस: कल्याण बने बीजेपी के ‘संकटमोचन’

राम मंदिर आंदोलन ने ही बीजेपी और उसके कई नेताओं को राष्ट्रीय स्तर पर उभरने में मदद की थी लेकिन अगर किसी बीजेपी नेता ने इसके लिए सबसे बड़ी कुर्बानी दी थी तो वो कल्याण सिंह ही थे.जब ‘मंडल’ प्रभाव के बैकग्राउंड में देश,विशेषकर उत्तर भारत,में OBC वोट राजनीतिक रूप से मजबूत होने लगा तब शुरू से ही बनिया और ब्राह्मण पार्टी की पहचान वाली बीजेपी ने कल्याण सिंह के रूप में पिछड़ी जातियों को अपने पाले में लाने की कोशिश की.

यूपी विधानसभा चुनाव के पहले 30 अक्टूबर, 1990 को यूपी के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने कारसेवकों पर गोली चलवा दी थी.प्रशासन ने उग्र कारसेवकों के खिलाफ सख़्त रुख अपना लिया था. ऐसे में बीजेपी ने राम मंदिर आंदोलन में कल्याण सिंह को आगे कर दिया.

कहते हैं कि अटल बिहारी वाजपेयी के बाद कल्याण ही ऐसे बीजेपी नेता थे जिनका भाषण सुनने को जनता आतुर रहती थी. अपने उग्र तेवर में कल्याण सिंह ने यूपी की राजनीति का ध्रुवीकरण कर दिया.कल्याण सिंह के रूप में बीजेपी के पास यूपी में ऐसा ऑलराउंडर था जो जाति समीकरण और धर्म की राजनीति को एक साथ परोसने की सहूलियत दे सकता था.

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अब जनता ‘मंडल ‘ को छोड़ ‘कमंडल’ के साथ जुड़ गई. कल्याण-कमंडल के इस जोड़ी का ही नतीजा था कि 1991 में बीजेपी की शानदार जीत हुई और कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गयें.सीबीआई द्वारा दायर आरोपपत्र के अनुसार कल्याण सिंह ने मुख्यमंत्री बनने के तुरंत बाद अयोध्या का दौरा किया और राम मंदिर निर्माण की शपथ ली.

कल्याण सिंह सरकार को बने अभी एक साल भी नहीं गुजरे थे कि 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में कारसेवकों ने विवादित ढांचा को गिरा दिया.हालांकि कल्याण सिंह ने सुप्रीम कोर्ट मे शपथपत्र दायर करके कहा था कि उनकी सरकार मस्जिद को कुछ नहीं होने देगी.इस विध्वंस के लिए कल्याण सिंह को ही दोषी माना गया. उन्होंने भी बाबरी मस्जिद विध्वंस की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए 6 दिसंबर 1992 को अपना त्यागपत्र दे दिया.केंद्र सरकार ने यूपी की बीजेपी सरकार को बर्खास्त कर दिया.

जांच के लिए बने लिब्राहन आयोग ने कल्याण सिंह सरकार पर सत्ता के दुरुपयोग का आरोप लगाया और उसकी आलोचना की.कल्याण सिंह को बाबरी मस्जिद मामले में सीबीआई जांच का भी सामना करना पड़ा लेकिन बाद में सीबीआई की विशेष अदालत ने उन्हें आरोपों से मुक्त कर दिया.

दो बार बीजेपी से 'मोहभंग' और 'घरवापसी'

1999 में अटल बिहारी वाजपेयी से राजनीतिक मतभेदों के कारण कल्याण सिंह ने बीजेपी छोड़ दी और अपनी पार्टी 'राष्ट्रीय क्रांति पार्टी' का गठन किया. 2002 यूपी विधानसभा चुनाव राष्ट्रीय क्रांति पार्टी के बैनर तले अपने दम पर लड़ा.

हालांकि 2004 में वाजपेयी जी के आमंत्रण पर उन्होंने फिर से बीजेपी को ज्वाइन कर लिया और 2004 के आम चुनाव में बुलंदशहर संसदीय सीट से बीजेपी उम्मीदवार के तौर पर जीतकर पहली बार संसद पहुंचे. लेकिन 2009 में फिर से उपेक्षा का आरोप लगाते हुए कल्याण सिंह बीजेपी को छोड़ मुलायम सिंह के समाजवादी पार्टी में चले गए. हालांकि मोहभंग इस बार भी ज्यादा देर का नहीं रहा और 2013 में फिर से बीजेपी के 'घर वापसी' कर गए.यकीनन बीजेपी को अपने ‘राम आंदोलन हीरो’ की जरुरत बनी रही और कल्याण सिंह को बीजेपी के ‘छवि’ की,जिसे गढ़ने में उनका बराबर का सहयोग रहा.

2014 में केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद उन्हें राजस्थान का राज्यपाल बनाया गया और उन्होंने जनवरी 2015 से अगस्त 2015 के बीच हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल का अतिरिक्त कार्यभार भी संभाला.

व्यक्तिगत जीवन

कल्याण सिंह का जन्म 5 जनवरी 1932 को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले की अतरौली तहसील के मढ़ौली गांव में हुआ था. तब उत्तर प्रदेश अंग्रेजों के शासन काल में 'संयुक्त प्रांत' के नाम से जाना जाता था. किसान परिवार में जन्मे कल्याण सिंह के पिता का नाम तेजपाल सिंह लोधी और मां का नाम सीता देवी था.

उन्होंने अपनी आरंभिक शिक्षा अलीगढ़ से ही पूरी की थी और स्थानीय महाविद्यालय डी.एस डिग्री कॉलेज,अलीगढ़ से अपनी BA पूरी की. बाद में उन्होंने अध्यापक के रूप में नौकरी भी की. कल्याण सिंह का विवाह रामवती देवी के साथ हुआ. उनके बेटे का नाम राजवीर सिंह उर्फ राजू भैया और बेटी का नाम प्रभा वर्मा है. राजवीर सिंह उर्फ राजू भैया वर्तमान में यूपी के एटा लोकसभा सीट से सांसद हैं. वो 2014 में भी इसी सीट से सांसद रह चुके हैं.

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Published: 21 Aug 2021,10:22 PM IST

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